राजनीति में कायस्थवाद करने पर कहने को बहुत से कायस्थ बंधु कुछ दलील देते हैं। पेश हैं वे दलील और उनके जवाब-
दलील- अगर सपा बसपा गठबंधन से लखनऊ में खड़ीं पूनम सिन्हा जीत भी गईं तो अकेले कर क्या लेंगी?
जवाब- उनके जीतने से सपा में कम से कम यूपी और वहां की राजधानी जैसी अहम सीट पर एक कायस्थ प्रतिनिधि तो होगा। सपा जैसे क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत दल में कायस्थों को अहमियत तो मिलेगी या उनकी कोई सुनवाई तो होगी। अन्यथा यादव, मुस्लिम, पिछड़ा या दलित और यहां तक की ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, भूमिहार जैसी सवर्णों की लगभग हर जाति के नेता /सांसद/विधायक वहां होंगे बस कायस्थ नेता /सांसद/ विधायक ही नहीं होंगे।
वैसे भी जातिवाद एक चेन रिएक्शन की तरह काम करता है। आप किसी एक छोटे से इलाके में एकजुट होकर अपनी ही जाति के किसी जातिवादी नेता को पार्षद/विधायक/सांसद बनाते हैं...वही पार्षद/सांसद/विधायक आगे चलकर अपने साथ सरकार या विपक्ष में अन्य कायस्थ बंधुओं को जोड़ता है, कायस्थों के रुके हुए शासन-प्रशासन के काम कराता है, सरकारी नौकरी में मौजूद कायस्थ अधिकारियों - कर्मचारियों की ट्रांसफर/पोस्टिंग अथवा किसी अन्य विवाद या मुश्किल में मदद करता है। यही नहीं, अगर वह मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल या किसी भी बड़े ओहदे पर आ गया तो समाज की एकजुटता की ताकत की पहचान बनकर आम कायस्थ बंधुओं के रोजमर्रा के जीवन का स्वाभिमान बनता है। अगर कायस्थों की तरह यादव सोचते कि बिरादरी का अकेला नेता/सांसद/विधायक आखिर कर ही क्या सकता है तो न तो वे कभी मुलायम सिंह यादव को जिताते और न ही यूपी में कभी समाजवादी पार्टी का अस्तित्व होता और न ही यूपी की सत्ता शासन प्रशासन में आज यादवों का बोलबाला होता।
जीता हुआ महज एक नेता ही अपनी बिरादरी के लिए क्या क्या कर सकता है, इसकी मिसाल हर बिरादरी और उसके नेताओं के उदय से देखी-समझी जा सकती है। इसलिए कायस्थों को भी राजनीति में विलुप्त हो जाने से पहले जल्द से जल्द अपनी बिरादरी की एकजुटता बनाकर कम से कम एक जातिवादी नेता राजनीति में मजबूत लाना होगा। बाकी तो चेन रिएक्शन की तरह खुदबखुद होता चला जायेगा। हो सकता है कि आज हमें इसका फायदा न मिल पाए लेकिन राजनीति का यह वह बीज होगा, जो जब भी वृक्ष बनेगा, उसका फल हमारी ही बिरादरी के...आपके ही बाल बच्चे खाएंगे। इसलिए जितना जल्दी हो सके, कायस्थों को भी बाकी जातियों की ही तरह राजनीति में खुलकर जातिवाद का बीज बो देना चाहिए। अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति में पहुंच ही चुके हैं हम लोग।
दलील- हम सपा बसपा को वोट नहीं देंगे क्योंकि उनकी सरकार आने से यादववाद, मुस्लिमवाद या दलितवाद आ जाता है।
जवाब- यह देश ही वादों पर चल रहा है। कांग्रेस थी तो ब्राह्मण/ठाकुर/बनिया/भूमिहारवाद था लेकिन उसमें भी कायस्थवाद नहीं था। फिर बीजेपी आयी तो उसमें भी ब्राह्मण/ठाकुर/बनिया/भूमिहारवाद आ गया क्योंकि फिर इन्हीं जातियों ने अपनी अपनी जातियों के नेता को वोट देकर यहां भाजपा में स्थापित करा दिया। और इन जातियों के कई नेता तो बाकायदा सपा बसपा और कांग्रेस जैसे दल छोड़कर आ गए और मंत्री/सांसद/विधायक बन गए।
जाहिर है, भाजपा गई तो ये और भाजपा के अन्य ब्राह्मण/ठाकुर/बनिया / भूमिहार नेता फिर गैर भाजपा दलों में जाकर सत्ता की मलाई खाने लगेंगे। लेकिन कायस्थ यहां भाजपा में भी जातिवाद की खिलाफत करके न अपनी जाति के आधार पर टिकट देने की मांग करेगा और न ही सत्ता में अपनी जाति के आधार पद देने की मांग करेगा। और न ही जाति के आधार पर किसी और दल के कायस्थ नेता को वोट ही करेगा।
इसलिए इस देश में जब भी सरकार बदली या कोई वाद आया, कायस्थ उस सरकार या वाद में ही हमेशा जातिवाद का विरोध करने के चक्कर में बाहर ही रहा। इसलिए किसी भी वाद के आने से मत घबराइये। बल्कि ब्राह्मण/ठाकुर/बनिया/भूमिहार की ही तरह हर वाद में अपना जातिवाद मजबूत कीजिए। सरकार किसी की भी आये, वाद कोई भी हो लेकिन कायस्थों के ताकतवर नेता हर दल में होने चाहिए। हर दल के कायस्थ नेता को अपना वोट और सपोर्ट देकर ताकतवर बनाइये। ताकि वह वहां रहकर समाज की आवाज और प्रतिनिधित्व बन सके। किसी एक इलाके में अगर दो कायस्थ नेता चुनाव में आमने सामने मुकाबिल हों तो वहां अपना दिमाग लगाइए और बिरादरी के फायदे को देखकर वोट करिये। मिसाल के तौर पर शत्रुघ्न सिन्हा और रविशंकर प्रसाद के मामले को लीजिये...यहां अगर आपको लगता है कि रविशंकर जीतकर खुल कर कायस्थ वाद करेंगे तो उन्हें वोट दीजिये।
अगर इस पर जरा भी संदेह है तो बेहिचक शत्रुघ्न सिन्हा को वोट दे डालिये क्योंकि शत्रुघ्न सिन्हा को कायस्थ वोट मिला तो वहां इतिहास बनेगा, कायस्थों की राजनीतिक ताकत को कांग्रेस और भाजपा समेत राजद व जद यू भी भांप लेंगे। यह भविष्य में कायस्थों को इन्हीं पार्टियों में मजबूती भी प्रदान करेगा। जबकि रविशंकर जीते तो इसे भाजपा की ही जीत मानकर कायस्थों को फिर से राजनीतिक वनवास पर भेज दिया जाएगा। बाकी दल तो छोड़ ही दीजिये, खुद भाजपा ही अगली बार रविशंकर या किसी अन्य कायस्थ को पटना साहिब क्या पूरे बिहार से टिकट नहीं देगी, यह सोचकर कि हम तो किसी गैर कायस्थ को भी टिकट दे देंगे वह भी कायस्थों के वोट बटोर ही लाएगा। फिर कायस्थों को देने की बजाय उन्हें टिकट क्यों न दें, जो जातियां केवल अपनी ही जाति के नेता को वोट देती हैं, पार्टी चाहे जो हो।
दलील- अगर हम मोदी को या भाजपा को वोट नहीं करेंगे तो देश खतरे में पड़ जायेगा...देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। हिन्दू धर्म खतरे में पड़ जायेगा।
जवाब- अगर कायस्थ जैसी सबसे शिक्षित और बुद्धिजीवी जाति में जन्म लेकर भी वाकई आप भाजपा की आईटी सेल के जबरदस्त प्रचार के चलते अंधभक्त हो गए हैं और इस पर आपको भी यकीन है कि देश मोदी से पहले कोई चला नहीं पा रहा था... या मोदी से पहले कोई ईमानदार या बड़ा नेता नहीं पैदा हुआ... या मोदी को छोड़कर इस देश में अभी कोई इतना काबिल, ईमानदार या देशभक्त नहीं है जो देश को चला सके... या हजारों बरस पुराना हिन्दू धर्म आज मोदी के आने से ही बचा है और मोदी के जाते ही खतरे में पड़ जायेगा...वगैरह वगैरह ...तो आप बिना अपने दिमाग पर और लोड लिए ही बेहिचक भाजपा और मोदी को ही वोट दीजिये। लेकिन कम से कम अपनी बिरादरी और अपने अस्तित्व को लेकर मोदी और भाजपा से एक सवाल तो पूछिये कि क्या कायस्थ आपको बाकी सभी जातियों की तुलना में इतने अयोग्य लगते हैं कि यूपी और मध्यप्रदेश जैसे दो अहम प्रदेशों में आपको एक भी योग्य कायस्थ नहीं मिल सका, जिसे आप इस चुनाव में टिकट दे सकें? पूछिये उनसे कि ऐसे तो कायस्थ क्या राजनीति शासन और प्रशासन से विलुप्त नहीं हो जाएंगे? और यह भी पूछिये उनसे कि देश और धर्म के नाम पर कायस्थों के बिना शर्त मिले वोट के बदले भाजपा अगर 2019 में फिर वापस आती है तो यूपी मध्यप्रदेश के कायस्थों को अपनी सरकार में कैसे शामिल करेगी, जब उसने उन्हें टिकट ही नहीं दिए हैं?
और अगर आपको लगता है कि मोदी को रहना चाहिए, बाकी जातियों को भी सरकार, राजनीति और शासन- प्रशासन में रहना चाहिए....भले ही राजनीति में कायस्थ ताकतवर न रहें या राजनीति से विलुप्त ही हो जाएं... तो आप निसंदेह एकल मानसिकता के जीव हैं। जबकि विज्ञान भी यही कहता है कि मैन इज अ सोशल एनिमल। लेकिन आपको यह लगता है कि आपको अपना समाज ताकतवर और एकजुट नहीं चाहिए क्योंकि आप खुद किसी बढ़िया नौकरी या व्यापार में हैं। ठीक है, आप इसी सोच के साथ आगे बढिये लेकिन याद रखिये कि आप मजबूत हैं और आपको कायस्थ समाज की आज जरूरत नहीं है। लेकिन कभी न कभी ऐसा दिन आपके या आपकी आने वाली पीढ़ियों के सामने जरूर आएगा जब महज कायस्थ होने के नाते आपको अन्य किसी जाति की एकजुट राजनीतिक या शासन प्रशासन की ताकत का सामना करना ही पड़ेगा। लेकिन तब आप पछता कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि अपना समाज तो खुद आपने इतना कमजोर बना रखा है कि वह चाहकर भी आपकी मदद नहीं कर पायेगा। कैसे करेगा, जब राजनीति शासन प्रशासन में एक भी कायस्थ आप ही जैसे कायस्थद्रोही लोगों की वजह से जीत कर नहीं आ पा रहा ?
अश्वनी कुमार श्रीवास्तव
लेख में दिए विचार लेखक के है कायस्थ खबर का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है
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आशु भटनागर
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