कायस्थ कायस्थ की मदद नहीं करते !! भ्रम या हकीकत , आखिर सच क्या है ? आशु भटनागर
आज फिर किसी ने मुझे कहा की कायस्थवाद की बातें बेकार की बातें है , सब अपना उल्लू सीधा करने में लगे है , कायस्थ कायस्थ के कभी काम नहीं आता है I पल भर को मैं अवाक् था क्योंकि कहने वाला व्यक्ति कोई गरीब या मजबूर कायस्थ नहीं था I लेकिन उनके तजुर्बे उसकी बात को साबित कर रहे थे I उनके अंदर एक द्वन्द था समाज में एक दुसरे के प्रति अविश्वाश के लिए I मन में शायद पीड़ा भी रही होगी की आखिर ऐसा क्यूँ है
वो बोलते जा रहे थे मैं मैं सुन भी रहा था और लगातार सोच भी रहा था की उनके सवालों के क्या ज़बाब दूँ ? क्योंकि भावनाओं में बहे कायस्थ बंधू ने कुछ अपने अनुभव और कुछ अपने अपेक्षाओं के पुरे ना होने पर ही ऐसे विचार बनाए थे I खैर काफी देर उन्हें धैर्य से सुनने के बाद मैंने धीरे से उनसे पूछा की क्या उन्होंने भी किसी गरीब या परेशान कायस्थ को मदद की है क्या ?
उत्तर चौकाने वाला था और शायद अपेक्षित भी I उन्होंने मुझे लगभग चिडाते हुए कहा की मैंने ही ठेका ले लिया है जो मैं करूँ ? मैंने धीरे से कहा की आपके साथ लोग नहीं आ पाए तो जो विचार लोगो के प्रति आपने बनाए , वही विचार आपने दुसरे लोगो को अपने प्रति क्यूँ बनाने दे रहे है?
क्या आप जानते है कि आप असल में वही कर रहे है जो आप ने कभी समाज के कुछ कपितय लोगो से पाया I आपने वही लेगेसी अपने पास आने वाले लोगो को दे दी I और शायद यही वो कारण है की सब जगह हर कायस्थ अक्सर कहते हुए मिल जाते है की कायस्थ कायस्थ की मदद नहीं करते I
मैंने उन्हें कायस्थ समाज के ही दो ऐसे रत्नों (राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा और नॉएडा के समाज सेवी राजन श्रीवास्तव )के नाम बताये जिन्होंने शायद ही किसी से कुछ उम्मीद किया हो , जो भी बने अपने बलबूते बने लेकिन दोनों कायस्थ समाज के ज़रूरतमंद लोगो के लिए जो जितना जब बन पढ़ रहा है कर रहे है I अब उत्सुकता से चौकने की बारी उनकी थी I
उन्होंने मुझे जोर देकर पूछा क्या मैं सच कह रहा हूँ , क्या सच में कोई बिना उम्मीद के ऐसा कर सकता है ?
हां और क्यूँ नहीं !!! मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा , इन दो समेत हजारो ऐसे कायस्थ है जो बिना किसी लाभ के समाज के लिए चुपचाप काम कर रहे है I लेकिन हम्मे से अक्सर अधिकतर लोग अपने किसी अनुभव के कारण एक धारणा बना लेते है की कायस्थ कायस्थ की मदद नहीं करता है I जाती की बात बेकार की बात है लेकिन हम ये सोचने की कोशिश कम करते है की आखिर ऐसा होता क्यूँ है ?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम अक्सर किसी कायस्थ के पास सिर्फ अपनी ज़रूरत के समय जाते है I और परिस्थिति वश वो कायस्थ आपकी मदद नहीं कर पाता तो हम उस एक अनुभव का दोष सारे समाज पर डाल देते है I और शायद यही वो कारण है की ९०% कायस्थों के अनुभव एक दुसरे के लिए ऐसे ही होते है I
ऐसे प्रचार से असली तकलीफ उन लोगो को होती है जो बिना किसी स्वार्थ के लोगो की सहायता कर रहे होते है I असल में कम्युनिटी सेवा दोनों और से होती है I अगर आप पहली ही बार किसी अधिकारी से मिले और उससे अपने लिए किसी फेवर की उम्मीद करे तो निश्चित ही आपकी उम्मीद पूरी होने के चांस बहुत कम होंगे I
समाज में एक हमारी कोशिश कायस्थवाद के लिए तब ही होती है जब हमें कोई ज़रूरत होती है , अन्यथा हम ऐसे लोगो को जो समाज के लिए छोटा छोटा ही सही कुछ करने की कोशिश कर रहे होते है उनका उपहास ही उड़ाते दीखते है I दरअसल हमें ये भी समझने की ज़रूरत है की समाज एक दुसरे के साथ खड़े होने से बनता है कोई भी समाज तभी टूटता है जब उसमे शामिल हर व्यक्ति अपना फायदा सोचने लगता है I किसी भी रिश्ते या समाज की एकता इस बात पर निर्भर करती है की उसमे शामिल सभी लोगो विन विन परिस्थिति में रहे I सबको लाभ होता है या लाभ होते प्रतीत होता है तो लोग एक दुसरे के साथ खुश भी रहते है और जुड़े भी रहते है I
समाज में एक दुसरे के लिए करीब आने के लिए अगर हम एक दुसरे को सहयोग बिना किसी अपेक्षा के करना शुरू कर दें तो शायद इन मनोस्थिति को ज्यदा आराम से बदल पायेंगे I