वक्त है, रणभेरियों को फूकने का -राकेश श्रीवास्तव
वक्त है, रणभेरियों को फूकने का
फूंक कर , कर दो शुरू संग्राम
अब नव एकता का.
आज के सूरज ने उगाया दिन नया
रोशनी लाई है नव संचेतना.
चित्र के चित्रांशी
हम बुद्धि के सरताज हैं
ब्रह्म के ब्रह्मांड में
करते रहे हम राज हैं
वक्त ने अंगड़ाइयां ले
खेल ऐसा कर दिया
काहिली की गर्दिशों से
ताज अपना ढंक दिया
ताज को फिर से संवारो कर्म से
राग छेड़ो मिल के सब अब एकता का
बात से बातें बनाना छोड़ कर
काहिली की कड़ी को तोड़ कर
एक दूजे को सभी से जोड़ कर
वक्त की धारा को फिर से मोड़ कर
सिलसिला कर दो शुरू संचेतना का
एक होकर एकता से ही मिलेगा रास्ता
दूर रह कर शक्ति का बनता नहीं
कोई वास्ता
एक होकर ही मिलेगा
रास्ता संसाधना का
राकेश श्रीवास्तव