समाज के अंदर हो रही चीरहरण की घटनाओं पर देहरादून की डा ज्योति श्रीवास्तव ने पिछले दिनों बड़ा सवाल उठाया की हम आपकी विवादों या प्रतिस्पर्धा के चलते एक दुसरे के व्यक्तिगत बातो को सर्वसमाज के सामने क्यूँ उछाल रहे है I और इसका सबसे दुखद पक्ष ये है की एक महिला नेत्री ही इसको आगे बढ़ कर महिला नेत्री के बारे अनाप शानाप लिख रही है I समाज में स्वतंत्रता के इस मोहोल पर डा ज्योति के साथ सभी बुद्धिजीवी खड़े नजर आ रहे है और ऐसे कार्य करने वाले सभी लोगो की भर्त्सना भी कर रहे है लेकिन अभी ऐसी महिला नेत्रियो को उनकी गलती समझ नहीं आ रही है वो वापस खुला चैलेन्ज देते हुए कह रही हैं की वो अभी और भी बहुतो की पोल खोलने जा रही है गोया समाज में में एक दुसरे की पोल खोलना ही आजकल समाज सेवा हो गया है I समाज में इस तरह घटनाओं पर नजर रखने वाले युवा करुण श्रीवास्तव इस पर बेहद दुखी होकर इतनी नाराजगी प्रकट कर चुके है की उन्होंने तो दुष्प्रचार करने वाली इस नेत्री को साल भर तक सभी कायस्थ आयोजनों से दूर रखने तक की मांग कर डाली है I वही फैजाबाद के ब्रजेश श्रीवास्तव भी ऐसी स्वतंत्रता की भर्त्सना करते हुए पूछ रहे है की आप बताईये " क्या XXता को अपनी निजी लड़ाई " " सोशल मीडिया " पर लाना न्यायोचित था ? गरीब से गरीब कायस्थ , महिला या पुरुष हो , क्या गरीबी के कारण उसका अपमान करना वह भी एक सम्मानित महिला द्वारा न्यायोचित था ? न्याय आप सभी के हाथो में हैं , XXका जी की तो मात्र फरियाद हैं ! इधर कायस्थ वृन्द के धीरेन्द्र श्रीवास्तव भी इस नेत्री का स्वतंत्रता का नाजायज़ फायदा उठाने पर व्यथित हो कर कहते है की इस स्थिति को तो रोकना ही पड़ेगा। भयावह पतन की ओर ले जा रहे है ऎसे स्त्री पुरूष जो सोशल मीडिया पर भाषायी संयम का वरण न कर पा रहे है। समाज को चाहिये कि मिथ्या व भ्रामक कथन एवम् गैर संसदीय शब्दो का प्रयोग करने वाले ऐसे तथाकाथित देवियो व सज्जनो का उनके पैरोकारो/हितैषियो सहित सम्बद्ध संस्थाओ आदि का पुरजोर बहिष्कार करे तभी हमारा समाज लक्ष्यो को प्राप्त कर सकेगा। वही एक सज्जन लिखते है XXता ji को ये समझना चाहिए कि उनके बहन की शव यात्रा में कितने लोग शामिल थे।जो बताता है कि समाज उनके साथ कितना है। फिर भी अपनी आदत से बाज नही आती है शर्म की हद है। ऐसे में बड़ा सवाल आज एक बार फिर से है की कायस्थ परिवार एक बार फिर अपनी स्वतंत्रता की सीमा तलाशना शुरू करे ताकि फिर कोई अबला गरीब महिला किसी नेत्री की महत्वाकांक्षा की बलि ना चढ़ जाए , ऐसी महत्वाकांक्षाओ को रोकना भी होगा नहीं तो सर्व समाज में कायस्थ समाज की प्रतिष्ठा दांव पर लगने में समय नहीं लगेगाआज सामाजिक वर्चस्व और स्वयंभू नेता या नेत्री कहलाने का भी दौर है , कायस्थ समाज में नेता बन्ने या आगे बढ़ने की ललक होना गलत बात भी नहीं है लेकिन इसी ललक में लोग सामाजिक मर्यादाओं को तार तार करने से भी पीछे नहीं हट रहे है I ऐसा ही एक मुद्दा समाज में पिछले कुछ दिनों से उठ रहा है I
स्वतंत्रता दिवस पर स्वतंत्रता का मतलब भी समझे कायस्थ समाज … एक निरंकुश नेत्री की अबला कायस्थ महिला के चरित्र हनन पर विशेष
देश आज स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, हम सब भी एक दुसरे को इस महान पर्व की बधाई दे रहे है , कायस्थ समाज के सभी लोगो ने सोशल मीडिया पर बधाई देने का जो उत्साह दिखाया हुआ है वो काबिले तारीफ़ भी है I लेकिन इस सब के बीच एक सवाल भी उठ रहा है की आखिर इस स्वतंत्रता का दायित्व भी हम उठा पा रहे है या इसका लाभ उठा कर समाज की मर्यादा और नियम तक भूल जा रहे है I