25 जून जंतर मंतर के आंदोलन ने बहुत सी राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के शीर्ष उदासीन पद पर पड़े हुए लोगों की आँखों में किरकिरी डाल दी – करून श्रीवास्तव
कुम्भकर्णीय नींद से जागते हुए मुठ्ठी भर कायस्थ योद्धा जिनका नाम शायद ही कभी किसी ने सुना हो।मैं भी उनमे से एक हूँ।वक़्त तो लग गया उलझनों और वहम के बादलों को हटने में लेकिन जब आंख खुली तो पाया हम जिन संस्थाओं के भरोसे अपनी गरीबी और बेरोजगारी की कश्ती को पार लगाने के प्रयास में थे वो तो असल में भृम था मृगतृष्णा की तरह ।लेकिन अब जागे और जगाएंगे सुस्त पड़ी आर्थिक और सामाजिक और मानसिक मन्दी से झुझती खोखली परंपराओं को कोढ़ की तरह ढोती संस्थाओं की नींद से।
25 जून जंतर मंतर के आंदोलन ने बहुत सी राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के शीर्ष उदासीन पद पर पड़े हुए लोगों की आँखों में किरकिरी डाल दी जिससे वो लोग भावुक हो कर हम युवाओं को न जाने किन किन अपनी मातृ भाषा या यूँ कहें कि अपने मात्रपिता द्वारा दिए गए संस्कारो का प्रदर्शन करने लगे।
एक बात तो विचारणीय है कि कल की तारीख 25 जून सही में बहुत भयानक तारीख थी जिसने कई सोए हुए नागों को जगा दिया लेकिन हम उनको आश्वस्त करते हैं कि हम युवा एक नई परंपरा लाना चाहते हैं जिसमे हम सभी वंशज एक ही नाम से जाने जाएं सिर्फ कायस्थ।
कोई श्रीवास्तव नही कोई माथुर नही कोई कुलश्रेष्ठ व् निगम नही हम सभी कायस्थ भाई आपस में मिल कर रहें और हम कायस्थों में पल रहे उन साँपों को भी आश्वस्त करना चाहते हैं कि हम उनमे से नही की सांप के फन उठाने पर उसे मार दें ,हम उनमे से हैं कि एक डंडे से उठा कर उस सांप या बिच्छू को किनारे कर दें।हमारा अगला हत्यार है गरीबी और बेरोजगारी जो हम अपने समाज की दूर करके रहेंगे जिन्हें साथ आना है वो आ सकते हैं उनका स्वागत हैं।लेकिन अपना जहर दूसरी शीशी में निकाल कर आएं।