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भगवान श्री चित्रगुप्त जी नम:
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अति का भला न बोलना, अति का भला न चुप।
अति का भला न बरसना, अति का भला न धूप।।
बहुत पुरानी ये कहावत तब भी सत्य थी, आज भी सत्य है अौर कल भी सत्य ही रहेगी।
''अति सर्वत्र वर्जयते।'' हमारे लिए अच्छी से अच्छी वस्तु की अधिकता हमारे लिए नुकसानदेह साबित होती है। हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माने जाने वाले घी और दूध का अत्यधिक सेवन हमारे स्वास्थ्य को अंतत: नुकसान ही पहुॅचाता है। इसी प्रकार हम कायस्थों में सामान्य रूप से पायी जाने वाले तीक्ष्ण बुद्धि का बहुत ज्यादा प्रयोग और उस बुद्धि के होने का अहंकार हमारे विकास में बाधक बन रहा है।
किसी भी चीज का उचित मात्रा में सही जगह पर प्रयोग किया जाना ही हमारी सफलता का द्योतक होता है। हममें से बहुत सारे लोग समाज की भलाई में लगे हैं, कोई किसी क्षेत्र में तो किसी क्षेत्र में। बहुत सारे लोग अपना योगदान दे रहे हैं। हमें एक-दूसरे के योगदान को खुले मन से स्वीकार करना होगा। अगर हमारा योगदान अच्छा है तो दूसरे का योगदान भी अच्छा है, यह भावना लेकर कार्य करने पर ही हम कायस्थों का विकास संभव है अन्यथा हम एक-दूसरे को नीचा दिखाने और उसके कार्यों की आलोचना करने में ही अपना समय नष्ट करते रहेंगे और वास्तव में कुछ भी नहीं होगा।
एक और बात मैं अपने सम्मानित कायस्थ बंधुओं से कहना चाहूंगा कि हम लोगों ने फेसबुक और व्हाट्स एप पर जो ग्रुप बनाये हैं, उनका उद्येश्य कायस्थ कल्याण है लेकिन प्राय: यह देखने में आ रहा है कि हम उस पर अनर्गल पोस्ट डाल देते हैं, जिसका ग्रुप से कोई मतलब नहीं होता या फिर हम कोई व्यक्तिगत टिप्पणी कर देते हैं, जिससे अनावश्यक विवाद पैदा होता है। ये स्थितियां उचित नहीं है। हमें इससे बचना होगा। व्यक्तिगत बातों, गुडमार्निंग-गुडनाइट आदि हेतु पर्सनल व्हाट्स एप का प्रयोग किया जाना समीचीन होगा।
हममे से कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो कहते हैं कि पहले हम भारतीय है, हमें जातिवाद की बात नहीं करनी चाहिए। उनका कथन उचित है कि हम भारतीय है, पर इस ध्ारती पर हमारा वजूद किसकी वजह से है। सबसे पहले हमें अपने परिवार का, फिर अपने कुल का, फिर अपने समाज का और तब अपने देश का उत्तरदायित्व वहन करना होगा। व्यक्ति से कुल, कुल से समाज, समाज से देश बनता है। कोई भी देश सीधे नहीं बनता है। इसलिए ऐसी सोच वालों से मेरा निवेदन है कि जब तक व्यक्ति, कुल और समाज का उत्थान नहीं होगा, किसी भी देश का उत्थान संभव नहीं है। इसलिए भारतीयता की अच्छी सोच के साथ अपने कुल के विकास के बारे में भी अपना योगदान सुनिश्चित करें।
जय चित्रांश।
आपका साथी
संजीव सिन्हा
कायस्थ वृन्द संचालक मंडल मो. 9335721679
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