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घर का चक्कर : महथा ब्रज भूषण सिन्हा

पूछा किसी से, भाई कैसी यह कतार है? आगे, एक बड़ा सा सुसज्जित लगा दरबार है. दरबार व कतार के बीच, दिखती अँधेरी पट्टी, उसके आगे में सिर्फ एक ही करतार है. लोग बढ़ते हैं आगे, और अँधेरे में हो रहे गुम. इक्का-दुक्का पहुँच रहे करतार तक चुन-चुन. मैं भी कतार में लगा, देखने की ललक लगाए. अँधेरे तक पहुंचते ही एक सज्जन आये. पृथ्वी लोक पर जाओगे, तो बाई ओर एक द्वार है. दरवाजे पर खड़ा, एक पहरेदार है. वह कुछ कहेगा, मान जाओगे तो मस्ती अपरम्पार है. दायीं ओर में, लगा एक दरबार है ज्ञान बंट रहा है वहां, साथ में मिलेगा घमंड भरमार है. अपने तन में रहोगे, मन में रहोगे, समाज का करोगे बंटाधार है. अगर दायें-बाएं मुड नहीं सकते, तो सीधे एक द्वार है. उस द्वार से जाने पर, बनोगे लाचार है. पसंद कर लो, या दूर हटो वक्त की कमी है. पहले सोचा होता? तेरे अक्ल में तो अभी से ही धुल जमी है. काम बांट कर भगवान चित्रगुप्त को रिपोर्ट करना है. जल्दी-जल्दी लोगों को पृथ्वी पर डीपोर्ट करना है. एक जाकर सिर्फ मस्ती करेंगे, और सिर्फ मुंह चलाएंगे. दूसरा न बोलने की कसम निभायेंगे. एवं तीसरा दोनों के घर का चक्कर लगायेंगे. घर का चक्कर लगायेंगे. -महथा ब्रज भूषण सिन्हा.

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