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चुनाव ख़तम, कायस्थ प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला अब २३ को, अब समाज से होंगे सवाल

कायस्थ खबर डेस्क I देश भर में ५ हफ्तों से लम्बे चले चुनाव का समापन १९ मई को हुए आखरी मतदान से हो ही गया I इसके साथ ही हिंदी भाषी बेल्ट की राजधानियों से खड़े हुए कायस्थ प्र्याशियो के भाग्य का फैसला भी २३ मई को पता चलेगा I इन चुनावों में उत्तर भारत हिंदी भाषी बेल्ट में कायस्थों की राजनैतिक समझ को भी प्रदर्शित किया है I बीजेपी के मुखर वोटर रहे इस समाज ने साबित किया है की वो अभी भी बीजेपी का बंधुआ वोटर ही है I उसके पास राजनैतिक समझ के नाम पर बीजेपी ही उसकी पार्टी रह गयी है I राजनैतिक समझ इसलिए कहना महत्वपूर्ण है कि हमेशा राजनीती में कायस्थों की कमी का रोना रोने वाले इस समाज ने जब वोट डालने का समय आया तो कायस्थ प्रत्याशी की जगह पार्टी विशेष को ही प्राथमिकता दी I पार्टी प्रतिबधता की मज़बूरी ऐसा नहीं है की की बीजेपी के लिए समर्थित कायस्थ वोटर्स की हो समाजवादी पार्टी कांग्रेस या अन्य दलों के वोटर्स ने भी कमोवेश यही रोना रोया की वो कायस्थ की जगह अपने दल के प्रत्याशी का समर्थन करेंगे I इससे भी बुरा हाल पुर५ साल कायस्थ की राजनीती करने वाले संगठनो का रहा है जो आखरी वक्त तक राजनैतिक दलों में अपनी निष्ठा बनाये रखने की कोशिश करते रहे I सोशल मीडिया में फर्जी id से बने आईटी सेल वाले कायस्थों ने भी निश्चित तोर पर समाज की बात करने वाले कायस्थों को खूब लताड़ा गालियाँ दी जिससे ये साबित हुआ की कायस्थ समाज के नाम से बने ग्रुपों का संचालन कायस्थ समाज के द्वारा नहीं वरन आईटी सेल के लोगो द्वारा किया जा रहा है ऐसे में कुछ लोगो ने फिर से कायस्थों की नयी पार्टी बनाने की वकालत भी शुरू की है जिस पर तमाम दावेदार सामने आने शुरू हो गये है I लेकिन सवाल अब भी वहीं है की की गिने चुने कायस्थों को पार्टी के अंध भक्त बने लोगो द्वारा वोट ना देने वाले लोग क्या समाज के नाम पर बने पार्टी को वोट दे भी देंगे या फिर चुनावों के समय फिर से ऐसे लोगो को मुह की खानी पड़ेगी ये सवाल समाज से इसलिए ज़रूरी हैं क्योंकि वोटर के तोर पर जिस तरह उन्होंने गिनती के कायस्थ प्रत्याशियों का भी जो विरोध किया है उसके बाद उनके काम कौन करवाएगा ये बड़ा सवाल होगा I और अगरचुनाव में वोटिंग के  जाती की बात ही नहीं है तो अब समय आ गया है की सामाजिक संगठन या जातीय संस्ग्थान और उनके सोशल मीडिया ग्रुपों को बंद किया जाए क्योंकि जाती के नाम पर ग्रुप बना कर जोक्स कविताएं डालना ही सामाजिक चेतना का कारण नहीं बन सकता है I फैसला अब समाज को ही करना है वो जो करेंगे उसी से उनका भविष्य निर्धारित होगा  

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