22 अप्रैल को (गंगा सप्तमी) भगवान श्री चित्रगुप्तजी का प्रकटोत्सव धूमधाम मनाने वाले सभी चित्रान्शो को बधाई – राजेश श्रीवास्तव
विगत कुछ दिनों से कुछ संगठनों द्वारा भगवान श्री चित्रगुप्त जी के प्रकट उत्सव को लेकर अनेकों प्रकार के भ्रम फैलाये जा रहे थे ... जबकि वर्षों पुरानी परम्परा के अनुसार कायस्थ परिवार के लोगों द्वारा भगवान श्री चित्रगुप्त जी का प्रकट उत्सव वैसाख माह की गंगा सप्तमी पर मनाते आ रहे हैं....
जो लोग अपने निजी स्वार्थ के लिये स्वयंभू पदाधिकारी बनकर अपने संगठन को चमकाने के लिये भगवान के नाम का सहारा ले रहे थे.. उन्हें समझाने के लिये संगठित कायस्थ परिवार बहुत ही उत्साह के साथ पूरे देश में अनोखे तरीके से किसी ने वृद्धाश्रम में सेवा देकर किसी ने पालकी निकाल कर, किसी ने रैली निकालकर , किसी ने महाप्रसादी ,महाआरती , भजन- कथा का आयोजन कर, किसी ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों द्वारा, भगवान श्री चित्रगुप्तजी की जय हो का जयकारा चारों ओर गूंज रहा था, भारत के प्रत्येक शहर/नगर यहाँ तक की छोटे छोटे कस्बे तक " और जो सामूहिक कार्यक्रम में नहीं जा सके उन्होंने अपने घर में मनाया।
भगवान श्री चित्रगुप्तजी के प्रकट-उत्सव का जबरदस्त माहौल रहा । संगठित कायस्थ परिवार ने फर्जी और स्वयंभू संगठन वालों को ये प्रकटोत्सव मनाकर सचेत कर दिया की हमें किसी ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है, जो भगवान के नाम की आङ लेकर निजी स्वार्थवश अपने संगठन को चमकाने की गाहे-बगाहे कोशिश करते रहते हैं, अब ऐसे फर्जी संगठनों के स्वयंभू पदाधिकारियों को सचेत हो जाना चाहिए कि कायस्थ बंधु जाग्रत हो चुका है ,और उन्हें अब किसी भी तरह से लालीपाॅप देकर बरगलाया नहीं जा सकता है । ऐसे स्वयंभू फर्जी पदाधिकारियों को समझ जाना चाहिए कि अब उनकी दाल नहीं गलेगी । उनकी भलाई इसी में है कि उन्हें अब गोरखधंधा छोङकर वर्षो पुरानी परंपरा को स्वीकार कर भगवान श्री चित्रगुप्तजी से फैलाई गई भ्रमात्मक प्रकटोत्सव दिवस के माफी की अरदास अभी से लगा देना चाहिए ताकि अगला जन्म सफल हो जाये? ... कौन कहता हैं की कायस्थ परिवार एक नहीं हो सकती हैं.. लेकिन अब कायस्थ परिवार के लोग समझ चुके हैं की कुछ संगठनों के कारण ही एकता नहीं हो पाने के कारण समाज के चित्रांश बंधु भ्रमित हो रहा था,जिससे समाज के विकास संबंधी कोई भी कार्य आजतक एवं दूरदर्शन पर प्रसारित नहीं हुआ हैं।
अतः सभी चित्रांश बंधु धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होनेे 22 अप्रैल को (गंगा सप्तमी) भगवान श्री चित्रगुप्तजी का प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया । उन्हें पुनः शुभकामनायें।
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राजेश निगम - इंदौर
भड़ास में प्रकाशित विचार लेखक के अपने हैं कायस्थ खबर का इससे सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं है
प्रिय मित्रो, भारतीय संस्कृति में संवेदना, कल्पना, आचरण, भाव संयम, नैतिक विवेक, उदार आत्मीयता के जो तत्व अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुए हैं उनका आंशिक पालन बन पड़ने पर भी व्यक्ति सौम्य एवं सज्जन ही बनता है। इस दृष्टि से औसत भारतीय नागरिक, तथा-कथित प्रगतिवान एवं सुसम्पन्न समझे जाने वाले देशों की तुलना में कहीं अधिक आगे है।
-पं. श्री विश्वनाथ द्विबेदी जी महाराज