ABKM के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद यूपी उपचुनावों में छाई चुप्पी समाज के लिए घातक साबित होगी – आशु भटनागर
आशु भटनागर I २५ फरवरी को आगरा में अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष सुबोध कान्त सहाय को सर्वसम्मति से बनाया गया I काफी समय बाद अखिल भारतीय कायस्थ महासभा को लेकर नयी उम्मीदे लोगो जगनी शुरू हुई I लोगो को लगा की एक बड़ा कद का नेता वापस अगर महासभा की कमान संभालेगा तो समाज की बरसो से दबी भावनाओं को उभार मिलेगा I
लेकिन आज १५ दिनों बाद देखे तो ऐसा लगता है की समाज तो सुबोध कान्त सहाय को लेकर अपनी भावनाए प्रदर्शित करने में सफल रहा लेकिन सुबोध कान्त सहाय राष्ट्रीय अध्यक्ष के तोर पर अभी भी समाज से संवाद बनाने में सफल नहीं रह पा रहे है I अब तक मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के फ़ौरन बाद महामंत्री के तोर पर विश्वविमोहन कुलश्रेष्ठ को ही चुन लिया गया I हालांकि इस पर महासभा में भी विरोध के स्वर उभरे हम जैसे बाहरी लोगो को उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन महामंत्री के अलावा जिस तरह से बिना आफीशय्ली घोषणा के बाकी पुराने लोगो ने अपने अपने आप को पुराने पदों पर समायोजित दिखाया वो हैरानी वाला था
लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है की राष्ट्रीय अध्यक्ष की छोटी छोटी बातो पर ध्यान ना देने जैसी बातें I वस्तुत सुबोध कान्त सहाय बाकी तो छोड़े होली जैसे त्यौहार पर भी कायस्थ समाज से खुद को कनेक्ट नहीं कर पाये I दरअसल सुबोधकान्त सहाय को ये समझने की बहुत ज़रूरत है की कायस्थ समाज उनकी और बहुत आशा से देख रहा है पिछले १० सालो में जिस तरह से अनुभव एवं आधार हीन लोगो ने काय्स्थ्समाज के स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष बन्ने की मुहीम चलाई उससे कायस्थ समाज में संगठन के लिए अविश्वास की स्थिति आ गयी थी I
यूपी उपचुनाव में भी अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तोर पर उनकी चुप्पी कायस्थ समाज को परेशान कर रही है I समाज इस बदलाव के बाद उनसे इन चुनावों किसी संवाद और प्रदेशन की उम्मीद कर रहा था I लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं दिखा I मुझे कई लोगो ने अभी तक ये बताया की लोग उनसे सम्पर्क साधने में असफल है I
सुबोध कान्त सहाय को अपने राजनैतिक अपेक्षाओ को भी कायस्थ समाज पर लादने से बचने की कोशिश करनी होगी , KADAM उनका राजनैतिक एजेंडा हो सकता है लेकिन आम कायस्थ अपने को मुसलमानों , या पिछडो से जोड़कर नहीं देखता है I उनको ये समझना होगा की जातीय संगठन जातीय अस्मिता के लिए होते है और अगर वो उसे साबित करने में नाकाम रहते है तो प्रभावहीन हो जाते है I किसी भी पिछड़ी जातियों (चाहे वो मुसलमान या पिछड़े हो ) से मिलकर आप कभी भी तरक्की नहीं पा सकते है क्योंकि उन जातियों और धर्मो की संकीर्णता आपको गर्त में धकलने के लिए काफी है I इसलिए सामाजिक वजोद्द के लिए कायस्थ समाज की संस्कृति और विचार शुद्ध रहने चाहए और उसमे किसी भी दूसरी जातियों और धर्मो के राजनैतिक प्रयोग की आवश्याकता नहीं है
ऐसे में दिल्ली में होने वाली अखिल भारतीय महासभा की बैठक ही सुबोध कान्त सहाय के अगले कदम और रणनीति का निर्णय करेगी