कहा जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। गत तीन दिनी पटना प्रवास ने संभावनाओं के उस क्षितिज को उद्घाटित किया जिस पर देश को प्रथम राष्ट्रपति देनेवाले राज्य बिहार, शहर पटना और कायस्थ समाज को आगामी प्रधानमंत्री देने का अवसर मिल सकता है।
कायस्थ विरोधी षड्यंत्र
विचित्र विरोधाभास है कि हिंदू महासभा के आरंभ में महाराष्ट्र वीर जगन्नाथ प्रसाद वर्मा से लेकर वर्तमान भाजपा में आर के सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा व रविशंकर प्रसाद जैसे समर्थ व्यक्तित्वों के होते हुए भाजपा नेतृत्व कायस्थों के कमजोर करने की राह पर चलता रहा है । अटल-शासन में मंत्री रह चुके शत्रुघ्न सिन्हा को लगातार हाशिए पर रखकर उपेक्षित करने से मन नहीं भरा तो टिकिट न देकर दल छोड़ने के लिए विवश किया गया। पटनानिवासियों ही नहीं भारत के कायस्थ जनों के आशा-केंद्र आर. के. सिन्हा को टिकिट न देकर भाजपामें बैठे कायस्थ विरोधी तबके ने कायस्थों की आशा पर तुषाराघात कर दिया। देश के कोने-कोने से विश्व कायस्थ समाज, चित्रगुप्त सेना, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद, इटरनल कायस्थ फ्रेटरनिटी आदि संस्थाओं के कार्यकर्ता आर. के. सिन्हा को प्रचारार्थ पटना जाने के लिए तैयार हैं किंतु इस निर्णय ने उन्हें इतना आक्रोशित किया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में भाजपा से मुख मोड़कर बैठ गए हैं। कायस्थ विरोधी तबके ने आत्मघाती कदम उठाकर पटना को कुरुक्षेत्र से- सिन्हा द्वय को बाहर कर दिया है।
कायस्थ सांसद घटाने का षड़यंत्र
देश की सर्वाधिक बुद्धिजीवी और शिक्षित कायस्थ जाति के गिने-चुने सांसदों-विधायकों को भी समाप्त करने की नीति के अंतर्गत बिहार के तीन सांसदों आर. के. सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा व रविशंकर प्रसाद के घटाकर एक करने की कुटिलतापूर्ण चाल चलते हुए कायस्थ विरोधी तबका शत्रु का टिकिट काटकर ही नहीं रुका अपितु एक साल बाद राज्यसभा कार्यकाल समाप्त कर रहे आर. के. सिन्हा को टिकिट देने की प्रत्याशा में दिल्ली बुलाकर टिकिट न देकर अपमानित भी किया। हद तो तब हुई जब राज्य सभा में चार साल का कार्यकाल शेष रखनेवाले रविशंकर प्रसाद को पटना से प्रत्याशी बना दिया गया। उल्लेखनीय है कि रविशंकर प्रसाद की छवि सक्रिय सामाजिक कायस्थ संस्थाओं से दूर रहने की है जबकि आर. के. सिन्हा कायस्थ समाज में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।
कायस्थ विरोधी धड़े ने 'या कायम को कायम मारे या मारे करतार' का नीति का अनुसरण करते हुए पटना में तीनों कायस्थ नेताओं के लड़ाकर कायस्थ सांसदों को घटाने का घटिया दाँव खेला।
उल्लेखनीय कि भोपाल मध्यप्रदेश को वर्तमान लोकप्रिय सांसद आलोक संजर का टिकिट काटा जाकर साध्वी प्रग्या को दिया जा चुका है।इस चक्रव्यूह में आर. के. सिन्हा को शत्रुघ्न का तरह फँसाकर दल बाहर किए जाने की चाल का पूर्वानुमान कर चतुर आर. के. ने दल के प्रति प्रेम और समर्पण का परिचय देते हुए अन्यत्र प्रचार कार्य में खुद को लगा लिया।
पटना से प्रधानमंत्री
भाजपा को भीतरी कायस्थविरोध ने पटना को मतदाताओं के सम्मुख संभावना का अकल्पनीय अवसर ला दिया है। विपक्ष में सर्वमान्य प्रधानमंत्री प्रत्याशी न होने के तर्क का उत्तर पटना से रविशंकर प्रसाद को पटकनी देकर शत्रु के मित्र बने रहकर पटनावासी दे सकते हैं। इससे आर. के., शत्रु व रविशंकर तीनों कायस्थ सांसद बने रह सकते हैं।मौका और चौका
भाजपा नीत गठबंधन को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में महागठबंधन सर्व सम्मत नेता की तलाश कर सरकार बनाने का दावा पेश करेगा। सांसद चुने जाने पर शत्रुघ्न सिन्हा को कांग्रेस के साथ-साथ सपा - बसपा गठबंधन की समर्थन मिल सकेगा चूँकि शत्रु-पत्नी पूनम सपा का सांसद प्रत्याशी हैं। ऐसी स्थिति में अटल सरकार में शत्रु के साथ मंत्री रह चुके शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू व ममता का समर्थन उन्हें मिल सकता है। पटनायक को भी साथ आने में परेशानी न होगी। प्रधान मंत्री बनकर चौतरफा आक्रमण झेलने के स्थान पर राहुल सोनिया की तरह किंगमेकर बनकर संतुष्ट, सुरक्षित और सुखी रह सकते हैं।पटनावासी देश को भावी प्रधानमंत्री देने की संभावना के बीज को वट वृक्ष बनाते हैं या नष्ट कर देते हैं इसका उत्तर चुनाव परिणाम देगा। अतीत में देवेगौड़ा, चंद्रशेखर, गुजराल, चरणसिंह जैसे असंभावित प्रधान मंत्री बन ही चुके हैं। शत्रुघ्न का आभामंडल और समर्थन उनसे बीस ही है, उन्नीस नहीं। रही बात स्थायित्व की तो सभी पूर्ववर्ती गैर कांग्रेसी थे, शत्रु कांग्रेसी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि पटना प्रधानमंत्री बनाने की संभावना को कैसे मूर्त करता या नहीं करता है।संजीव वर्मा 'सलिल' लेख में दिए विचार लेखक के हैं कायस्थ खबर का उनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है
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