अनिल कुमार श्रीवास्तव । जातीयता की बेड़ी में जकड़े उत्तर प्रदेश के चुनाव बेशक अभी थोड़े दूर हों लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा जातियों को साधने की आजमाइश के साथ चुनावी आगाज हो गया है।
भीषण गर्मी में बारिश के साथ बढ़ी बेतहाशा उमस भरी गर्मी में ब्राह्मणों को रिझाने के साथ चुनावी रंग घुल गया। जहां एक तरफ बसपा, भाजपा, सपा, कांग्रेस अपने अपने तरीको से नाराज ब्राह्मणों को मनाने की जुगत में लगे रहे वहीं इस बार सबकी नजर सवर्ण मतदाताओं इस बार विशेष दिख रही है। जहां एक तरफ गैर भाजपाई दल सवर्णों को अपने पक्ष में लाकर विजय पताका फहराने के फिराक में हैं वहीं भाजपा अपने इन पारंपरिक मतदाताओं को छिटकने नही देना चाह रही है। रही बात पिछड़ी जनाधार वाली जातियों की तो भाजपा उनमें पहले ही अपने स्टार चेहरे मोदी के सहारे सेंधमारी कर चुकी है। अनुसूचित जाति व जनजाति में भी इधर कुछ वर्षों से भाजपा ने अपना विश्वास बढ़ाया है, मुस्लिम वर्ग तो मुस्लिम है वहां सियासी दल अभी तक सामान्य, पिछड़ा, दलित आदि के वर्गीकरण में खास सफलता अर्जित नही कर पाए हैं शायद यही वजह है कि कई जगह चुनावों में वो आज भी निर्णायक की भूमिका में रहते हैं। हालांकि भाजपा इस समुदाय को भी रिझाने का भरकस प्रयास करती रही है लेकिन भाजपा का चेहरा हिंदुत्व का होने की वजह से अब तक अपेक्षित सफलता नही मिल पाई है। और अगर सफलता मिल गयी होती तो शायद विपक्ष का हाल और भी बदतर होता।
कुलमिलाकर भाजपा ने लगातार उत्तरोत्तर विभिन्न जातियों में लोकप्रियता जरूर अर्जित की है और चुनाव दर चुनाव वह सफलता देखने को भी मिली है। लेकिन भाजपा के पारंपरिक मतदाताओं में असंतोष भी देखने को मिला।उत्तर प्रदेश जातिगत आरक्षण संसोधन बिल ने यूपी की राजनीति को हवा दे दी। इस बिल के आते ही यूपी की सियासी गतिविधियां तेज हो गईं।
हुआ यूं कि भाजपा का पारंपरिक मतदाता कायस्थ, जो वोटर ही नही जबरदस्त निःस्वार्थ भाव वाला सपोर्टर भी है, को अन्य पिछड़ा वर्ग में किये जाने की बात यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छेड़ दी। कुछ अतिस्वाभिमानी कायस्थों व संगठनों ने शोषल मीडिया पर इस आरक्षण लॉलीपॉप को सिरे से ठुकरा दिया और विरोध करने लगे। कलम के पुजारी, चित्रगुप्त वंशजो का कहना है कि जातिगत आरक्षण खत्म होना चाहिए, उन्हें यह चुनावी आरक्षण लॉलीपॉप नही चाहिये। कुछ भाजपाई प्रतिबद्धता वाले कायस्थ इस बिल को सही भी ठहरा रहे हैं, उनका कहना है कि उनकी आगामी पीढ़ी के रोजगार, शिक्षा आदि मूलभूत सुविधाओं में रास्ते खुलेंगे। कुछ कायस्थ इस बिल को जातिगत आरक्षण खात्मे के साथ जोड़कर देख रहे हैं। इस बिल में हिन्दू कायस्थों के अलावा और 38 जातियां पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किये जाने के लिए प्रस्तावित हैं।चुनाव से पूर्व आरक्षण संसोधन में कायस्थों की सुध लेना और स्वाभिमानी कायस्थों द्वारा नकार देना उत्तर प्रदेश सरकार के लिए यह भी हो सकता है कर भला तो हो बुरा, और यह भी हो सकता है आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास। यह बिल कायस्थों के लिए पूरी तरह से अप्रत्याशित है और फिलवक्त इस बिल ने मौजूदा सरकार के प्रति पारंपरिक मतदाता कायस्थों का मोहभंग किया है, वो बात अलग है आने वाले समय मे सत्तारूढ़ दल अपने इस वोट को कैसे साधता है। हालांकि राजनीतिक दलों ने इस विषय को संज्ञान लेकर कायस्थ मतदाताओं को रिझाने की रणनीति बनानी शुरू कर दी होगी। जातिगत बिखराव की सेज पर सजे उत्तर प्रदेश चुनाव में कायस्थ इसबार एकता के सहारे निर्णायक मतदाता की भूमिका निभा सकते हैं।