समाजसेवा में किसी की मृत्यु या हत्या भी सेल्फी के साथ प्रचार का माध्यम बन गयी है – अतुल श्रीवास्तव
आज एक खबर पर नजर पड़ी कि गोरखपुर मे किसी कायस्थ बंधु की नृशंस हत्या कर दी गई हमारी तरफ से उन को श्रद्धांजलि.. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ??
अब आते है खबर पर उसमे दिया था कि फला संगठन के फला फला पदाधिकारी गण उनके अंतिम संस्कार मे संम्लित हुए.. उसको पढकर ऐसा लगा जैसे उस व्यक्ति की मृत्यु से ज्यादा महत्वपूर्ण ये बताना था कि फला संगठन के फला फला पदाधिकारीयो ने शिरकत की.. जिसने ये सोचने को मजबूर कर दिया कि आखिर हमारे समाज के संगठन एवं समाज सेवी किस पथ पर अग्रसर है....आज कल हमारे समाज मे एक नया चलन शुरू हुआ है प्रचार पाने का उसके लिए भले ही किसी मौत हुई हो या कोई और मौका हमारे समाज बंधु कोई मौका हाथ से गवाना नहीं चाहते है.. क्योकि इसी बहाने उन्हे स्वम को और अपने संगठन को चमकाने का मौका जो मिल जाता है इसे कहते है.. मौका देखकर चोका लगाना ... और अब हालत दीनो बा दिन बदतर होते जा रहे है... मदद से ज्यादा बताने और जताने का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है।और ये आगे चलकर समाज के लिए घातक सिद्ध होने वाला है...अगर इस पर गंभीरता से चिंतन करे तो समझ मे ये आता है आज कल की समाज सेवा स्वम को स्थापित करने की सेवा बन चुकी है येन केन प्रकारेण कैसे भी भले किसी की मौत हो या मदद..बस तवा दिखते ही हमारे समाज के तमाम संगठन अपनी रोटीया सेक ने ने मे लग जाते है अगर गमी मे भी शरीक होगे तो बजाय उस पीड़ित परिवार की मदद के और ये बिना जाने कि उस परिवार को क्या आवश्यकता है उनके लिए क्या किया जा सकता है कैसे किसी को न्याय मिले कैसे मदद मिले इन प्रयासओ को छोड़कर.. इस बात के प्रयास मे ज्यादा दिखते है कि कैसे अपने संगठन और अपने नाम का प्रचार करे जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उनके बारे मे और उनके संगठन के बारे मे जाने ..हालात यहा तक आ पहुचे अब मृतक के साथ सेलफी भी आने लगी है.. फोटो शेयर होने लगे है . जैसे ऐसा करके उन्होने अपनी जिम्मेदारीयो से मुक्ति पा ली हो.. इस मानसिकता को बदलना होगा ...सभी को सोचना होगा आज जरूरत प्रचार से ज्यादा सुधार की है यदि वाकई मे समाज के लिए कुछ करने का जज्बा है.. जाने क्यो संगठनो को समझ मे नही आता है कि आज समाज को जरूरत नाम से ज्यादा काम की है . समाज जिस दिन इन बातो को नकारने लगेगा.. सकारात्मक सोच और सकारात्मक कार्य की ओर अग्रसर हो जाएगा ... जिस दिन हम नाम की बजाय काम पर ध्यान देगे.. उस दिन इन संगठनो और समाज सेवियो को अपने असली लक्ष्य की प्राप्ति होगी..
" लेकिन ये अभी असान नहीं है.. क्योकि बहुत कठिन है डगर पनघट की ....
ये सब देखकर खुद को लिखने से रोक नहीं पाया अपनी बात इन पंक्तियों से समाप्त करता हू..
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ, कि तमाशा न बने,
और तू समझता हैं मुझे, तुझसे गिला कुछ भी नही…धन्यवाद
जय श्री चित्रगुप्त
अतुल श्रीवास्तवचौपाल में छपे विचार लेखक के अपने है कायस्थ खबर का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है