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क्या अपनी पहचान बनाने के लिए आर के सिन्हा की आलोचना करना एक ट्रेंड बन गया है ? : आशु भटनागर

आज की सुबह जब हम सभी लोग आम बजट के लिए तैयारी कर रहे थे तब अचानक सोशल मीडिया पर कल जयपुर में हुए सामहिक विवाह पर चर्चा शुरू हो रही थी I हालांकि जहा इस कार्यक्रम के लिए कुछ अच्छी बातें होनी चाह्यी थी , एक अनजान चेहरे ने वहां मुख्य अतिथि बन कर पहुंचे राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा को लेकर तीखी आलोचना शुरू कर दी I उनके अनुसार आर के सिन्हा वहां पहुचे लेकिन उन्होंने वहां खाना नहीं खाया इसलिए उनका बहिष्कार किया जाना चाह्यी
हालांकि सवाल जबाब में वो ये नहीं बता पाए की वो आयोजन समिति में किस रोल में थे I इसके बाद राजस्थान के ही एस पी माथुर जी ने बताया कि हमारे मुख्य अथिति का जिनके बेठने की व्यवस्था भी नही थी , जिन्होंने  हर नववधु को चांदी का सेट प्रदान किया 11000/-का|हमारे समारोह अध्यक्ष जो दिल्ली से पधारे थे उनको माला पहना कर इतिश्री कर ली |माननीय मेहमानो के इस अनादर को हम क्या समझे ? पधारो म्हारे प्रदेश की भावना कहा लुप्त हो गई ?
अब सवाल ये उठता है की आखिर आर के सिन्हा जब समाज को एक करने की इतनी कोशिश कर रहे है तो छोटी छोटी बातों का तिल का ताड़ बनाने से क्या फायदा है I क्या लोग सिर्फ अपने फायदे के लिए आर के सिन्हा को टारगेट कर रहे है ? हम ऐसा पूर्व में भी देख चुके है की राजस्थान से ही एक अनजान चेहरे ने पहले भी ऐसे ही एक बात को लेकर आर के सिन्हा जी पर प्रहार किये I बाद में सबकी आँखों में आने पर वो आजकल उनके गुण गाते पाए जा रहे है लेकिन हमारी चिंता इस बात की है की अगर कायस्थ युवा इस तरह से समाज में आगे आना चाह रहे है तो क्या ये एक सही तरीका है ? क्या एक ऐसे सरल इंसान का विरोध करके अपने को आगे लाना सही है जो अपने तन , मन और धन से कायस्थ समाज के लिए समर्पित है I जो सिर्फ एक निमंत्रण पर ही सबके कार्यक्रम में पहुँच जाते है I कभी किसी से किसी भी बात की शिकायत नहीं करते I वस्तुतः कायस्थ समाज को ये समझना होगा की आर के सिन्हा पहले ऐसे कायस्थ नेता है जिन्होंने सांसद होने के बाद भी खुल कर कायस्थवाद की बात की और खुल कर कायस्थों के लिए आवाज़ उठाई है I नहीं तो हम कितने ही ऐसे कायस्थ नेताओं को जानते है जिन्होंने एक बार नेता बन्ने के बाद कायस्थ समाज की और मूढ़ कर भी नहीं देखा है I ऐसे में कायस्थ समाज के द्वारा उनकी आलोचना समाज के लिए आगे जाकर घातक सिद्ध होगी क्योंकि अगर एक बार कायस्थ समाज के लिए समर्पित लोगो को ये लगने लगा की समाज में सेवा के लिए उतरने पर उनको इस तरह की आलोचनाओं को सहन करना पड़ेगा तो सक्षम लोग कायस्थों की मदद के लिए आगे आना बंद कर देंगे इसलिए आज के बदलते दौर में हम सबका ये कर्तव्य है की हम ऐसे सभी लोगो को आगे लाने में सहायक हो जो अपना तन मन और धन लगा कर समाज के लिए आगे आ रहे है समाज में ऐसे नाम बहुत कम है जिन्हें हम समस्त आलोचनाओं के बाबजूद देख पा रहे है आज सांसद आर के सिन्हा , सांसद पवन वर्मा , आगरा के सुरेन्द्र कुलश्रेष्ठ , दिल्ली से ए सी भटनागर , नॉएडा से राजन श्रीवास्तव , इलाहवाद के धीरेन्द्र श्रीवास्तव , लखनऊ से पंकज भैया , संजीव सिन्हा , राजस्थान से ललित सक्सेना , आदि कुछ ही नाम है जो इन आलोचनाओं के बाबजूद  अपने  समाज सेवा के कार्यो को आगे रखे हुए है I इसलिए समाज को इनको प्रोत्साहित करना चाह्यी ना की व्यर्थ की आलोचना से इनका मान मर्दन करने की कोशिश से समाज को नुक्सान पहुंचाना चाह्यी

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