आशु भटनागर ।कायस्थ पाठशाला में इन दिनों वरिष्ठ उपाध्यक्ष की सीट का सपना देखने वाले या फिर उस पर बनने वालों को लेकर कई तरीके की बातें कही जा रही कहा जा रहा है कि इस पद पर डॉ सुशील सिन्हा ने जिसको भी बिठाया है उसको अपमानित और किनारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । वरिष्ठ उपाध्यक्ष कुमार नारायण के नाम की पट्टी का उखाड़ने का प्रकरण सब लोग जानते ही हैं ।
पर इससे पहले कि हम घटनाक्रम पर बात करें मुझे यूपी बोर्ड के हिंदी में यशपाल की लिखी कहानी डाकू खड़क सिंह और बाबा भारती की कहानी याद आ रही है । इस कहानी में बाबा भारती के पास एक तेज गति से दौड़ने वाला घोड़ा होता है जिसको हड़पने के लिए डाकू खड़क सिंह एक असहाय और गरीब का भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ जाता है । बाबा भारती जब वहां से गुजरते हैं तो असहाय भेष में बैठा डाकू खड़क सिंह उनसे मदद की प्रार्थना करता है।
बाबा भारती घोड़े से उतरकर जैसे ही उसकी मदद करने लगते हैं वह उन्हें धक्का देकर घोड़ा छीन कर भागने लगता है भागने से पहले वह बाबा भारती को अपनी असली पहचान बताता है। तब बाबा भारती डाकू खड़क सिंह से कहते हैं कि वह घोड़ा भले ही ले जाए किंतु लोगों से इस तरीके से घोड़ा छीनने की कहानी न बताएं कि उसने गरीब असहाय का भेष बनाकर धोखा देकर घोड़ा छीना है, अगर लोगो को पता चलेगा कि उसे गरीब असहाय बनकर ऐसे घोड़ा छीना है तो लोग गरीबों पर विश्वास करना बंद कर देंगे उनकी मदद करना बंद कर देंगे । इसके बाद डाकू खड़क सिंह बाबा भारती का घोड़ा लौटा देता है।
अब कायस्थ पाठशाला के वर्तमान अध्यक्ष डॉ सुशील सिन्हा की कार्यशैली और इन दोनों वरिष्ठ उपाध्यक्ष से लेकर मनोनीत सदस्यों तक की पीड़ा पर आते हैं कायस्थ पाठशाला के सूत्रों की माने तो इस समय कायस्थ पाठशाला के सभी दिग्गज एक दूसरे के प्रति अविश्वास से भर चुके हैं डॉ सुशील सिन्हा को समर्थन करने वाले जहां इन दिनों अपने आप को किनारे किए जाने से दुखी हैं तो चुनाव में उनका विरोध कर रहे अजय श्रीवास्तव के अब अगले तीन दिनों में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट बने की चर्चाएं आम हो चली है इसके बाद सीनियर वाइस प्रेसीडेंट पद रहे पुराने नेताओं का दर्द बाहर आने लगा है ।
आपको बता दें इस पद के लिए सबसे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अध्यक्ष टीपी सिंह का नाम सामने आ रहा था किंतु राजनीतिक गुणा भाग में अपमानित होकर वह रेस से बाहर हो गए। उसके बाद कुमार नारायण बने तो उनके नाम की पट्टी फाड़ दी गई जिसके बाद से आज समाचार लिखे जाने तक वह कायस्थ पाठशाला में अपने कक्ष में नहीं गए हैं ।अब जब इस पद पर चुनाव में डॉक्टर सुशील सिन्हा के धुर विरोधी रहे अजय श्रीवास्तव के नाम की चर्चा चल रही है तो यह बात एक बार फिर से सामने आ रही है कि क्या डॉक्टर सुशील सिन्हा अपनी सत्ता को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
ऐसे में बाबा भारती और डाकू खड़क सिंह की कहानी का जिक्र जो मैंने ऊपर किया है वह एक बार फिर से कायस्थ पाठशाला में प्रासंगिक हो गई है कि क्या डॉक्टर सुशील सिन्हा द्वारा समर्थन विरोध और विश्वास तोड़ने के इस खेल के बाद आने वाले समय में कोई भी नेता किसी नेता के पक्ष या विपक्ष में चुनाव में अपना समर्थन देगा या नहीं क्योंकि चुनाव में समर्थन दे रहे एक-एक व्यक्ति को जिस तरीके से वर्तमान दौर में अपमानित किया जा रहा है उसे यह बातें अब सामने आ रही हैं की संभावित डॉक्टर सुशील सिन्हा अपने 5 साल तो पूरे कर लेंगे किंतु उनके बाद चुनावों में कोई किसी का समर्थन नहीं करेगा क्योंकि सबको यह लगेगा की समर्थन करने के बावजूद जो भी अध्यक्ष बनेगा वह बाकी नेताओं को ऐसे ही अपमानित करेगा।
लोगों की माने तो जिन 30 लोगों का मनोनयन चुनाव के बाद किया गया उनमें से अधिकांश लोग डॉ सुशील सिन्हा के विरोध में खड़े थेI दावा है कि ऐसी एक महिला को तो न सिर्फ मनोनीत सदस्य बनाया गया बल्कि सीएमपी कॉलेज में अब एक घर भी दे दिया गया है । ऐसे में कायस्थ पाठशाला के सदस्य जिन्होंने इसका पुराना वैभवशाली दौर देखा है वह पाठशाला के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित दिखाई दे रहे हैं
₹100 में सदस्य बनाए जाने के दुष्परिणाम पर भी चर्चा आवश्यक है
इसी के साथ रविवार को₹100 में सदस्य बनाने के जिस प्रस्ताव को जीबीएम में ले जाने का निर्णय लिया गया है उसे पर भी प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं । वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अध्यक्ष टीपी सिंह ने इस निर्णय का पुरजोर विरोध करने का दावा किया है उन्होंने कहा है कि इससे कायस्थ पाठशाला को बड़ा नुकसान होगा ।
कदाचित कायस्थ पाठशाला के सदस्य का को लगभग निशुल्क या ₹100 कर देने के प्रस्ताव के आने के बाद यह माना जा रहा है की वर्तमान सत्ता पक्ष ₹100 के सदस्यता के बहाने यहां पर सदस्यों का इतना बड़ा जमघट लगने वाला है कि यह संस्था से अलग विधायक और सांसद का चुनाव बन जाएगा जिसमें लगभग मुफ्त में बने वोटर अध्यक्ष का फैसला करेंगे और यह ट्रस्ट सक्षम और शुद्ध रक्त कायस्थ की जगह ऐसे कायस्थों का जमघट बन जाएगा जो गैर बिरादरी में शादी कर चुके होंगे या जिनके माता-पिता में से कोई एक कायस्थ नहीं रहा होगा । और अगर ऐसा हुआ तो यह निश्चित तौर पर मुंशी काली प्रसाद के उस सपने और उनकी वसीयत का अपमान होगा जिसमें उन्होंने कायस्थ पाठशाला में तत्कालीन दौर में 100 स्वर्ण मुद्राएं देखकर सदस्य बनने का प्रावधान रखा था इसके साथ ही उसका शुद्ध रक्त कायस्थ होना आवश्यक था यानी उसके और उसके माता-पिता दोनों कायस्थ होने आवश्यक थे।
₹100 की सदस्यता का विरोध इसलिए भी होना चाहिए की ₹100 में सदस्य बने की योजना एक ट्रस्ट के लिए किसी भी तरीके से व्यावहारिक नहीं है क्योंकि आज के दौर में किसी सदस्य को बनाने के फार्म से लेकर उसको मेंटेन करने तक की प्रक्रिया में लगने वाला पैसा भी₹100 से 20 गुना ज्यादा खर्च होगा ऐसे में अगर ट्रस्ट में सदस्यता शुल्क को इस तरीके से कम कर दिया जाएगा तो कायस्थ पाठशाला का प्रबंधन गड़बड़ा सकता है और इस पर करोड़ों रुपए का कर्ज हो सकता है जिसको चुकाने के लिए कायस्थ पाठशाला की परिसंपत्तियों को एक न एक दिन बेचना पड़ सकता है
कायस्थ पाठशाला में संघ का दखल बढ़ रहा, दावा है कि अब तक हुए 4 कार्यक्रम के लिए नही लिया गया कोई शुल्क
वहीं सिन्हा के करीबी जानकारों की माने तो कायस्थ पाठशाला में लगातार संघ का दखल बढ़ रहा है और इस तरीके की भूमिकाएं बनाई जा रही हैं कि देर सवेर कायस्थ पाठशाला में गैर कायस्थ को भी एंट्री मिल जाएगीI कायस्थ पाठशाला से जुड़े लोगों का दावा है कि अब तक का इस कायस्थ पाठशाला में संघ के चार कार्यक्रम हो चुके हैं किंतु उसके लिए कोई भी शुल्क नहीं लिया गया है हालांकि इस दावे में कितनी सच्चाई है इसकी पुष्टि कायस्थ खबर नहीं करता है और सत्ता पक्ष से अपेक्षा करता है कि वह इस तरीके की अफवाहें को रोकने के लिए समुचित डॉक्यूमेंट कायस्थ खबर को भेजेंगे ताकि ऐसी अफवाहों के खिलाफ कायस्थ खबर सही जानकारी प्रकाशित कर सके। हां अगर दावे में सच्चाई है तो कायस्थ पाठशाला के वर्तमान नेतृत्व को इस मामले पर उन्हें विचार करना चाहिए और कायस्थ समाज की परिसंपत्तियों को संघ के निशुल्क इस्तेमाल से रोका जाना चाहिए।