अभी अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने प्रतिपक्षी राष्ट्रीय अध्यक्ष को कायस्थ होने पर शंका जाहीर की है जो समाज को स्तब्ध करने वाली घटना कही जायगी। क्या कायस्थ समाज का नेतृत्व गैर कायस्थ या वर्ण शंकर कायस्थ करेगा? यह एक यक्ष प्रश्न है? संबन्धित पक्ष को अपनी सफाई देनी चाहिए। साथ ही उन्हे भी, जिन्होने अंजाने मे या जान-बूझकर तथाकथित संदेहास्पद व्यक्ति को कायस्थ समाज का सिरमौर बनाया।कायस्थ समाज मे अनगिनत सामाजिक संगठन खड़े हैं, पर आज यह सत्य भी सामने है कि कोई भी संगठन तथा उनके शीर्षस्थ नेता संगठन के योग्य ही नहीं है। यह सिर्फ अपने अहम कि तुष्टि मात्र का परिणाम है। ऐसे तथाकथित संगठन समाज को विकृत कर रहे हैं अतः कायस्थ समाज मे एक नयी जागृति लाने की जरूरत आ खड़ी हुई है। हम किसी भी स्थिति मे वर्ण-शंकरता को स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसे परिवारों की पहचान अब आवश्यक हो गयी है और इन्हे उपेक्षित करना जरूरी है। ताकि इनकी बाढ़ को रोका जा सके। -महथा ब्रज भूषण सिन्हा।
क्या कायस्थ समाज का नेतृत्व गैर कायस्थ या वर्ण शंकर कायस्थ करेगा? यह एक यक्ष प्रश्न है? महथा ब्रज भूषण सिन्हा
जैसा कि आप सब जानते हैं, कायस्थ की वंश श्रिंखला भगवान श्री चित्रगुप्त जी से मानी जाती है। चार वर्णो मे हमारा स्थान न होते हुये भी हम अपने आप मे एक वर्ण स्थापित हो चुके हैं. इस समाज की चाहे जितनी भी विडंबनाएं हों, वर्तमान समय मे हमारी गणना प्रतिष्ठित समुदाय मे होती है। हमारे समाज मे रहने, कार्य करने, शिक्षा ग्रहण करने पर ज़ोर, व्यवसाय एवं राजनीतिक विचार एक विशिष्ट पहचान रखते हैं।
हमारी निजी वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत कायस्थ के बारह उप जाति के अलावा, बंगीय संस्कृति के बोस, घोष, मित्रा, सेन, दास एवं अन्य उप-नामधारी, उड़ीसा मे पटनायक, मोहंती तथा अन्य उप-नामधारी कायस्थ, आंध्र मे, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, असम एवं अन्य प्रदेशों मे भी हैं। हमारी एक विशाल श्रिंखला है। जिनसे क्षेत्रीय भाषा के अंतर एवं अनुष्ठान (परंपरा/ कर्मकांड) के भेद के कारण हमारे वैवाहिक रिश्ते नहीं जुडते।
अब मैं थोड़ी चर्चा भगवान श्री चित्रगुप्त के वंशज कहे जाने वाले बारह उपजाति के कायस्थों की करना चाहूँगा। हमसभी इन बारह उपजाति से भी पूर्णतया परिचित नहीं हैं। श्रीवास्तव, कर्ण, अंबष्ट, भटनागर, सक्सेना, कुलश्रेष्ठ, माथुर(हिन्दी प्रदेशों) तक आते-आते हम रुक जाते हैं तथा अन्यों को विस्मृत कर जाते हैं।
थोड़ी चर्चा इन्ही छ: कायस्थ, जो हिन्दी प्रदेशों के आम लोगों मे जाने जाते हैं, उनकी करना चाहता हूँ। हम एक मिथ का अनुकरण पीढ़ियों से करते आ रहे हैं वह है- वैवाहिक संबंध। यह समाज का सबसे प्रमुख प्रकरण है। सभी उपजातियाँ अपने उपजाति मे ही शादी करने की प्रतिबद्धता दर्शाती हैं। श्रीवास्तव-श्रीवास्तव, कर्ण-कर्ण, अंबष्ट-अंबष्ट, माथुर-माथुर, भटनागर-भटनागर आदि। प्रचलित कथाओं के अनुरूप श्री चित्रगुप्त के दो पत्नियों से बारह संतान उत्पन्न हुये।– अर्थात सभी भाइयों मे खून के रिश्ते। बारह संतानों ने अपनी दुनिया बसाई। उन्होने किनसे वैवाहिक रिश्ते स्थापित किए? मतानुसार देव कन्याओं से। फिर उनके संतान हुये– सभी मे खून के रिश्ते। फिर उनके संतानों ने दुनिया बसाई। जाहीर है- सभी मे खूनी रिश्ते? ........................
हमारी उप जातियाँ इन्ही बारह पूर्वजो के नाम से जानी जाती हैं। अब अगर एक उपजाति अपनी ही उपजाति मे शादी करता है तो करीबी खून के रिश्ते मे ही शादी कहलाएगी। लेकिन हम चाहे कितने पढ़-लिख लें इन अव्यवहारिक कुरीतियों से बाहर नहीं निकलते और न ही इस कुरीति को अंत करने का प्रयास करते हैं।
आज वास्तविकता यह है कि हम अंतर-उपजातिए विवाह को स्वीकार नहीं कर लड़के-लड़कियों के अंतरजातिए विवाह को सहर्ष गले लगा लेते हैं। तर्क यह दिया जाता है कि यह प्यार का मामला था एवं बेटे-बेटियों की खुशी के लिए स्वीकार करना पड़ा। तो क्या प्यार का मामला होने अथवा परिवार की मजबूरी जता देने भर से वर्ण शंकर संबंध स्वीकार कर लेना चाहिए? क्या उनके वंश को कायस्थ जाति का गौरव हासिल होना चाहिए? क्या ऐसे परिवार को कायस्थ जाति मे स्थान होना चाहिए?
अब थोड़ी संस्कार की बात कर ली जाय। संस्कार क्या है? यह बड़ा जटिल शब्द है। इसकी व्याख्या चंद लाइन मे संभव नहीं। पर संक्षेप मे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बहने वाली जीवन-पद्धति-ज्ञान की धारा ही संस्कार कहलाती है। क्या वर्णशंकर इस संस्कार को ढो पाएंगे?
अब प्रश्न है कि हमारे समाज का भविष्य किन संतानों पर आगे बढ़ेगा ? वर्ण-शंकर पर या कुलीन कायस्थ वंशजों पर?