
आखिर सपा/बसपा जैसी दलित और समाजवादी सोच के दलों में कायस्थ महापुरुषों के लिए कोई सम्मान क्यूँ नहीं है ? : आशु भटनागर
आज स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री स्व लाल बहादुर शास्त्री जी की ५१ वी पुन्य तिथि थी I यूपी चुनावों के मदेनाजर मुझे पूरा यकीन था की कम से कम इस बार तो यूपी में सभी नेता इस दिन को जोर शोर से मनाएंगे I लेकिन मेरी उम्मीदों के उलट यूपी के दो प्रमुख दलों को छोड़ कर सभी क्षेत्रीय दलों ने शास्त्री जी को श्रधान्जली देने में परहेज बरता Iआज सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के नेता ज़रूर शास्त्री जी को श्रन्धाजली देते नजर आये लेकिन बाकी कहीं भी भारत माता के इस सपूत को याद नहीं किया गया I दुर्भाग्य तो ये रहा की इन पार्टियों में रहे कायस्थ नेता भी लाल बहादुर शास्त्री जी को श्रध्नाजली देने नहीं आये I इस कड़ी में बसपा के घोषित तीनो प्रत्याशी चाहे वो इलाहबाद उत्तरी से अमित श्रीवास्तव , लखनऊ उत्तरी से अजय श्रीवास्तव या फिर लखनऊ मध्य से राजीव श्रीवास्तव , सभी सामने नहीं दिखे I यही हाल समाजवादी पार्टी से जुड़े प्रत्याशियों का भी रहा Iआखिर कब तक हम राजनैतिक दलों में अपने टिकट के लिए अपने ही समाज और महापुर्शो के सम्मान को दांव पर लगाते रहेंगे ? क्या मायावती के सोशल इन्जीयारींग यही कहता है की की उसमे बाकी समाज सिर्फ आंबेडकर या उनके बाकी नेताओं को सम्मान दें लेकिन अपने नेताओं को भुला दे I या फिर समाजवादी होने पर हमें सिर्फ लोहिया और ज्ञानेश्वर मिश्र सरीखे नेताओं के ही गुणगान करने होंगे ?अपने महापुरुषों के सम्मान के लिए इस विषय पर जब मैंने कई नेताओं से बात करी तो लगभग सभी ने पार्टी का वास्ता देकर बयान देने से मना कर दिया I लेकिन मेरा एक ही सवाल ऐसे राजनातिक दलों के नेताओं से भी है की जब उन्हें कायस्थ समाज के वोट चाह्यी तो हमारे नेताओं को सम्मान क्यूँ नहीं ?आखिर राजनीती में आने की इतनी बड़ी कीमत कायस्थ समाज ही क्यूँ चुकाए ? क्या कायस्थ समाज को अपने नेताओं को सम्मान दिलाने के लिए इन दलों से अलग कोई नया दल ही खोजना होगा या फिर वापस अपने पारंपरिक दलों कांग्रेस या भाजपा में ही जाना श्रेयकर रहेगा , जहाँ कम से कम अपने नेताओं को सम्मान देने की तो आज़ादी है I