आरक्षण के मुद्दे पर कायस्थ संस्थाओ का रोल बड़ा ही संदिग्ध है कुछ एक को छोड़कर वो अभी तक अनिर्णय की स्थिति में है इधर जाऊ या उधर जाऊ बड़ी मुश्किल में हूँ मैं किधर जाऊ।ज्यादातर अभो पोल करा रहे है।
उनकी इस सोच पर सवाल बनता है कि एक तरफ आप समाज के प्रतिनिधत्व की बात करते है दूसरी तरफ ये समाज के लिए अहम मुद्दा है।उनकी इस तरह की उदासीनता समाज के लिए नुकसानदायक है।जिस समाज मे सैकड़ो संस्थाएं हो एक ही नाम की चार चार छे छे वहा उनका इस तरह मौन हो जाना उनके और समाज के लिए दुखदाई है।
जहाँ आम लोग इस मुद्दे पर खुलकर समर्थन एवं विरोध में आ रहे है वही इन संस्थाओं के प्रमुख मौन है मतदान करा रहे है कितना हास्यास्पद लगता है उनका ये कृत्य।
मतलब जिनका खुद का कोई विजन नही है ऐसी संस्थाएं किस काम की।बात तल्ख है बहुतो को बुरी भी लगेगी किन्तु ऐसा प्रतीत होता है ये संस्थाएं सिर्फ राजनीतिक दलों से सौदेबाजी के लिए ही बनती है और निजी फायदे के लिए बनती है।क्योंकि अगर समाज2के इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर यदि आप स्वम अनिर्णय के मोड़ पर हो तो स्वम विचार करे कि समाज आपकी क्यो माने।इतना तय है ये कॉयस्थो के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय का वक़्त है जो इतिहास में दर्ज होगा आपका विरोध या समर्थन किन्तु साथ ही आपकी नाकामयाबी के किस्से भी मशहूर होंगे।कि जब समाज को आपकी जरूरत थी तो आप ऊहा पोह में झूल रहे थे।और वैसे प्रतिनिधत्व कादावा करते नही थकते।इसलिए समय रहते जाग जाइये क्योकि इतिहास किसी को माफ नही करता है।थोड़ा लिखा अधिक समझिये आइए समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाये।विरोध में या समर्थन में लेकिन आपकी ये सुसप्तावस्था ठीक नही है।
अतुल श्रीवास्तव