( मुंबई से लौटते हुए सफ़र के दौरान स्व आदेश श्रीवास्तव के घनिष्ठ मित्र श्री आलोक जी ने ये संस्मरण लिखा है ) मैं जिस आदेश श्रीवास्तव को जानता हूँ, मेरी नज़र में उसका क़द, उसके फ़िल्मी क़द से कहीं ऊँचा है. चमक-दमक में घिरा फ़िल्मी ज़िंदगी का तारा. संगीत का सितारा. दोस्ती, इंसानियत, हमदर्दी और सरोकारों के उजालों से ...
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