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कायस्थ आपस में श्रेष्‍ठता के भेदभाव में उलझे हुए हैं।- संजीव सिन्‍हा

प्रिय साथियों, हम सभी भगवान चित्रगुप्‍त जी महाराज के वंशज हैं, परंतु हम आपस में श्रेष्‍ठता के भेदभाव में उलझे हुए हैं। हम पढे-लिखे हैं, बुद्धिमान हैं,पर हमारी बुद्धिमानी को क्‍या हो जाता है, जब हम अनावश्‍यक की बहस में उलझ जाते हैं और दूसरों को अपने से कमतर साबित करने की कोशिश करते हैं। दूसरों की आलोचना करने से बेहतर तो यह होता है कि हम स्‍वयं द्वारा कायस्‍थों के विकास के लिए किया गया कार्य करें और उसे आम कायस्‍थ के सम्‍मुख आने दें। अनावश्‍यक की बहस और दूसरों की आलोचना में तो हम अपना समय और धन ही बरबाद करते हैं। कई बार हम विभिन्‍न क्षेत्रों में सफल कायस्‍थों को महिमामंडित करते हैं, पर क्‍या उस महिमामंडन से पूर्व उन सफल कायस्‍थों द्वारा कायस्‍थों के हित में क्‍या कार्य किये गये, इसका विश्‍लेषण करते हैं। नाम नहीं लिखूंगा ताकि अनावश्‍यक बहस व विवाद न हो, पर सत्‍य है कि एक सफलतम कायस्‍थ दस करोड रूपये का दान तिरूपति बालाजी मंदिर में देते हैं, पर कायस्‍थों के लिए शायद ही कभी दस हजार रूपये भी दिये हों। एक अरब-खरब पति उद्योगपति कायस्‍थ द्वारा बेराजगार कायस्‍थों के लिए क्‍या कभी कुछ किया गया। आज की तारीख में मेरी नजर में एक भी ऐसा सफल कायस्‍थ नहीं है, जिसने कायस्‍थों के हित के लिए कुछ भी किया हो। कई सफल कायस्‍थ तो यहां तक कह देते हैं कि मैं जो कुछ हूॅ अपने बल पर हूॅ, कायस्‍थ समाज ने मेरे लिये क्‍या किया है, जो मैं उनके लिए करूॅ। विगत कुछ वर्षों से कायस्‍थों में जागरूकता आयी है, जो एक सकारात्‍मक संकेत है कि कायस्‍थों का उत्‍थान फिर से होगा, पर इसे लेकर हमे मुगालते में रहने की जरूरत नहीं है। हमने सफलता की राह अभी सिर्फ पहचानी है, उस ओर हम अग्रसर नहीं हुए हैं। हमारे समाज के अनेक संगठनों द्वारा विभिन्‍न स्‍थानों पर चित्रगुप्‍त जी महाराज के मंदिर बनवाये जा रहे हैं, यह बहुत अच्‍छी बात है, पर मित्रों इससे भी जरूरी एक बात और है कि हमारे बेरोजगार युवा कायस्‍थों को स्‍वावलंबी बनाना। इस संबंध में हमें सबसे पहले काम करने की आवश्‍यकता है। कायस्‍थ वृन्‍द द्वारा इस दिशा में प्रयास प्रारंभ किया जा चुका है, जिसका परिणाम बहुत जल्‍द ही आप सभी के समक्ष होगा। मेरा यह मानना है कि ''एके साधे, सब सधे, सब साधे, सब जाये'' अर्थात अगर हम बहुत सारे उद्येश्‍यों को लेकर चलते रहेंगे तो सफलता संदिग्‍ध है, पर यदि हम एक लक्ष्‍य '' कायस्‍थ युवाओं को स्‍वावलंबी बनाना'' को लेकर चलेंगे तो इससे सारे लक्ष्‍य सधने की संभावना ज्‍यादा है। हमारे बच्‍चे स्‍वावलंबी बनेंगे, तो इससे हमारे समाज की बहुत सारी बुराईयों का उन्‍मूलन होगा। इसलिए मेरा समस्‍त कायस्‍थ संगठनों से आह्वान और निवेदन है कि समस्‍त आपसी मतभेदों और मनमुटाव को एक किनारे कर, सिर्फ और सिर्फ कायस्‍थों के विकास के एजेण्‍डे पर फोकस हो। संगठन चाहे कोई भी हो, उसके द्वारा किये गये अच्‍छे कार्य की बाकी सारे संगठन प्रशंसा करें, उसका उत्‍साहवर्धन करें, न कि उसके द्वारा की गयी कतिपय गलतियों को अनावश्‍यक तूल देकर विवाद पैदा करें। जीवन में सदैव सकारात्‍मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो हमें प्राप्‍त हो रहा है, उस पर प्रसन्‍न रहना चाहिए, न कि जो नहीं प्राप्‍त हुआ, उसका दुख मनाए। जय चित्रांश, जय कायस्‍थ, जय चित्रगुप्‍त जी महाराज। आपका साथी संजीव सिन्‍हा

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