भाई योगेंद्र श्रीवास्तव जी, भाई धीरेन्द्र श्रीवास्तव जी,…आप दोनों से मेरी यही प्रार्थना है की अब विवाद को यहीं समाप्त करें ….. पवन कुमार श्रीवास्तव
आदरणीय भ्राता , धीरेन्द्र श्रीवास्तव जी,
कायस्थवृन्द,
बहुत खेद और दुख का विषय है की, जहां हम सभी के समय का सदुपयोग कायस्थ समाज के उत्थान और कल्याण में लग्न चाहिए, वहां हम सभी विवाद और स्पष्टीकरण में ही लगे रहते हैं...क्या फर्क पड़ता है की कौन किस संस्था का सदस्य है, क्या आवश्यकता है किसी से भी ये कहने की ..के आप अमुक संस्था से जुड़े तो दूसरी संस्था से ना जुडें..चाहे मंतव्य कुछ भी हो..मेरा मत इन विषयों पर बिल्कुल भिन्न है..मेरा व्यक्तिगत मत है की यदि हम , सत्य रूप से समाज कल्याण का कार्य कर रहे हैं तो कोई फर्क नही पड़ता की हम किस संस्था से जुड़े हैं..बिना किसी संस्था से जुड़े भी हम यह कार्य कर सकते हैं..हाँ , अधिकाधिक लोगों तक पहुंचने के लिए एक प्लेटफॉर्म की आवश्यकता होती है..सो मैने, महासभा के 128 वर्षों के गौरवशाली इतिहास को देखते हुए, इसे चुना...अन्यथा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए नित नई संस्थाएं खुलती हैं और कुछ ही महीनों या वर्षों में दम तोड़ देती हैं...में नही कहता की महासभा 100 % परफेक्ट है...कोई हो भी नही सकता...पर 128 वर्षों से विशाल वटवृक्ष की भांति अखिल भारतीय कायस्थ महासभा , का अस्तित्व बना रहना क्या असाधारण नही...ये तो आपको भी मानना पड़ेगा ...कहीं तो कोई कल्याण का कार्य हुआ होगा..जिसके पुण्य के फलस्वरूप, महासभा आज भी जीवित है...और निरंतर नवयौवन प्राप्ति की ओर अग्रसर है...
ओर इसी जनकल्याण की भावना से ही में प्रेरित हूँ और प्रयासरत हूँ..यदि इस जीवन में किसी एक सुपात्र के जीवन में भी मैं निश्चित और स्थायी कल्याण दे पाया...तो स्वयं को भाग्यशाली समझूंगा...
और मेरा व्यक्तिगत मत है , व्यक्ति जहां भी जुड़े, जहां भी रहे , पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करे, दो नावों में पांव रखना कोई बुद्धिमता भी नही है.....और मेरी कोई पदलोलुपता भी नही है..और ना ही कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा...
और में ये भी स्पष्ट कर दूं , की , में महासभा से जुड़ा हूँ, तो अन्य संस्थाओं को में गौण समझता हूँ या, आपके आवाहन पर आपके साथ में नहीं खड़ा रहूँगा...अवश्य खड़ा रहूँगा...विभिन्न अवसरों पर आप शायद ये देख भी चुके हैं....और आपके साथ ही क्यों ..कायस्थ समाज के किसी भी व्यक्ति की आवश्यकता..के समय , उसके आवाहन पर में ज़रूर उपस्थित होऊंगा...यदि मैंने स्वयं को उस लायक समझा तो...
आपने मुझे कायस्थ वृन्द से जुड़ने लायक समझा , इसके लिए में आपका धन्यवाद करता हूँ.....
बाकी मेरे निर्णय से आप अवगत हो ही चुके हैं...
में फिर आपसे कहना चाहता हूँ...की आप मेरे ही अपने कायस्थ भ्राता है...आपकी अवश्यकता पर या आवाहन पर में , अवश्य उपस्थित होऊंगा...
यही आशा में आपसे रखूं या नहीं ..ये तो आपको ही स्पष्ट करना है...
भाई योगेंद्र श्रीवास्तव जी, भाई धीरेन्द्र श्रीवास्तव जी,...आप दोनों से मेरी यही प्रार्थना है की अब विवाद को यहीं समाप्त करें .....
पवन कुमार श्रीवास्तव
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा...