दिशाविहीन हो रहे कायस्थ समाज को कौन राह दिखाए : राजीव रंजन
एक संगठन कहता है कि कायस्थ समाज अगर अपना हित चाहता है तो जंतर-मंतर पर जुटे, तो दूसरा कह रहा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तो कोई मध्य प्रदेश तो कोई कहीँ और फिर किसी की आवाज़ आती है कि हम किसी से कम नहीं, तो कोई कहता की अगर हमारा हिस्सा नहीं मिला तो हम सरकार की ईट से ईट बजा देंगे, कोई कह रहा हम पंजिकृत संगठन हैं ,कोई कह रहा हम असली संगठन हैं।
मेरी जानकारी में कायस्थ समाज की कई छोटी - बड़ी संस्थाएं जैसे अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, कायस्थ वाहिनी अंतर्राष्ट्रीय , कायस्थ वृन्द, कायस्थ.कॉम, अखिल भारतीय कायस्थ जागृति मंच, सरीखी कई संस्था राष्ट्रीय व अंतरास्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही है।
बिहार की बात करें तो, मेरी जानकारी में एक ही नाम की दो संस्था पंजीकृत और तथाकथित असली अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के अलावे भी कई संगठन जैसे चित्रगुप्त समाज बिहार- झारखण्ड, सम्पूर्ण चित्रांश चेतना मंच, कायस्थ जागृति मंच, कायस्थ क्रन्तिकारी विचार मंच, कायस्थ चित्रगुप्त सेना, चित्रगुप्त कल्याण समिति इत्यादि कई ऐसे संगठन हैं जो कायस्थ हित में कार्यरत हैं। इनके अलावे कुछ ऐसे संगठन भी हैं जिनके पास अध्यक्ष ,उपाध्यक्ष व् महसचिव, सचिव के आलावे कोई सदस्य भी नहीं है।
समाज की चिंता यह नही की इनमे असली कौन है , शायद सभी सामाजिक एकता के लिए समर्पित और निष्ठावान हैं , मगर क्या ऐसा नहीं लगता की अपने को सही साबित करने एवं दूसरे संगठन को कमजोर व गलत सिद्ध करने के प्रयास मे हम अपने मूल उद्देश्य से दूर हो रहे हैं ? क्या ऐसा नही लगता की इन सभी संगठनो के बीच समन्वय की आवश्यकता है ।
समाजहित के बडे सवालों पर एक सामुहिक निर्णय लिया जा सके इसलिए सभी संगठनों को समाजहित में एक होना ही होगा।
इन संगठनों को चलानेे वाले लोगों से इतर हमारे समाज में एक "न्यूट्रल तबका"भी है जिसे सामाजिक गतिविधियों से कोई खाश मतलब नहीं है, यह तबका चुनाव का दिन छुट्टी के दिन के रूप में मनाता है, और थोड़ा - बहूत वो जागरूक है ,जो किसी खास पार्टी का मतदाता है। उसके लिए चुनाव के दौरान कायस्थ समाज के प्रत्याशी की महत्ता नहीं बल्कि उस खाश राजनैतिक दल के लिए दर्द है। इस सोच को भी बदलना होगा, वर्ना वह दिन दूर नहीं जब इस समाज के वर्तमान प्रतिनिधियों को सब्जी के तेजपत्ते की तरह चूस कर फ़ेंक दिया जायेगा और बीते दिनों बनी सरकार का स्वरुप देखकर तो कुछ ऐसा ही लगता है।जिस दल को हमारा समाज झोला भर-भर के वोट देता है वह हमें पद-प्रतिष्ठा के नाम पर बड़ा शून्य प्रदान करता है।
मुझे लगता है सारे के सारे संगठनों एक होकर इस न्यूट्रल तबके को कायस्थ प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करने को जागरूक करना चाहिए।
मेरी समझ मे सभी कायस्थ संगठन के प्रतिनिधियों के अलावे समाजहित मे कार्यरत कुछ प्रमुख लोगों की राय व सहमति से उनके मार्गदर्शन में कायस्थ संगठन एकता समिति का गठन किया जाना चाहिए और मुझे ऐसा महसुस होता है इसमें देरी नहीं करनी चाहिए, हो सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय मे अभी परेशानी हो, तो क्यों न इसकी प्रदेशस्तरीय शुरुआत ही की जाय ? भले ही हमारी वैचारिक भिन्नता हो पर हमारा मकसद एक मजबूत समाज का निर्माण होना चाहिए।
और अगर हमे एकजुट करने वाले ये संगठन ही आपस मे एकजुट नही हो सकते तो, फिर कायस्थ एकता की बात तो हास्यास्पद ही है
राजीव रंजन