नितीश कुमार ने फिर किया डा सच्चिदान्नद सिन्हा का अपमान : बिहार निर्माता को याद कर और श्रद्धासुमन अर्पित किये बिना क्या बिहार दिवस मनाना उचित है ? आदित्य श्रीवास्तव
जातिगत वोट बैक के लिए इतिहास से खिलवाड हमारे देश मे वर्षो से होता रहा है, और इसका प्रभाव कही ना कही हमारे देश के महापुरूषो के सम्मान पर भी पडता रहा है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, देशरत्न राजेन्द्र बाबु और लाल बहादुर शास्त्री सहीत अनेको उदाहरण है जिन्हे केवल वोट बैक की राजनिति के लिए हमारे देश की सरकारो ने उचित सम्मान नही दिया। ऐसे ही एक महापुरूष डाॅ. सच्चिदान्नद सिन्हा जिन्हे आज के युवा शायद कम ही जानते है। एक तरफ बिहार सरकार बिहार दिवस मना रही है और दुसरी तरफ बिहार को बंगाल से पृथ्क राज्य के रूप मे स्थापित करने वाले लोगो मे सबसे प्रमुख और आधुनिक बिहार के जनक डाॅ. सच्चिदान्नद सिन्हा को ही अनदेखा किया जा रहा है। डाॅ. सिन्हा भारतीय संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष थे। 1910 के चुनाव मे जहाँ वे चार राजाओ को परास्थ कर वे केन्द्रीय विधान परिषद मे प्रतिनिधी स्थापित हुए। वह प्रथम भारतीय थे जिन्हे एक राज्य का राज्यपाल और हाउस ऑफ लार्डस का सदस्य बनने का श्रेय प्राप्त है। ऐसे महापुरूष को आज बिहार सरकार ने ही नही वरन बिहार की जनता ने भी अपनी समृति से हटा दिया है । ऐसे मे यह सवाल लाजमी है की बिहार निर्माता को याद कर और श्रद्धासुमन अर्पित किये बिना क्या बिहार दिवस मनाना उचित है??
आखिर बिहार सरकार कब तक ऐसे तुष्टी करण की राजनिती करती रहेगी और श्री सिन्हा जी के योगदानो को भुला कर किसी अन्य को बिहार निर्माता का श्रेय कब तक दिया जायेगा?
क्या कोई इस के खिलाफ अवाज उठायेगा या निरंतर ऐसे ही हमारी सरकारे झुठा इतिहास प्रस्तुत करती रहेंगी?
ऐसे बहुत से क्या और क्यू का जबाब तब तक नही मिल सकता जबतक हमारे देश और समाज से जातिगत राजनिती खत्म नही हो जाता।
मै श्री सिन्हा जी को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए बिहार सरकार से अनुरोध करता हुँ की इस विषय पर अपना ध्यान केन्द्रीत कर एक बार जरूर विचार करें।
आदित्य श्रीवास्तव