कायस्थ खबर "कायस्थ बोलता है" के नाम से एक नया कालम शुरू कर रहा है जिसमे लोगो के टेस्टीमोनियलस उन लोगो के बारे में दिए जायेंगे जो परदे के पीछे रह कर काम कर रहे है I ये एक नयी कोशिश है समाज के चेहरों को आगे लाने का , मकसद है समाज में सहयोग की भावना को सामने लाने का I अगर आपके पास भी किसी ऐसे कायस्थ के बारे में कोई अच्छा अनुभव है तो हमें ५०० शब्दों में ईमेल मेल करेंI
इस बार की कड़ी में हम लाये हैं कायस्थ रत्न डॉ भरत लाल के बारे में जानकारी जिसको कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने हमें भेजा है
यूं तो हम सार्वजनिक जीवन जीते हुए नित्यप्रति ना जाने कितने लोगों से मिला करते हैं, परंतु हम सभी के जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे हुई चंद पलों की मुलाकात पूरी जिंदगी को सुखद अनुभव दे जाती है ।
आज मैं आप सभी को एक ऐसे ही शख्स से उसकी शख्सियत से रूबरू कराने जा रहा हूं ,जिसका जन्म कायस्थ कुल में हुआ ,जो आज हमारे बीच में नहीं है ,परंतु हमें गर्व करने के ढेर सारे अवसर दे गया।
जी हां !मैं बात कर रहा हूं एक ऐसे ही भगवान चित्रगुप्त के लाल की, भरत लाल की।
उस दिन पूरे देश में उत्साह का माहौल था नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण का दिन ।मैं गोरखपुर में था तथा महाराजगंज की यात्रा सुनिश्चित थी वहां कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात तय थी।मैंने मिलने वाले लोगों की सूची को सरसरी निगाह से देखा और महाराजगंज की तरफ चल पड़ा ।रास्ते में बड़ी दुखद सूचना मिली कि बस्ती के पास में एक बड़ी रेल दुर्घटना हुई है।
खैर क्या कर सकते थे निकल पड़े तो निकल पड़े और पहुंच गए महाराजगंज ।बड़ी गर्मजोशी के साथ सुशांत से मुलाकात हुई, पशुपतिनाथ गुप्ता जी से मुलाकात हुई, जो महाराजगंज से आम आदमी पार्टी के टिकट पर संसदीय चुनाव लड़ चुके थे।इन्हीं दो चार लोगों के साथ बातचीत का दौर चल रहा था,कि बीच में सुशांत के नंबर पर एक कॉल आई कॉल डिस्कनेक्ट करते ही वह मेरी तरफ बढ़ा और मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोला डॉक्टर भरत लाल आपसे मिलना चाहते हैं।
मैंने प्रश्नवाचक नजर उसके चेहरे पर डाली तो उसने बताया कि वह बड़े अच्छे इंसान हैं, गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, तथा महाराजगंज से हैं।
महाराजगंज में हमेशा निर्धन मरीज के मसीहा के रूप में जाने जाते रहे हैं। सुशांत का इतना कहना ही मेरे लिए काफी था।मेरी प्रबल इच्छा हो चली थी कि अब तो भरत लाल जी से मिलना ही है ।
परंतु अच्छे लोगों से मुलाक़ात इतनी जल्दी कहां होती है। रेल दुर्घटना के कारण भरत लाल जी ने मुझसे निवेदन किया कि यदि मुझे असुविधा ना हो तो मैं रात को महाराजगंज ठहर जाऊं तथा रात में उनसे मिल लूँ ।
मैंने भी निश्चय किया कि ठहर जाते हैं।रात को 11:30 बजे भरत लाल जी अपने आवास पर पहुंचे बेहद साधारण सी कद काठी सौम्य सा चेहरा आवाज में मधुरता लिए उन्होंने मेरा स्वागत किया। भरत लाल जी से उस रात विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर बात होती रही और ना जाने कब 1:00 बज गए पता ही नहीं चला। भरत लाल जी ने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के निर्धन वर्ग के स्वास्थ्य हेतु खर्च किया था। अपने आवास पर ही आधुनिक तकनीक से लैस अस्पताल का संचालन कर रहे थे। मेडिकल कॉलेज से जो समय बचता वह निर्धन वर्ग की सेवा में लगाते।
2007 में अपनी विचारधारा से मेल खाती एक भद्र महिला आदरणीय कुसुमलता जी से विवाह किया था।डॉक्टर भरत लाल की कहानी मैं कई हिस्सों में आप तक पहुंचाता रहूंगा। क्योंकि डॉक्टर भरत लाल वह आइना है जिसे हम सभी को देखने की आवश्यकता है। डॉक्टर भरत लाल से मेरी मुलाकात लगातार होती रही।इन अनगिनत मुलाकातों में हर बार मुझे एक पिता का प्यार मिला,एक अभिभावक का मार्गदर्शन मिला, एक शिक्षक का सानिध्य मिला।
बाद में मैंने लखनऊ का पलायन कर लिया तथा भरत लाल जी से संपर्क के दौर में कमी आई। कुछ दिनों बाद एक दिन गोरखपुर जाना हुआ वहां एक पुराने मित्र से बात छेड़ी और पूछ बैठा भरत लाल जी कैसे हैं?
उसने बताया 2 दिनों पूर्व दिल के दौरे ने उनकी की जान ले ली मैं हतप्रभ था। जिस शख्स ने इतने दिलों पर राज किया वह अपने दिल से हार बैठा।
वह सही मायनों में कायस्थ रत्न थे,कायस्थ गौरव थे।
भरत लाल कायस्थ कुल के लाल थे।
उन्हें मेरा नमन
कवि स्वप्निल श्रीवास्तव
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