काम करना अच्छी बात है, और अगर वही काम ‘सही दिशा और नेत्रत्व’ मे हो तो और भी अच्छी बात है। समय आ गया है की हमारी सभी कायस्थ संस्थाए एकजुट होकर अपना एक ‘सशक्त-नेता’ चुने। सभी संस्थाए एक होकर, एक पंक्ति मे, उस नेता के दिशानिर्देश पर ही काम करें। यह समय की ‘मांग’ के साथ ‘जरूरत’ भी है।कायस्थ-समागम रखेगा एकता की ‘मजबूत’ नींव मिलेगा ‘सशक्त-नेता’ शुक्रवार को जब दिल्ली मे राज्यसभा सांसद और एसआईएस ग्रुप के चेयरमेन श्री आर के सिन्हा के निवास पर ‘कायस्थ-समागम-2015’ की तैयारियो को लेकर कायस्थों की मंडली इककट्ठी हुई तो चित्रांशों मे एक नया ऊर्जा, उत्साह और उमंग दिखी। संभवत: उस ऊर्जा का संचालन श्री सिन्हा के व्यक्तित्व से बाकी चित्रांशों मे प्रवाहित हो रहा था। आज कायस्थ-समाज को ऐसे ही करिश्माई नेत्रत्व की जरूरत है जो हमारे चित्रांश बंधुओ मे एक नयी ऊर्जा और उत्साह का प्रवाह कर सके। श्री सिन्हा उम्र के इस पड़ाव मे भी कायस्थ-समाज की ‘संशयमयी-स्थिति’ को देखते हुए अपने समाज और लोगो के लिए कुछ करना चाहता है। वह शुक्रवार मे दिल्ली मे ‘कायस्थ-समागम’ की तैयारियो से जुड़ी मीटिंग की अध्यक्षता करते हैं तो अगले दिन ही ‘पटना’ पहुँच जाते हैं जहां वह स्वयं ‘कायस्थ-समागम-2015’ का नेत्रत्व आगे से कर रहे हैं। कायस्थ-समाज श्री सिन्हा को स्वीकारे अपना ‘नेता’ इंग्लिश मे एक कहावत है “A true leader always leads from the front”. श्री सिन्हा वाकई मे कायस्थों के लिए समर्पित करते हुए दिखते हैं। अब यह देश की विभिन्न कायस्थ संस्थाओ की ज़िम्मेदारी है की वह श्री सिन्हा को अपना ‘नेता’ माने। ऐसा नेता जो समाज और लोगो को एक नयी दिशा और रास्ता दिखाएगा। समाज के लोगो की मदद के लिए ‘स्वयं’ आगे आयेगा। गौरतलब है एसआईएस ग्रुप के चेयरमेन श्री रवीद्र किशोर सिन्हा ने बेरोजगारी पर बोलते हुए कई बार दोहराया है कि वह अपनी संस्था (एसआईएस) मे एक गैर कायस्थ के ऊपर एक ‘योग्य-कायस्थ’ को प्राथमिकता देते हैं। यहाँ तक कि उन्होने यह भी ऐलान किया है कि हर महीने के आखिरे रविवार मे सभी चित्रांश उनके निवास पर संध्या-काल मे एकत्रित हो एक साथ ‘रात्रि-भोज’ करेंगे। कायस्थों की एकता के लिए यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण और सकरात्मक माना जा रहा है। गांधी-मैदान से जाएगा एक कड़ा सूचनात्मक-संदेश मैंने हरदम कहा है ‘कायस्थ’ वास्तव मे एक ‘जाति’ नहीं एक विचारधारा है, हमारे पूर्वजो का योगदान न केवल ‘भारत’ की दृष्टि से, पर वैश्विक स्तर पर भी अमूल्य और अतुलनीय है। चित्रांशों ने सर्वदा जातिवाद से ऊपर रहते हुए देशहित और जनकल्याण के लिए काम किया है और करते भी आ रहे हैं। पर आज समय की मांग है कि ‘कायस्थ’ भी एकजुट हो, ‘जाति’ के नाम पर नहीं, एक परिवार के नाम पर। हम सभी धर्मराज चित्रगुप्त की संताने हैं, बेशक हम रहते अलग-अलग घरो मे हो पर हमारा ‘चित्रांश-परिवार’ एक ही है। उम्मीद है पटना मे इस कायस्थ-समागम का आयोजन भव्य होगा और चित्रांश भारी संख्या मे देश और विदेश से आएंगे। गांधी मैदान मे ‘जय चित्रगुप्त महाराज’ के जयकारे गूँजेंगे और दुनिया-जहां को एक संदेश जाएगा कि “भैया, कायस्थ नींद मे था, जाग उठा है, एक होने लगा है”। अब ‘सिंहासन छोड़ो’ चित्रांश आते हैं। रोहित श्रीवास्तव कायस्थखबर.कॉम के सह संपादक है और "Kayastha Are Best in Every Field" के एडमिन है
कायस्थ-एकता और ‘एकरूपता’ के लिए मील का पत्थर साबित होगा कायस्थ-समागम-2015
रोहित श्रीवास्तव । पटना मे 28 जून को प्रस्तावित कायस्थ-समागम-2015 को लेकर बहुत सारे चित्रांश बंधुओ के मन मे दुविधा, संशय और कई प्रश्नो के साथ एक जिज्ञासा भी है आखिर ऐसा क्या ‘नया’ होने वाला है ‘कायस्थ-समागम’ मे, मसलन कुछ लोगो की यह बैचेनी और उलझन जायज़ भी है, पूर्व मे भी ऐसे आयोजन होते रहे हैं जिसमे से शायद कायस्थों की एकरूपता और विकास की दिशा मे ‘सकरात्मक’ और ‘रचनात्मक’ दृष्टि से खासा कुछ निकल कर नहीं आया है।
कायस्थ समाज को एक सशक्त और कुशल नेत्रत्व की है जरूरत
अगर आप सही तरीके से कायस्थ समाज से जुड़ी समस्याओ और बाधाओ का गहन अधध्यन और अवलोकन करेंगे तो पाएंगे की इस समाज को वर्षो से एक प्रभावशाली और शक्तिशाली नेत्रत्व की कमी खली है। आज देश-विदेश मे न जाने कायस्थों के कितने छोटे-मोटे क्षेत्रीय संगठन काम कर रहे हैं।