कायस्थ समाज का दुर्भाग्य ही कहा जायगा कि अपने को बुद्धिजीवी समझने वाला समाज मानसिक व वैचारिक रूप से इतना कमजोर है : महथा ब्रज भूषण सिन्हा
उलझे प्रश्न?
इधर कई दिनों में कायस्थ समाज में कुछ घटनाएँ हुई है जिस पर समाज को चर्चा करनी चाहिए. हम जिसे प्रमुख घटना मानते हैं, वह है भगवान श्री चित्रगुप्त की आड़ में सामाजिक भ्रष्टाचार. स्थिति तब और दयनीय हो जाती है जब कोई वरिष्ठ व्यक्ति भगवान श्री चित्रगुप्त जी को ही बंधक बनाने सरीखा कृत्य करता है. अमूमन अधिकतर भगवान् श्री चित्रगुप्त मंदिर स्वार्थ लोलुप तत्वों के गिरफ्त में है. सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकतर मंदिरों में अधिकृत प्रबंध समिति ही नहीं है. जहाँ है वहां किसी न किसी की दबंगई चल रही है. परिणामस्वरूप, मंदिर की उचित देखभाल के साथ ही मंदिर से होनेवाली आय व्यक्तिविशेष के धन लाभ में परिवर्तित हो गई है. जो दु:खद ही नहीं, सामाजिक-आर्थिक अपराध भी है.
इधर समाज में वर्चस्व स्थापित करने की आकाशीय प्रयास चरम पर है. इस खेल में हास्यास्पद बात यह है कि युवा भी इस वर्चस्व की लड़ाई में तथाकथित अपने कैरिएर तलाश कर रहे हैं. देखने में यह भी आ रहा है कि भगवान् श्री चित्रगुप्त पर अनेक लोग समाज को अलग-अलग निर्देश-आदेश देकर अपने को भगवान् श्री चित्रगुप्त के परम भक्त एवं समाज सुधारक निरुपित कर स्वार्थसिद्धि में संलग्न हैं. भगवान श्री चित्रगुप्त नामधारी तथाकथित संगठन एवं श्री चित्रगुप्त जी के नाम के भरोसे चल रहे फेसबूकिया / व्हाट्स एप्प ग्रुप तरह-तरह से लोगों को भ्रमित कर आस्था से तो खिलवाड़ कर ही रहे हैं, समाज का भी काफी नुकसान कर रहे हैं.
व्हाट्स एप्प के ग्रुपों में आखिर होता क्या है? अधिकतर ग्रुप सिर्फ युवाओं के मनोरंजन हेतु एवं कुछ लोगों के राजनितिक प्रचार का जरिया बना हुआ है. कोई इस ग्रुप को ही अपना संगठन मान बैठा है. सब अपने-अपने हित के अनुसार किसी के फोलोवर हैं तो कोई उन्हें फ़ॉलो करता है. अगर आप यह सोचते हैं कि यहाँ किसी सामाजिक विषय पर गंभीर चर्चाएँ होंगी, तो यह भ्रम है.
एक और महत्वपूर्ण खबर यह है कि लोगों को सोशल मीडिया से पदाधिकारी नियुक्त किया जा रहा है और फिर सोशल मीडिया के जरिये ही पद मुक्त कर दिया जा रहा है. इसे अगर पदलोलुपता कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. बिना सोचे-समझे किसी तरह पदाधिकारी बन जाने का आकर्षण या पदलोलुपता ही ऐसी घटनाओं को जन्म देता है. अब प्रश्न यह हो रहा है कि क्या व्हाट्स एप्प पर इस तरह की नियुक्ति अथवा निष्कासन सही है? अगर किसी ने इस तरह की नियुक्ति को स्वीकार कर लिया है, तो निष्कासन भी स्वीकार कर लेना चाहिए.
बड़ा आश्चर्य होता है कि समाज के वरिष्ठ लोग भी इस तरह की नियुक्ति एवं तथाकथित सम्मान से गदगद हो जाते हैं. दस-बीस व्यक्ति मिलकर किसी को कोई उपाधि देकर तो किसी को शाल ओढाकर सम्मानित बता देता है. इस तरह के सम्मान प्राप्त व्यक्ति भी इस तथाकथित सम्मान के कर्ज चुकाने हेतु उस ग्रुप को समय-समय पर वाह-वाही देते रहते हैं, जिससे समाज में विकृतियाँ बढती ही जा रही है.
यह भी कायस्थ समाज का दुर्भाग्य ही कहा जायगा कि अपने को बुद्धिजीवी समझने वाला समाज मानसिक व वैचारिक रूप से इतना कमजोर है.
-महथा ब्रज भूषण सिन्हा.