Home » चौपाल » संजीव जी विवाद का मुख्य कारण स्वयं सर्वश्रेष्ठ समझना , और अपनी हाउस वाईफ के अंदर नेतृत्व का गुण 0 होते हुए भी , शिखर पर बिठाने की लालसा है – ब्रजेश श्रीवास्तव के गंभीर आरोप

संजीव जी विवाद का मुख्य कारण स्वयं सर्वश्रेष्ठ समझना , और अपनी हाउस वाईफ के अंदर नेतृत्व का गुण 0 होते हुए भी , शिखर पर बिठाने की लालसा है – ब्रजेश श्रीवास्तव के गंभीर आरोप

श्री संजीव सिन्हा जी , आप के द्वारा चेतावनी दिये जानें के बाद और बहन कविता सक्सेना की सलाह एवं अन्य लोगों की सलाह के बाद हमने आप का नाम के अलावा पोस्ट ही लिखना बंद कर दिया था , लेकिन मेरे भाई आज 20/57 पर लिखें गये आप के इस पोस्ट " जो डा . अरविन्द सर को इंगित है " इसमे श्रीमान जी , आपने मेरे नाम का 3 बार उल्लेख किये है , 1 : यह सत्य है की मैं नाखुश , हुआ था , मेरे नाखुश होने के कारणों में अपरोक्ष रुप से कहीँ ना कहीँ आप द्वारा हमें गुमराह करने वाला रोल भी था चूँकि आप प्रदेश समन्वयक थे , आप मुझसे जादा श्री धीरेन्द्र जी को जानते थे , फ़िर भी आप बराबर हमें डार्क में रख कर यह बताते रहें की दो दिवसीय मीटिंग में पहला दिन स्थानीय लोगों को लेकर , स्थानीय गणमान्य लोगों को मंच , माला माइक से नवाजा जायेगा , उसी अनुसार हमने समाज के उन बुजुर्ग और गणमान्य कायस्थो को मंचाशीन किया जिसने अपने जीवन में सर्व समाज के साथ साथ " कायस्थ समाज के लिये " समर्पित कार्य किया है ! लेकिन सुबह 11 बजे मंच पर बैठे उन बुजुर्ग गणमान्य लोगों को , 4 बजे माला और सम्मानित करने का कार्य हो सका ! आदरणीय रईस " बाबू ज्योतीपत राम " जिनको सभा की अध्यक्षता करने का दायित्व सौंपा गया था , " बेचारे शाम को 6 बजे के आसपास दो शब्द बोलने का अवसर पायें , उसके बाद सभा छोड़ कर चलें गये ! फैजाबाद में मेरी नाराजगी व 50 बातें शिकायत के रुप में , इसी लिये आप को सुननी पड़ी " क्यों की आप और धीरेन्द्र जी , दो शरीर एक जान , एक आँख , एक सोच , और एक विचारधारा , के थे !उस समय आप ने आज की इन बातों को मुझसे क्यों नहीँ शेयर किया ? उस समय आपने धीरेन्द्र जी के इस नेचर का खुलाशा क्यों नहीँ किया ?जहाँ तक हमें ए बी के एम के जिला अध्यक्ष बनाये जानें की बात है , आप को याद होगा मेरे अध्यक्ष बनने के बाद श्री हरिओम जी के आवास पर मीटिंग में आप सहित सभी लोगों ने हमें बधाई भी दी थी , हँसी खुशी के उस वातावरण में " आप की पत्नी , ट्रस्ट की महा सचिव " श्रीमती रमण सिन्हा ने कुछ कहा भी था , शायद आप को याद ना हो , इस लिये मैं याद दिलाता हूँ !
रमण सिन्हा --: अरे भाई साहब , बड़ी खुशी हुई आप ऊँचे पद पर चलें गये , अच्छा लगा , " लेकिन उस जादुगरनी " से होशियार रहियेगा ! मैं :-- कौन सी जादूगरानि बहू ! रमण सिन्हा जी :-- आप की अब उस जादूगरनी से तो अक्सर मुलाकात होती रहेगी , वो आप के दिल की बात लेकर , हमारी सारी गोपनीयता आप से उगलवा लेगी ! मैं :--- आचम्भित , इस लिये नहीँ की यह क्या कह रही है , बल्कि इस लिये की यह भद्र महिला हमारे जैसे समर्पित व्यक्ति पर भी शंका कर गयी !!
संजीव जी : इस घटना यानी आपकी श्रीमती जी की आशंका के ठीक एक सप्ताह के बाद ( लगभग ) आप की पोस्ट आयी :------ ए बी के एम में छटपटाहट क्यों ?-::::::::-:::::::-::: जिसमे आपने कालम न . 5, 6 , 7 में जो पंक्तियाँ लिखी है वह सीधे मेरे लिये ही थी , कारण 3 था !1 बहू रमण सिन्हा की महत्वाकांक्षा " बृजेश जी इतने बड़े संगठन के जिला अध्यक्ष , हम लोग कुछ नहीँ , जबकि मैं जानता था की जिला अध्यक्ष माने कुछ नहीँ होता " कायस्थ वृन्द , राजनैतिक प्रदेश संरक्षक माने बहुत कुछ !2: बहू रमन सिन्हा की शंकालु प्रवृति ," जिसका शिकार मैं ही नहीँ बल्कि मेरे पहले , श्रीमती नीरज श्रीवास्तव , अभिषेक श्रीवास्तव , श्री हरिओम श्रीवास्तव , चौथे न . पर मैं था , चूँकि मैं बचपन से स्पष्ट वादी , निडर , और सीधी लाइन चलने वाला निर्मल मन का व्यक्ति रहा , छल कपट से दूर रहने वाला ,स्वाभिमानी व्यक्ति रहा , इस लिये जबाव सवाल करने लगा और आप " उस व्यक्ति पर वाण चलाते रहें , और मैं बाण का जवाब , इस लिये तीखा देता रहा की यह " वही संजीव सिन्हा है जो भाई साहब के अलावा कभी नाम तक नहीँ लेते थे , जिनकी पत्नी पैर स्पर्श कर आशीर्वाद लेती थी उनके मुख से एक शब्द " सारी भाई साहब " ये पोस्ट आप के लिये नहीँ बल्कि , किसी और के लिये थी ! इतना कह कर बात को ख़त्म नहीँ करके आज ------------3: मुख्य कारण , आप को स्वयं अपने आप को सर्वश्रेष्ठ , और सर्वज्ञानी समझना , और अपनी " हाउस वाईफ " श्रीमती रमण सिन्हा के अंदर नेतृत्व का गुण 0 होते हुए भी , शिखर पर बिठाने की लालसा , जिसका प्रमाण आप अपने खुद " सच्चे दिल " पूँछ सकते हैं , और , सरल तथा मृदु भाषी होने के कारण महिलाएँ जुड़ तो जाती थी , परंतु शंकालु प्रवृति , व वाचाल प्रवृति होने के कारण टूट कर पलायन भी करती रहती थी आप की महत्वाकांक्षा शिखर पर देखने का ही परिणाम हैं की आप ने एन केन प्रकरेण " बहू को जिला अध्यक्ष बना ही डाला " वह भी किसी संगठन का नहीँ बल्कि " राजनीतिक दल का " भाई संजीव जी , इस ट्रस्ट से या में धीरेन्द्र जी का कोई अहम पद या रोल ना तो था , ना हैं , इसे आप भी जानते हो , हम सभी जानते हैं !यहाँ तक की अपनी ट्रस्टी मेम्बर शिप के अलावा शायद धीरेन्द्र जी ने अपनी तरफ़ से ना तो वार्षिक और ना ही आजीवन सदस्यता के रुप में किसी को नहीँ जोड़ा था ! वित्त के सम्बन्ध में धीरेन्द्र जी का किंचित मात्र दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीँ था ! फ़िर बहू के द्वारा " गबन का आरोप कैसे "धीरेन्द्र जी ट्रस्ट को आज इस " कोमा की दशा " में यानी बंद कराने का सम्पूर्ण जिम्मेदार "आप और हम " यानी हमारी आप की वही बहस ही हैं जो " ए बी के एम में छटपटाहट क्यों :--- से शुरू हुई थी , बाकी कोई भी , जिम्मेदार नहीँ हैं ! बहस में मैंने बायलाज की तमाम गलतियों को उजागर किया था , परिणाम स्वरूप , आपने हमें उस हर प्रकोष्ठ से निकाला यानी रिमूव किया जो कायस्थ वृन्द , जय चित्राँश आंदोलन से निकला हुआ था !संजीव जी , आप की प्रवृति , साथ साथ चल कर हर साथी की हर बातों को , हर क़दम को , हर व्यवहार को , अपनी तीक्ष्ण नज़र में रखना ," गोपनीय रुप से उस व्यक्ति के प्रति , प्रूफ़ एकत्रित करना वह इसलिये की कभी भी कोई भी आपके विपरीत एक भी शब्द बोले तो प्रूफ़ सहित उसे धमकाना और अपनी गिरफ्त में रखना !जैसे आपने हमें 3 बार जेल भेजने की धमकी दिया , वह भी यह कह कर की मेरे पास प्रमाण हैं ! यही धमकी आपने वरिष्ठ नागरिक श्री हरिओम जी व उनकी पत्नी कुसुम जीको भी दिया वह भी प्रूफ़ सहित :-- तो क्या आप अपने हर साथियों के खिलाफ " ऐसे प्रूफ़ ही खोजते रहते हैं " यह कायस्थ एकता के लिये घातक ही नहीँ विद्ध्वंशक भी हैं , " आप कर्म से भले सी आई डी हैं पर अपनो को डराने , धमकाने के लिये नहीँ , बल्कि समाज को सुरक्षा देने के लिये !संजीव जी ! जब आप को अपने पास सारे लोगों का "सबूत " रखने का इतना शौक हैं " तो यह शौक किस लिये , कहीँ आप से जादा लोक प्रियता पाने वाले का " सामाजिक पतन " करने के लिये तो नहीँ क्यों रखते हैं ? क्यों इकट्ठा करते रहते हैं , अपने ही वंशजों के खिलाफ " सबूत " क्या इस लिये तो नहीँ की " किसी को अपने से जादा लोक प्रिय होने पर " आप उसे बदनाम करके " उसका सामाजिक पतन " कर सकें !संजीव जी ! अपने प्वाइंट न .4 पर जो लिखा हैं , जब उनके द्वारा ऐसा प्रयास आप के लिये किया गया, तब आपने " छटपटाहट " वाले जैसा क्या कोई स्टेटमेंट उस समय भी लिखा था ?भाई टी पी बक्शी के बनने के बाद भी लिखा था ?क्या श्रीमती नीरज जी के बाद भी आपने ऐसा कोई लेख लिखा था ?यदि नहीँ तो मेरे बनने के बाद ही क्यों ?संजीव जी आदमी कुत्ता पालता हैं तो उससे भी लगाव हो जाता हैं आप तो मानव हो पद की महत्वाकांक्षा में आपने , अपने अहं को कायम रखने के लिये " धीरेन्द्र जी " से सारे सम्बन्ध , श्री हरिओम जी से सारे रिश्ते , अशोक सर से , आदरणीया सुकेसनी जी से , भाई पुनीत जी से बेटा अभिषेक से , तमाम सम्बन्धों को तोड़ने में क्षण भी नहीँ लगा ! " कभी अपने , अपनी पत्नी के नेचर के बारे में नहीँ सोचा " की बात क्या हैं एक नहीँ , दो नहीँ , तीन नहीँ , चार नहीँ ,बल्कि सारे के सारे "आप के खिलाफ क्यों गये ? फ़िर भी आप हरिश्चन्द्र सत्यवादी बनना चाह रहें हो , त्याग करना सीखो , और सामाजिक बनने में तन , मन और धन खर्च होता हैं " खामख्वाह दूसरे की शादी में दूल्हा नहीँ बना जाता " कभी " अपनी कमाई अर्थात वेतन से 50 या 100 कायस्थो को इकट्ठा करके " कोई छोटा सम्मेलन दो दिन का " अकेले करके दिखा देना , " आकर पैर पकड़ कर माफी माँग लूँगा " खैर संजीव जी मैं लिखता ना , लेकिन आपने 3 बार अपने लेख मे मेरा नाम उद्धृत किया हैं , इस लिये हम भी लिख डालें ! इस लेखमें कहीँ भी आप को कष्टदायक बातें लिख गयी हो तो उसके लिये मैं क्षमा चाहता हूँ !ब्रजेश श्रीवास्तव( भड़ास श्रेणी मे छपने वाले विचार लेखक के है और पूर्णत: निजी हैं , एवं कायस्थ खबर डॉट कॉम इसमें उल्‍लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी कायस्थ खबर डॉट कॉम स्‍वागत करता है । आप लेख पर अपनी प्रतिक्रिया  kayasthakhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं।  या नीचे कमेन्ट बॉक्स मे दे सकते है ,ब्‍लॉग पोस्‍ट के साथ अपना संक्षिप्‍त परिचय और फोटो भी भेजें।)

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One comment

  1. Aap sabhi log aisa kyu ker rahe hai…kayastha samaj ko jodne wale aapsi sambandh kyu tod rahe hai…hum logo ko aap sabhi seniors se bahut umeed hai…please apne giley shikvae mita ker apne mission mai jud jaye aur aane wali new genration ko is jatti pr garv ho na ki wo ye kahe “Kis caste mai paida ho gaye”…

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