""जो कायस्थों का मान रखेगा,कायस्थ उसी की शान बनेगा""
जय चित्रांश ।
राहुल श्रीवास्तव
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चुनावो में कायस्थ समाज की उपेक्षा पर आम कायस्थ का आक्रोश : जो कायस्थों का मान रखेगा,कायस्थ उसी की शान बनेगा – राहुल श्रीवास्तव
श्री चित्रगुप्त जी की सन्तान कायस्थ समाज के भाइयों और बहनों आज चुनावी रणभेरी बज चुकी है,उत्तर प्रदेश में चुनाव जातीय आधार पर सम्पन्न होते है...
सामाजिक वर्गीकरण में चार समाजों को बताया गया है-
1.छत्रिय
2.ब्राह्मण
3.वैश्य
4.दलित
आधुनिक युग में उपरोक्त तीन समाजों को सवर्ण कहा जाता है और चौथे समाज को दलित समाज कहा जाता है ,आज उपरोक्त चारो समाजो के लिये चुनावी शतरंज में बिसाते बिछ रहीं हैं कोई छत्रिय कार्ड खेल रहा है ,कोई ब्राह्मण कार्ड,कोई वैश्य और तो कोई दलित कार्ड खेलने के लिए अपना सब कुछ झोंकने के लिए तैयार बैठा है लेकिन कायस्थ कार्ड ? कोई भी नही .... कहीं सुनने में भी नही आ रहा है कोई नही पूछ रहा है,समाज में कोई छवि नही रह गई है .... समाज के लोगों को शर्म भी नही आ रही है,कायस्थ समाज हँसी का पात्र बन गया है लगता है-
०कायस्थ समाज के लोग इस देश के नागरिक नही हैं?
०कायस्थ समाज के लोगों को वोट करने का अधिकार नही है?
०कायस्थ समाज के लोगों के वोटो की गिनती नही होती है?
कायस्थ समाज उपरोक्त समाजों का गुलाम है उसकी अपनी कोई अभिव्यक्ति नही है ,कायस्थ समाज इस्तेमाल करने वाली जाति(कंडोम) हैं ... अंग्रेजों और मुगलों की गुलामी करने की आदत खून में पड़ चुकी है अगर स्वाभिमान जगता है तो वह अपनी ही जाति के कमजोर लोगों पर वो भी दूसरी जातियों की दम पर !
उत्तर प्रदेश में कायस्थों की संख्या निर्णायक भूमिका की ताकत रखती है लेकिन अफसोस ...जो समाज चुनावी महाभारत में हार जीत में निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है ,जिसको चाहे राजा और जिसको चाहे रंक बना सकता है ...आज वही समाज सबसे ज्यादा शोषित व् हर तरह से पिछड़ा है ....हम स्वयंभू बने घूम रहे हैं कारण ....एक दूसरे को नीचा दिखाना,एक दूसरे को घृणा से देखना कि हम दूसरे से श्रेष्ठ ,यह कटु सत्य है आज जो भी कायस्थ शिखर पर है वह अपने बल पर और यह भी सच है ,शिखर पर बैठने वाले कायस्थ को नीचे गिराने का काम भी कायस्थ ही करते हैं ,जरा सोचो .....जिस प्रकार नबाबों का पतन हुआ ठीक उसी प्रकार आधुनिक नबाब कायस्थ समाज का पतन हो चूका है जिस समाज की राजनैतिक गिनती न होती हो तो उस समाज का पतन होना मान लेना चाहिये ,चाणक्य ने भी कहा है कि राजनीति में हिस्सेदारी न होंना पतन का सूचक है... कुछ समाज के ठेकेदार बरसाती मेंढक के रूप में निजी स्वार्थ हित के लिए प्रकट होते है (विभिन्न राजनेतिक पार्टियों के एजेंट है)और बरसात (चुनाव)खत्म होते ही अगली बरसात (चुनाव)तक के लिए गायब हो जाते है इनका समाज के लोगों से कोई लेनादेना नही होता है.... समाज के सुख-दुःख से उनका कोई लेना देना नही होता है.... अगर अभी भी थोड़ी शर्म है तो समाज का अगर भला नही कर सकते तो बुरा करना भी छोड़ दो.... आगामी नई पीढ़ी का सर्वनाश न करो ।
आज भी हिंदी स्कूलों में प्रार्थना कराई जाती है कि"जिस देश जाति में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाएँ....वह शक्ति हमे दो दया निधे ...!!