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क्या ईराक़ में आईएसआईएस ने तीन हज़ार वर्ष पूर्व का भगवान् चित्रगुप्त मंदिर ध्वस्त किया ??

बगदाद, रायटर : धरती पर मौजूद प्राचीनतम पुरातत्व एवं सांस्कृतिक धरोहरों में से एक, बेबीलोन सभ्यता काल के मंदिर को आइएस आतंकियों ने ध्वस्त कर दिया है। बुद्धिमत्ता के देवता का यह मंदिर तीन हजार साल पुराना था। यह मंदिर इराक के असीरियन शहर के नजदीक निमरुद में था। संयुक्त राष्ट्र ने इस बर्बादी की पुष्टि की है। उपग्रह से प्राप्त चित्रों से पता चला है कि मंदिर के मुख्य द्वार को भारी नुकसान पहुंचा है। इधर भारत में  राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा ने  इसकी  जानकारी देते हुए कहा की बेबीलोन सभ्यता काल के मंदिर भगवान् चित्रगुप्त का ही मंदिर है जिन्हें वहां द्धिमत्ता के देवता कहा जाता है गौरतलब है की भगवान् चित्रगुप्त को हिन्दू धर्म के अनुसार न्याय और कलम का देवता मन जाता है और कहते है की उनकी पूजा करने से ज्ञान और बुधि जाग्रति आती है I यह मंदिर चन्द्रगुप्त के महामात्य मुद्राराक्षस द्वारा बनवाया गया था,ऐसा बताते हैं। चन्द्रगुप्त का साम्राज्य बेबीलोन( ईराक़) से बोरोबुदुर( इंडोनेशिया ) तक फैला हुआ था। उन्होंने अनेकों चित्रगुप्त मंदिर बनवाये जिसमें पटना सिटी का आदि चित्रगुप्त मंदिर भी है। मुद्राराक्षस से नंदवंश की तीन पीढ़ियों के राजाओं के महामात्य का पद संभाला। लेकिन, चाणक्य की कूटनीति से घनानन्द पराजित हुआ और चन्द्रगुप्त मौर्य गद्दी पर बैठा। चालीस दिनों का जश्न चला। चाणक्य गंगा तट पर पर्ण कुटी बनाकर रहने लगे। जब चन्द्रगुप्त राजकीय जश्न से फ़ारिग़ हुआ तो चाणक्य के पास जाकर उसने साष्टांग प्रणाम किया और राजकाज संभालने को कहा। चाणक्य ने कहा," वत्स, मैं एक कुटिल ब्राह्मण हूँ। मैंने छल- बल- बुद्धि का प्रयोग कर तुम्हें गद्दी पर तो बिठा दिया पर शासन कार्य संभालना मेरे बस की बात नहीं है, उसे तो कायस्थ कुल शिरोमणि मुद्राराक्षस ही संभाल सकते है। उस समय मुद्राराक्षस जंगलों में अज्ञातवास में थे। चन्द्रगुप्त ने उन्हें जीवित या मृत लानेवाले को १००० स्वर्ण मुद्राओं का इनाम घोषित कर रखा था। चाणक्य के आदेश पर उन्हें ससम्मान बुलाकर महामात्य का भार सौंपा गया । मुद्राराक्षस जीवन पर्यंत चन्द्रगुप्त के महामात्य रहे और मौर्य साम्राज्य को बाबीलोन से बोरोबुदुर तक फैलाने का काम किया। ध्वस्त मंदिर में प्रतिष्ठित मूर्ति जिन्हें " अकल का फ़रिश्ता " कहा जाता था वे कोई और नहीं मुद्राराक्षस के इष्टदेव चित्रगुप्त ही थे।

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