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आज के भारत में कायस्थ की गिरती स्थिति – नुपुर सक्सेना

कभी भारत के महान रत्नों में शुमार, अनगिनत कायस्थों के नाम और काम दोनों से ही हम सब थोड़ा- थोडा परिचित हैं ही. मगर इसी के साथ हमारे ज़ेहन में यह बात भी आती है कि आखिर क्या कारण है कि आज का युग जो ज्ञान, विज्ञान, तकनीक तथा बौद्धिकता का युग है, इसमें हम कायस्थ उस उच्च क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे जो हमारा वास्तविक गुण है. जीन संरचना कहें या सदियों का पुश्तैनी प्रभाव, आज भी हमारी बौद्धिक कुशलता, निर्णय क्षमता और लेखनी पर पकड़ का लोहा, हर जाति मानती है.
मगर इसके बावजूद चाहें राजनैतिक हो, शैक्षणिक या कलात्मक मंच, हर जगह हम अपनी पहचान खोते जा रहें हैं. आज के समय जब हम देखते हैं कि शिक्षा, करियर, राजनीति, कला आदि को लेकर निम्न जातियों तक में कितनी जागरूकता आ गई है,
हम अपने नैसर्गिक गुण से पीछे जाते जा रहें हैं. इन सब उदासीनताओं के कारण हम केवल समय से पीछे ही नहीं हुए, बल्कि समाज में हमारी उपयोगिता में कमी तथा अन्य जातियों द्वारा हमारा शोषण भी हो रहा है. हम में से कई के मन में ये सवाल कई बार आता होगा कि आखिर क्या वजह हैं, जो हमारी आज ये स्थिति है. मेरे मन में भी कुछ ऐसे विचार आए तथा उनके समाधान भी, जिससे जुड़े आपके विचार भी जानना चाहूंगी.
  • शिक्षा जो हमारा मुख्य हथियार हुआ करती है, उसमें बीते कुछ समय से हमारा (नयी पीढ़ी का) योगदान कम हुआ है (चाहें आरक्षण कहें या उच्च शिक्षा के खर्चे) वजह चाहें जो भी हो, मगर हम हर बाधा पार करने का हौसला रखते हैं. उदाहरण के तौर पर बिहार के छात्रों को ही हम देख लें की उन में कुछ बनने, तथा अपनी निम्न स्थिति से ऊपर उठ कर, कुछ करने की इतनी प्रबल आकांक्षा है कि वह सारी बाधाएं पार कर के, इस कठिन प्रतिस्पर्धी दौर में भी काफी सफल हो रहे हैं. इसी जज़्बे की आज हमें ज़रूरत है.
  • कहा जाता है की कायस्थ ही कायस्थ को काटता है. अब कितना सच या झूठ ये हम नहीं जानते, मगर आज प्रभुत्व वाली जातियों में जहाँ काफी एकता है, वहां हमसे जितना हो सके आपनी तरफ से निर्बल तथा पिछड़े हुए कायस्थ भाइयों की सहायता कर सकें, जिससे हमारा समाज भी सबल होगा तथा राजनैतिक मंच पर भी हम अपनी जगह बना सकेंगे.
  • दहेज़ जो आज की विकराल समस्या बन चुका है, हमारा कायस्थ समाज भी उससे अछूता नहीं है. अन्य धनाढ्य तथा खेतिहर जातियों की देखा देखी हमारे यहाँ भी खुल कर, और ज़्यादा से ज़्यादा दहेज़ माँगा जाने लगा है. क्या ये सही है? कायस्थ जो अमूमन नौकरी पेशा तथा मेहनत की कमाने वाला क्या सहजता से दूसरी जातियों के सामान लेन देन कर सकता है? समाज के लड़के तथा लड़कियों दोनों को ही खुद में सक्षम तथा स्वाभिमानी बनाना, और कायस्थ सामूहिक विवाह जैसे आयोजन आज के समय की मांग है.
अंत में यही लिखना चाहूंगी कि आप सभी कायस्थ मेंबर्स कृपया अपने-अपने विचार,सवाल,समाधान यहाँ रखें. जिससे हम कुछ सार्थक सोच अपने कायस्थ समाज को आगे बढ़ने हेतु अपना सकें और उस पर अमल कर सकें. नुपुर सक्सेना

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