बिहार के मोतिहारी में जन्में और बचपन में बहराइच जिले में लता के गाने गा-गा कर आसपास के जिलों, यहां तक कि पड़ौसी देश नेपाल तक में अपने गानों की गूंज पहुँचा देने वाले पचास श्री किशोर श्रीवास्तव का बचपन अत्यन्त ग्लेमरयुक्त रहा। बचपन से किशोरवास्था और फिर युवावस्था तक आते-आते श्री किशोर का गायन कुछ कम होता गया और उसकी जगह ले ली साहित्य की विभिन्न विधाओं ने। अपने पिता के झांसी में तबादले के पश्चात अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ ही श्री किशोर ने झांसी के ही एक दैनिक अखबार में पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया। अख़बार में रहते हुए जब श्री किशोर ने विभिन्न अखबारों में प्रकाशित प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट श्री काक के कार्टून देखे तो उनसे प्रभावित होकर उन्होंने कार्टून के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनके कार्टून लोटपोट, सरिता, पराग, दैनिक जागरण, नवनीत, सत्यकथा, नूतन कहानियां, जनसत्ता, नवभारता टाइम्स और साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि जैसी बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगे।
९० के दशक मैं जब देश मंदिर-मस्जिद के विवाद से जूझ रहा था, समाज मैं दहेज और कन्या भू्रण हत्याओं के कारण समाज में भय और आक्रोश का वातावरण व्याप्त था। श्री किशोर को इन सब घटनाओं ने इतना उद्वेलित किया कि उन्होंने अपनी रचनाओं, कार्टूनों और गीतों को ही इन विसंगतियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का एक माध्यम बना लिया।
श्री किशोर ने उस वक्त विभिन्न सामाजिक विसंगतियों पर कटाक्ष करते और साम्प्रदायिक सद्भाव को मद्दे नज़र रखते हुए ‘खरी-खरी’ शीर्षक के अंतर्गत लगभग 100 रंगीन पोस्टर तैयार किये। इन पोस्टरों का प्रदर्शनी के रूप में का पहला आयोजन झांसी में दूरदर्शन ज्ञानदीप मंडल की स्थानीय शाखा द्वारा वर्ष 1985 में किया गया। श्री किशोर का यह प्रयास अत्यन्त सफल रहा और सैकड़ों लोगों ने न केवल इसका अवलोकन किया अपितु इसे अत्यन्त सराहा भी। इसके पश्चात उ. प्र. की ही ललितपुर शहर की एक संस्था ने भी ‘खरी-खरी’ नामक इस जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन अपने शहर में किया। जहां टिकट रखे जाने के बावजूद अपार जन समूह ने इसे देखा और सराहा। यही नहीं दर्शकों की मांग पर इसे अगले दिन के लिये भी जारी रखा गया। इससे श्री किशोर का उत्साह और बढ़ा तथा सामयिकता को ध्यान में रखते हुए इसमें नशे के दुष्परिणाम, अस्पर्श्यता/छुवाछूत, भिक्षावृत्ति, आवास समस्या, अपराध, वृद्धावस्था की त्रासदी, नई पीढ़ी का खुलापन, फर्जी वृक्षारोपण, आतंकवाद, ऋण की समस्या, समलैंगिकता, गुडागर्दी, रिश्वतखेरी, बाढ़ की समस्या, जल का अपव्यय, क्षेत्रवाद, संस्कृति पर प्रहार, दलबदल, बेरोज़गारी, धार्मिक उन्माद, परिवार नियोजन, नारी उत्पीड़न, बलात्कार की समस्या, बालिका की एहमियत, भ्रष्टाचार आदि जैसे अनेक अन्य विषयों को भी जोड़ा।

इस प्रदर्शनी के लिये श्री किशोर किसी से कोई पारिश्रमिक नहीं लेते बल्कि इसकी तैयारी का खर्चा भी खुद ही वहन करते हैं। अवकाश के दिनों में दूरदराज क्षेत्रों तक में इसके प्रदर्शन से उन्हें कोई गुरेज़ नहीं। इस प्रकार से अपनी इस प्रदर्शनी के ज़रिये श्री किशोर पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से जनमानस का ध्यान उपर्युक्त विसंगतियों की ओर आकर्षित करते हुए कटाक्ष और हंसी-हंसी में ही सही, उन्हें इन सब बुराइयों के प्रति आगाह करने का काम करते चले आ रहे हैं। श्री किशोर पोस्टरों के ज़रिये केवल दूसरों को ही उपदेश नहीं देते अपितु स्वयं मंदिर में दहेज रहित विवाह और अपने परिवार को एक बच्चे तक सीमित करके उन्होंने औरों के सामने खुद भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्री किशोर अपने आपको कोई खास कार्टूनिस्ट या कलाकार नहीं मानते, वह तो बस अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का अपनी कलाओं को एक ज़रिया भर मानते हैं। उनका मानना है कि छोटे ही सही पर ऐसे आंदोलन दूरगामी परिणाम वाले होते हैं। लगातार प्रयास से धीरे-धीरे ही सही इनका समाज व जन मानस पर कभी न कभी और कुछ न कुछ असर ज़रूर पड़ता है। ऐसा उन्हें प्रदर्शनी के दौरान दर्शकों की मौखिक व लिखित प्रतिक्रियाओं से भी पता चलता रहता है। प्रदर्शनी के संबंध में दर्शकों के विचार उनकी ‘‘खरी-खरी’’ नामक पुस्तिका में भी संकलित हैं। उनसे विभिन्न विसंगतियों व मेल-मिलाप के प्रति जनता जनार्दन का रूझान भी पता चलता है।
भारत सरकार के दिल्ली स्थित एक कार्यालय में राजपत्रित अधिकारी होने के साथ ही श्री किशोर अपने अवकाश के समय का उपयोग अपने इस अभियान को सतत जारी रखने के लिये करते हैं। ‘‘खरी-खरी’’ के साथ ही श्री किशोर का गायन, संगीत और अभिनय आदि का शौक भी साथ-साथ चलता रहता है। श्री किशोर काव्य मंचों पर कविता की फुहारें छोड़ने और संगीत के मंच से सुमधुर गायन के अलावा संास्कृतिक मंचों पर अपनी हास्यकला/मिमिक्री से लोगों को हंसा-हंसा कर लोट-पोट भी करते रहते हैं। कायस्थखबर चित्रांश कुल मैं जन्मे इस कायस्थ रत्न को अपनी शुभकामनाये देता है ।