कांफ्रेंस के दौरान ही कायस्थ र्म्प्लॉएमेंट एक्सचेंज की वेबसाइट को लांच किया गया. यह वेबसाइट कायस्थ बच्चो को योग्यतानुसार रोजगार देने का प्रबंध कराएगी. एस आई एस ग्रुप के मालिक श्री सिन्हा ने भी वादा किया कि वह कायस्थ बच्चो को अपनी संस्था में प्राथमिकता देंगे साथ में उन्होंने समाज की युवा पीढ़ी से व्यापार क्षेत्र में आने का आह्वाहन किया. उनका भाषण आपके शरीर में एक नयी ऊर्जा भरने वाला था मसलन चीज़े आपके 'सुनने' पर भी निर्भर करती है. यहाँ आवश्यक है कि जिन लोगो ने हमारे नवयुवको/नवयुवतियों को रोजगार देने का बीड़ा उठाया है वह पूरी जिम्मदारी के साथ समाज के सामने उनके द्वारा हुए कार्यो को समाज के समक्ष पारदर्शिता के साथ रखे.
कायस्थो की राजनीती में भूमिका पर हुई बात जी, सभी लोगो की राय थी कि राजनीती के क्षेत्र में कायस्थ सबसे काम मजबूत है. हमें एक राजनितिक चेतना जगानी होगी. राजनीती में आने के लिए कायस्थ बच्चो को प्रेरित करना होगा. श्री सिन्हा के अलावा श्री प्रसाद ने भी कायस्थो को राजनीती में आने के लिए प्रेरित किया. हमें इस मुद्दे पर भी एकजुटता से किसी निष्कर्ष पर पहुचं कर कोई महत्वपूर्ण पथ की और कदम बढ़ाने होंगे. सामाजिक कुरीतियों में 'दहेज़' पर हुई बात कई चित्रांशो ने समाज से अपील कि की वह दहेज़ प्रथा को जड़ से समाप्त करे. यहाँ तक की रवि शंकरप्रसाद ने कहा कि मुझे पीड़ा होती है जब मैं कायस्थ-समाज में दहेज़-व्यवस्था को देखता हूँ उन्होंने मंच से इस कुरुति को ख़त्म करने की गुजारिश की. रही बात सरकार से राजेंद्र प्रसाद को उनके असली सम्मान दिलाने की मांग हो या नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस की मृत्यु से जुड़े रहस्यों को खोलने की मांग, तो यह मुद्दे कायस्थ समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है पर इन मुद्दो को भी संगठित हो कर एकजुटता के साथ उठाया जाए. सोशल मीडिया पर एक मुहीम खोली जाए. सरकार में बैठे पदाधिकारियों के ईमेल पर ईमेल भेजे जाए. ऐसे प्लेटफार्म पर आवाज़ उठाई जाए जहाँ इन मुद्दो को राह मिले. केवल 'प्रस्ताव' पारित करना अंतत: एक खाना-पूर्ति बन कर रह जाने वाला है. किसी भी मुद्दे की आवाज़ योजनाबद्ध तरीके से उठाई जय जिससे उसका हल निकले.... केवल 'मुद्दे' के लिए ही 'मुद्दा' न उठाया जाए. कांफ्रेंस मैं खुद रजिस्ट्रेशन काउंटर पर बैठा था, विश्वास मानिये मैं हैरान था लोग दुबई,जोधपुर, इंदौर, जयपुर, लखनऊ, नॉएडा, मेरठ, भोपाल, नेपाल, सिरसा, गाज़ियाबाद, पटना, हैदराबाद, विदिशा ना जाने कितने नगरो और शहरों से आये थे. देशभर की कायस्थ संस्थाए इस कांफ्रेंस का हिस्सा थी. सभी को अपनी बात रखने का मौका भी दिया गया. अगर किसी संस्था को जानकारी नहीं मिल पाई उसका कारण भी यही है की हम 'एक' नहीं है. इसिलिय कांफ्रेंस में एक 'केंद्रीय-बॉडी' बनाने की भी बात हुई जो देशभर की कायस्थ-संस्थाओ को दिशानिर्देश जारी कर सके ताकि सभी एक सामंजस्य स्थापित कर एक 'अनुशासित-लाइन' में चल सके. एक मिथ्या भर है कि हम एक-दूसरे की मदद नहीं करते, ऐसे प्रोग्राम के माध्यम से हम मिलेंगे तो दूरिया और कटुता मिटेगी. हम पास आएंगे. इसी रास्ते से होते हुए ही हमें एकता की मंजिल मिलेगी. निष्कर्ष में मैं बस इतना कहूँगा कि चित्रांश बंधुओ हमें आपस में बैर ख़त्म करके, प्रतिस्पर्धा के भाव को त्याग के, आगे बढ़ना है. हम सभी का लक्ष्य है 'कायस्थ' कि एकता, समृद्धि और अखंडता जिसको हम साथ में रह कर ही हासिल कर सकते हैं. रोहित श्रीवास्तवद्वितीय वर्ल्ड कायस्थ – प्रश्न यह है की हमें इस आयोजन से ‘मिला’ क्या ? रोहित श्रीवास्तव
ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि जब भी हम किसी कार्य का बीड़ा उठाते है या उठाने का प्रयत्न करते है, या किसी आयोजन को करते है, चाहे वो 'पारिवारिक हो', 'सामाजिक हो' या राजनितिक हो, उसकी आलोचना और आलोचक आपको जरूर ही मिल जाते हैं. रचनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो एक हिसाब से 'सकरात्मक आलोचना' सर्वदा हमारे लिए फायदेमंद ही होती है मसलन साथ में नकरात्मक आलोचना जरूर एक बाधक के रूप में काम करती है. इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है की आप आलोचना के पीछे 'आलोचक' के इरादो और उद्देश्यों को जानने की कोशिश करे अगर वह वाकई में सम्बंधित कार्य में सुधारो की बात करता है तो उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जोकि कार्य को एक सही और सकरात्मक दिशा में ले जाया सके.
अभी दो दिन पहले दिल्ली में द्वितीय वर्ल्ड कायस्थ कांफ्रेंस का सफल आयोजन हुआ. जिसमे दुनियाभर के चित्रांशो ने खुले दिल और दिमाग के साथ बढ़-चढ़कर भाग लिया. परंतु ऐसा प्रतीत होता है की इसके बावजूद हमारे कुछ चित्रांश बंधू और कायस्थ संगठन आयोजको से नाराज़ है.
सबसे पहला प्रश्न यह है की हमें इस आयोजन से 'मिला' क्या, क्या यह केवल एक 'सांस्कृतिक-प्रोग्राम' बन के ही नहीं रह गया?
इसका विस्तृत जवाब देने से पहले एक दिलचस्प बात बताता हूँ, कांफ्रेंस के दौरान मेरे पास एक सम्माननीय चित्रांश बंधू आए उन्होंने मेरे से काफी बातचीत के बाद पुछा की इस आयोजन का क्या फायदा है? मैंने उन्हें फट से कहा देखिये....मेरी आपसे बात हुई , अच्छा संवाद हुआ जिसमे हमने एक-दूसरे के परिचय बताए. क्या यह 'फायदा' नहीं है...? वो हस्ते हुए मुस्कुराते हुए बोले. हाँ यह सही कहा आपने....अब मुद्दे की बात यह है कि मुझे लगता है कि फायदा और नुक्सान हमारे चीज़ो को देखने के नजरिय पर भी निर्भर करता है. कहने को आप जरूर कह सकते हैं कि कांफ्रेंस में सिर्फ बाते हुई और सांस्कृतिक कार्यक्रम लेकिन वही छोटी-बड़ी बाते हमारे, आपके और सारे समाज के लिए बेहद 'फायदे-मंद' है. श्रीमती नीरा शास्त्री ने एक अच्छा सुझाव दिया कि हर रविवार 'लंच' के बहाने कई परिवार किसी पार्क में आपस में मिल सकते है. सच में यह बढ़िया 'आईडिया' है. ऐसे छोटे-मोटे विचार बड़े-बड़े काम करते है. 'समाज की एकजुटता' में एक अहम भूमिका निभाते हुए मिल के पत्थर साबित हो सकते हैं .अगर चित्रांशो में मेलजोल बढ़ेगा तो दूरिया घटेगी, ईगो 'फुर्र' हो जायेगा, दिल मिलेंगे तभी तो एक-दूसरे के लिए खड़े होंगे. राज्यसभा सांसद श्री रविन्द्र किशोर सिन्हा और रवि शंकर प्रसाद ने भी समाज को जोड़ने की सलाह दी.
कायस्थ युवाओ के लिए क्या निकला?