आज आवश्यकता है कि सामाजिक संगठनों की भूमिका पर जरूर चर्चा हो – अतुल श्रीवास्तव
आज आवश्यकता है कि सामाजिक संगठनों की भूमिका पर जरूर चर्चा हो . वैसे देखा जाय तो ढेरो महासभाएं, मंच मोर्चा फ़ाउंडेशन संगठन अपने वर्ग को मजबूत करने के बजाय अपनी ही विरदारी मे वैमनस्य पैदा करने में लगी रहती हैं. यही नहीं, यह तमाम सामाजिक संगठन राजनीतिक पार्टियों के पिछलग्गू भी हैं, जिसके कारण जरूरत के समय इस प्रकार के संगठनों की भूमिका शून्य हो जाती है.
आप जहा भी देखे तो आपको कोई न कोई सामाजिक संगठन दिख जायेगा, लेकिन उसकी भूमिका और जवाबदेही आपको शून्य ही नजर आएगी. हाँ! किसी चुनाव के समय वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जरूर किसी पार्टी का समर्थन करती नजर आएगे
आप किसी भी संगठन की मीटिंग मे जाए तो आपको वहां के पदाधिकारियों का रवैया देखकर अति खिन्नता का अनुभव होगा . वहां न केवल आर्थिक अनियमितता, दूसरी जातियों से खतरे की बात कही जा रही होगी . बल्कि मीटिंग के दौरान भाजपा और कांग्रेस सपा बसपा की चर्चा की जा रही होगी और आपको अपने समाज की समस्याओं के बारे में उनकी विचारशून्यता देखकर आप को घोर निराशा होगी निराश होगी
.. और सोचने को मजबूर हो जायेगे कि सामाजिक संगठनों का प्रभाव समाज पर क्यों शून्य है और क्यों राजनीतिक पार्टियां इनको मुट्ठी में बंद किये हुए हैं...
इसके लिए सबसे जरूरी बात यही है कि सामाजिक संगठन, राजनीतिक संगठनों के पिछलग्गू होने की भूमिका से बाहर निकलें और अपने समाज को अनुशासित, विकसित और सक्षम करने की भूमिका का निर्वहन करें
और राजनैतिक व्यक्ति को सामाजिक संगठन से दूर रखे या रखा जाए ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए तभी ये सामाजिक संगठन समाज के लिए कुछ कर पायेगे... ,
सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे,
नजर को बदलो नज़ारे बदल जायेंगे,
कश्तियाँ बदलने से कुछ नहीं होता,
दिशाओं को बदलो किनारे बदल जायेंगे।
अतुल श्रीवास्तव
लेख में दिए विचार से कायस्थ खबर का सहमत होना आवश्यक नहीं है