उठ चित्रांश उठ, मै बोल रहा हूँ चित्रगुप्त – चित्रांश अम्बरीश स्वरुप सक्सेना
उठ चित्रांश उठ, मै बोल रहा हूँ चित्रगुप्त
हाँ चित्रगुप्त, अपने खानदान के बीच हो चुका हूँ लुप्त।
हमारे ज़माने में हमें ब्रह्मा ने बताया था
जिसके जितने ज्यादा बेटे होंगे, वो उतना ही बड़ा इन्सान होगा
सुखी संपन्न होगा,पढ़ा-लिखा ज्ञान-वान होगा।
यही सोचकर, सही सच मानकर, मेरे (चित्रगुप्त) हुए बारह बेटे
पर अम्बरीश , हम निकले किश्मत के खोटे।
सोच सोच कर होता है 'सन्ताप '
क्यों हुए हम बारह बेटो के बाप
इनका आपस में ही नहीं अनुराग
सोचो यह कितना बड़ा है दुर्भाग्य।
जो अपनों का नहीं रहा, वो किसी का क्या होगा जनाब
कवि होने के नाते तुम दे सकते हो जवाब।
आज हिंदुस्तान में गुर्जर एक हैं, मीणा एक हैं,
छत्रिय एक, यादव एक और अल्पसंख्यक भी एक
इस एकता की दौड़ में कायस्थ कहाँ है
ज्ञान कहाँ है, सम्मान कहाँ है।
बहुत से कायस्थों को यही पता नहीं,
कि उनका स्थान कहाँ है, चित्रगुप्त कहाँ है,
चित्रगुप्त के वंशज हैं, पर मानता नहीं
अपने पूर्वज के पूजा को प्रधानता नहीं।
बुद्ध भी पड़ा हुए, ईसा भी पैदा हुए,भगवान् माने गए।
हम सकल भारत के लिए तो क्या
अपने ही वंश के लिए अंजान हो गए
तभी तो कुछ लोगो को छोड़ कर
हमारे वंशज ही मंदिर में नहीं आते
और प्रथा के नाम पर धेला तक नहीं चढ़ाते।
हम अज्ञानी तो हो ही गए है
निर्धन भी हो रहे है
हमारे वंशज हो रहे है खाने पीने में मशगूल
और अपने आपको क्या,
अपने बाप (चित्रगुप्त) को भी गए है भूल।
ये है मेरे मन की पीड़ा,
तुम कवि हो अपने वंशज को उठाने का
उठाओ बीड़ा।
अगर येसा कर पाओगे
तो मै भी चमत्कार दिखलाऊंगा
मेरी पूजा करने वालो को, कम से कम
करोड़पति बनाऊंगा।
अज्ञान को भर दूंगा ज्ञान में
हर कायस्थ डूब जाएगा धन-धान में।
पहले तुम मेरी करो प्रतिष्ठा
मुझ पर बढाओ अपनी निष्ठां
जमाओ 'अम्बरीश' जमाओ
चित्रगुप्त में अपनी निष्ठां जमाओ
कवि हो, कवि होने का धर्म निभाओ।
तुम कर दोगे चित्रगुप्त मान-प्रतिष्ठा
यानि की प्राण प्रतिष्ठा
हम खुलकर भगवान् के रूप में आ जाएगें
सारे हिन्दुस्तान के कायस्थ जाग जायेगे।
साभार: चित्रांश अम्बरीश स्वरुप सक्सेना,
"चित्रघोष" रास्ट्रीय कायस्थ महापरिषद, जयपुर