सर्वानंद जी अपने जमाने में एक खेल खेलते थे- सचकोलिया और झुठकोलिया. जिसे आज आधुनिक युग में मोक ड्रील कहा जाता है. पता नहीं कैसे यह भनक कायस्थ खबर को लग गई. बिना इजाजत उसने भी यह खेल खेल ही डाला. और मजेदार बात तो यह कि उसने सर्वानंद को भी नेता की लिस्ट में नहीं डाला. नहीं तो ऐलानिया कहते हैं, जीतते तो हम ही.अब लेने के देने पड रहे हैं. जीतनेवाले बंगला, गाडी, सुरक्षा गार्ड और न जाने क्या-क्या माँगने लगे हैं. अब लो भुगतो. हम थोड़े ही न कुछ माँगते. फ्री में सबकुछ. घर-घर में राशन, पढाई, दवाई, चुलाई और हर चीज की भरपाई. अरे कायस्थों का स्वर्णयुग ला देते हम. हम जीतने वाले को भी सावधान कर देते हैं, सब पर नजर रखें. कहीं कोई अपने ही आपको चित न कर दे. हमारे यहाँ बाहरी खतरे बहुत कम होते हैं भाई. अपने ही अपने को पटखनी मारते रहते हैं. हम अपने कतार में खड़े दुसरे भाईयों को भी कह देते हैं- अरे यह सब झूठकोलिया है, सचकोलिया थोड़े ही न है. अबरी बार करे दो, अईसा मजा चखाइब न कि नेतवे बनब भूला जाएगा. आउर कायस्थ खबर वाला बेवकूफवा के देख, हमरा नाम भी काट दिया है न. ठहर जा, समझाइब ओकरा के. सुना है अतीत में हम काफी प्रगति पर थे. अब ताड़ से गिर कर खजूर (ऊँचाई से गिरकर कंटीले पेड़ ) पर अटक गए हैं. जहाँ सैंकड़ो कांटे चुभ रहे हैं. व्हाट्स एप्प पर एक ज्ञान मिला है कि कायस्थ को कायस्थ होने पर गर्व नहीं ग्लानी होनी चाहिए. जय श्री चित्रगुप्त, दया करो हम पर. हमारे भगवान् ने बारह भाईयों के रूप में हमें इस धरती पर भेजकर अच्छा किया या बुरा, ए तो भगवान् श्री चित्रगुप्त ही जाने, हम तो अज्ञानी हैं. आपने भी सुना होगा “बड़े तो बड़े निकले, छोटे मियां शुभान अल्लाह” समाज के कुछ जोशीले युवा अपने–आप में एक संगठन हो गए हैं, तो दूसरी ओर समाज का नेतृत्व करने की ललक में कुछ अवसर ढूंढ रहे प्रौढ़ लोग भी बेचैनी में उठा-बैठी, चिंतन, बैठक-दर-बैठक करते नहीं थक रहे. बहुत शोर-शराबा है भाई. हो सकता है कोई और एक नई दिशा की इजाद हो जाए? हमारे सहयोगी घिस्सू लाल भी कलम घिस-घिस के परेशान हैं. नाराजगी जाहिर करते हुए बोले- भाई मुझे माफ़ करो. अब मै नहीं लिख सकता. मेरी स्याही ख़त्म होती जा रही है. पहले पचास पैसे की रिफिल थी, अब सात रुपये की आती है. और अगर लिखते-लिखते आँख, कान, गुर्दे लीवर, दिल वगैरह खराब हो गए तो लेने के देने पड़ेंगे. मैंने उन्हें शांत करते हुए कहा - बात तो ठीक है भाई. पर थोडा दिन और मेहनत करिए न भाई. अगला चुनाव में कायस्थ खबर जरुर आपको नेता के लिस्ट में रखेगा. इसी बीच खबर आ गई कि एक आम विचारक ने पिछले दिनों कई वैचारिक-अंडे दिए थे. अब उनका कहना है कि वह परिपक्व हो गया है. शीघ्र ही पुष्ट, प्रतिभासंपन्न, समाजोपयोगी, आम लोगों की चिंता करनेवाला विलक्षण चीज सामने आनेवाली है. पंडितों ने भी शुभ मुहूर्त की गणना शुरू कर दी है. जहाँ –तहां यज्ञ-पूजा भी आयोजित होगी. अवसर भी आम है तिसपर आम चुनाव, आम कायस्थ, आम नेता और आम लोग. और तो और आम लोगों ने, आम लोगों के लिए, आम तरीके से, आम नेता उन्हीं आम कायस्थ को चुन लिया है. अतः आम नेता को आम प्रणाम. अगर आम पार्टी-सार्टी भी हो जाय तो इस आम सर्वानंद जी को भी बहुत ख़ुशी होगी. अभी तो आम का मौसम भी आ रहा है. सर्वानंद जी की खुशी सीमा पार कर गई है. अब आप समझ ही सकते हैं कि जब कुछ सीमा पार कर जाती है, तो कितना अनर्थ होता है. सीमा पार सर्च अभियान शुरू हो गया है. अब देखना यह होगा की वे कब और किनके द्वारा पकडे जाते हैं. “निकले थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास” आप सभी ने सुन रखी होगी. अभी बहुत कुछ सुनने को मिलने वाला है, शायद देखने को भी मिले. सबकुछ शुभ-शुभ होने की आस में. सर्वानंद जी अज्ञानी ( चैपाल मे छपने वाले विचार लेखक के है और पूर्णत: निजी हैं , एवं कायस्थ खबर डॉट कॉम इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी कायस्थ खबर डॉट कॉम स्वागत करता है । आप लेख पर अपनी प्रतिक्रिया kayasthakhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं। या नीचे कमेन्ट बॉक्स मे दे सकते है ,ब्लॉग पोस्ट के साथ अपना संक्षिप्त परिचय और फोटो भी भेजें।)
कायस्थ खबर वाला बेवकूफवा के देख, हमरा नाम भी काट दिया है न, ठहर जा, समझाइब ओकरा के : सर्वानंद जी अज्ञानी
सर्वानंद जी ने अपने सर्वज्ञान से कुछ ढूंढ निकाला है. अबतक आपने जाना है कि दिशाएँ दस होती है. पर सच मानिए हमारा अपना बुद्धिमान समाज ने कई दिशाएँ विकसित कर ली है. जिसके लिए निकट भविष्य में इस समाज को बहुत बड़ा पुरस्कार भी मिलने वाला है. अबतक के प्रचलित पुरस्कार श्रेणी में इस समाज को देने लायक पुरस्कार है ही नहीं. अतः नए पुरस्कार- आविष्कार की जरुरत आन पड़ी है. कुछ वैज्ञानिक, शोध कर्ता, विचारक, समाज शास्त्रियों की टीम इसमे लगी हुई है.