

कायस्थ खबर वार्षिक लेखा जोखा : क्या करूँ, कैसे करूँ 2016 का लेखा-जोखा, पुरे वर्ष अपने लोग ही कर रहे अपनो से धोखा. mbb सिन्हा
साल 2016 अपने अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर है। रांची से mbb sinha जी एक कविता भेजी है , प्रस्तुत है चंद दिनों में सिमट जानेवाले वर्ष 2016 का.
2016 का संघर्ष
क्या करूँ, कैसे करूँ 2016 का लेखा-जोखा,
पुरे वर्ष अपने लोग ही कर रहे अपनो से धोखा.
बड़े और राष्ट्रीय संगठन के विधिक उतराधिकारी,
बन गए हैं कायस्थ समाज के बड़े व्यापारी.
बड़े-बड़े बैठकों, सम्मेलनों-आयोजनों के नाम पर,
समाज को एकता बद्ध करने के दंभ पर,
सदस्यता एवं दान बटोरने की प्रक्रिया जारी है.
किसका भला होगा या किसका भला करेंगे जब,
दुर्घटनाग्रस्त परिवार की, घोषित पचास हजार की सहायता मारी है.
सामाजिक संगठन की साख अब इस तरह गिरी है कि,
बड़े पद सामाजिक नेता की जगह राजनितिक नेताओं से भरी है.
और नेताओं को सामाजिक सेवा की जगह सिर्फ वोट की चिंता पड़ी है.
बड़े समाजिक नेता कहलाने की भूख भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है.
व्हाट्स एप्प के सभी ग्रुप सिर्फ व्यक्तिगत गुणगान की भेंट चढ़ी है.
संगठनों की बाढ़ में, अठारह वर्षीय बेटे भी अब राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं.
पति-पत्नी और बेटे-बेटियां ही संगठन के घोषित अधिकारी है.
कायस्थ एकता-कायस्थ एकता का राग अब तोता रटंत हो गया.
हर सामाजिक संगठन में हर जगह पार्टी-पार्टी का भिडंत हो गया.
संगठन का काम अब सिमट गया है बधाई और शोक तक
बैठक–सम्मलेन सिर्फ वाह-वाही के लिए और चुनावी वोट तक.
व्हाट्स एप्प ग्रुप के एडमिन भी अब ग्रुप को संगठन कहने को हैं बेताब.
जैसे अल्ल-बल्ल चैटिंग करते-करते लग गए हों परों में सुर्खाब.
देश भर में जगह- जगह संकटग्रस्त कायस्थों की भरमार है.
डॉक्टर, मरीज, बेरोजगार युवा, अमीर और गरीब सब इसमे शुमार है
पर हर संगठन में पदाधिकारी बनने- बनाने में मची जूतम पैजार है.
डंस रहे अपने, अपने ही पैरों को, बड़े-छोटे सबकी करनी से पूरा समाज शर्मसार है.
तथाकथित बुद्धिमान कहलाते, पर मूर्खों से भी नीचे चले गए हैं.
एकता- एकता के नाम पर हम अपने नेताओं से ही छले गए हैं.
खो गए डॉ ओंकारनाथ, पिटे डॉ विजय, बेटी पूनम बन गई चंदा
टूटी अजित की आस, टूट रही विश्वास, घुट रहा समाज का हर बंदा
खट्टे-कड़वे अनुभव देकर विदा हो रहा 2016 का साल.
नयी चुनौती अब पेश करेगा आनेवाला 2017 वां साल.
हे भगवन हे चित्रगुप्त हमसब बहुत दुखी हैं तेरे पुत्र.
साल दर साल बीत रहा, अब तो बताओ पक्का सूत्र?
बुद्धिमान का तगमा पहने, उपहास उड़ाता हम अज्ञानी हैं.
चाहे जैसे हों हमसब, अंश तुम्हारे, तुम सर्वज्ञानी हो.
दुखी नहीं होना भगवन गर, कोई न पूजे तुझको.
स्वार्थ, घमंड से चूर कुपुत्र हैं वे, संदेह नहीं है मुझको.
जय श्री चित्रगुप्त.
-महथा ब्रज भूषण सिन्हा.

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