सीएम् के लिए लगी रेस में सिध्धार्थ नाथ सिंह को अपने ही लोगो का साथ नहीं मिला, ब्राह्मण और ठाकुर लाबी के सामने पड़े कमज़ोर
राजनीती में भाग्य या अच्छा होना ही महत्वपूर्ण नहीं होता है , अच्छे लोगो को भी राजनीती करनी ही पड़ती है I यूपी में मुख्यमंत्री की रेस में जिस तरह से ठाकुर , ओबीसी , ब्राह्मण समाज ने जबरदस्त लाबिंग करी उसने एक बार कायस्थ समाज को एक तरफ खड़ा कर दिया है I हालांकि राजनीती में कभी भी कुछ अंतिम नहीं होता है और नयी संभावनाओं के होने की कोई सीमा भी नहीं होती लेकिन फिलहाल की स्थिति में जिस तरह से सिद्धार्थ नाथ सिंह रेस में होने के बाबजूद हाशिये पर चले गए वो ज़रूर हताश करता है I
यु तो अभी भी सिद्धार्थ के किसी महत्वपूर्ण पद पर होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा है लेकिन ये भी सही है की विशुद्ध हिन्दूवासीएम् के लिए लगी रेस में सिध्धार्थ नाथ सिंह को अपने ही लोगो का साथ नहीं मिला, ब्राह्मण और ठाकुर लाबी के सामने पड़े कमज़ोरदी सरकार में सिद्धार्थ अकेले ही बाकी जातीय लाबियो से लढ़ रहे थे I सिद्धार्थ के लिए जहाँ कायस्थ लाबी , ठाकुर , ब्राह्मण और ओबीसी लाबी के सामने कमजोर भी थी वही समाज से भी हम ये सन्देश देने में असफल रहे थे की कायस्थ समाज सिद्धार्थ को मुख्यमंत्री देखना चाहता है I या फिर यूँ कहे की कुछ अपने ही सिद्धार्थ को लेकर तय नहीं कर पाए की वो मुख्यमंत्री बने या नहीं बल्कि हम इस बात का मजाक उड़ाने से भी पीछे नहीं रहे की वो कैसे मुख्यमंत्री हो सकते है
५ दिनों में राजनैतिक हलको में सबसे कमजोर लाबी अगर कोई साबित हुई तो वो कायस्थ लाबी हुई या फिर यूँ कहे की कायस्थ लाबी अभी तक हम बना ही नहीं पाए है I हालांकि ये कोई आखरी लड़ाई नहीं है जिसे हारने से कायस्थ समाज के अस्तित्व पर कोई खतरा है पर ये महत्वपूर्ण पड़ाव हो सकता था जिसे हम हासिल कर सकते थे I
आगे क्या होगा ?
यूपी की राजनैतिक लड़ाई में कायस्थ समाज ने अंगडाई तो ले ली है मगर अपने विरोधाभास के बीच अभी हम एक जुट नहीं हो पाए है I दरअसल राजनितीक शक्ति बन्ने की इच्छा तो हमने अभी प्रबल की है लेकिन राजनैतिक शक्ति के बन्ने के लिए कुछ कर गुजरने जज्बा अभी बाकी है I
कायस्थ समाज को अपनी प्रबुद्ध वर्ग और सेकुलर छवि से भी बहार आना पड़ेगा क्योंकि उसके चलते ना सिर्फ हम हमेशा निर्णायक कहने या दिखने से बचते है बल्कि कोशिश करते है की हम किसी विवाद में ना फंसे I आगे के लिए अभी यही कहा जा सकता है की युवा पीड़ी को बने हुए प्रतीकों को मजबूत करने के लिए आगे आना होगा I तमाम मतभेदों को दूर कर एक साथ आना होगा तभी कुछ हासिल किया जा सकता है I