
विशेष रिपोर्ट : अन्य संगठनो की तरह कायस्थ वृन्द भी कायस्थ समाज की राजनीती को बढाने की जगह बीजेपी का अनुषांगिक संगठन बन गया है, क्या इसके पुनरवलोकन का समय आ गया है ?
कायस्थ वृन्द !! कुछ सालो पहले प्रयागराज (तब इलाहबाद ) के धीरेन्द्र श्रीवास्तव ने मिर्जा पुर के डा अरविन्द श्रीवास्तव के साथ जब कायस्थ समाज की राजनैतिक शक्ति और हिस्सेदारी को लेकर इसका विचार समाज के सामने रखा तो तमाम राजनैतिक सोच और दुराग्रह को छोड़कर इसके विस्तार और राजनैतिक हिस्सेदारी को २०१९ के चुनावों में पाने के लिए लोगो का साथ मिलना शुरू हुआकायस्थ वृन्द का मूल मन्त्र था कायस्थ समाज के बिखरे हुए छोटे छोटे संगठनो से क्रीम को निकाल कर राजनीतिk प्रतिबध्ताओ को हासिल करने में सहयोग करना ताकि चुनावों के समय ऐसे लोगो के पीछे जन समूह खड़ा किया जा सके Iविचार बेहद जबरदस्त था लेकिन शायद कायस्थों की अपेक्षा और लोगो की महत्वाकांक्षाये इस पुरे विचार को आज धराशायी कर गयी है I आज २०१९ के चुनाव के बाद अगर कायस्थ वृन्द को देखे तो ये अपनी कार्यशैली से अपनी प्रासंगिकता खोने लगा है I कायस्थ वृन्द के पदाधिकारियों में भी कायस्थ समाज ही एक और सामाजिक संगठन अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की भाँती पद लेने और उससे चिपक जाने की भावना बलबती हो गयी I हालत ऐसे हो गये है की की पद महत्वपूर्ण हो गया है पद नहीं तो विचारधार को चैलेन्ज करने जैसी स्तिथि का दबाब बना कर बने रहने की संभावनाए दिख रही हैसमाज के राजनीतिक उत्त्थान की जगह व्यक्ति गत मुद्दों पर राजनैतिक विरोध और उसके लिए वृन्द का इस्तेमाल करने की कोशश भी हुई और उस पर सवाल भी उठे I लेकिन इस सब से भी ज्यदा ख़राब तब हुआ जब कयास्थ्व्रंद के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगो ने ये समझ लिया की ये एक सामाजिक संगठन है और इसका उद्देश्य समाज की सेवा करना हैऔर यही से शुरू हो रही है इस विचार के पतन की कहानी I इस पतन या फिर यूँ कहा जाए तो राजनैतिक असफलता की कहानी तब से ही शुरू हो गयी जब कायस्थ वृन्द से ऐसे लोगो को जोड़ा जाने लगा जो सिर्फ सामाजिक कार्य करने वाले थे लेकिन पुरी तरह भारतीय जनता पार्टी के समर्थक थे I किसी भी दल के प्रति एक तरफा झुकाव राजनैतिक दुराग्रह का कारण बनता है Iजिस कायस्थ वृन्द को सभी राजनैतिक दलों में अपनी मान्यता स्थापित करनी थी उसके लोग एक राजनैतिक दल के विचार मंच के सदस्य बनते गये जिसके बाद कायस्थ वृन्द को बीजेपी की बी टीम कहा जाने लगा तो उसमे कोई आश्चर्य नहीं हुआ पर अब भी सब कुछ छिपा हुआ थालेकिन जब लखनऊ से प्रख्यात कायस्थ फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा ने चुनाव लड़ा तो वृन्द का बिखराव सामने आ गया I बीजेपी में नजर तक ना आने वाले या बेहद छोटे छोटे पद लिए वृन्द के एक गुट के लोग ना सिर्फ खुल कर पूनम सिन्हा के खिलाफ आये बल्कि उनके प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में अपील करने लगे I तो वृन्द की लखनऊ और कानपुर के पदाधिकारी तो पूनम सिन्हा पर कायस्थ होने के सवाल उठाते हुए ठाकुर प्रत्याशी को समर्थन और देश प्रेम राष्ट्र वाद जैसे तर्क देते नजर आने लगे Iबहराल इस पूरी कशमकश में राजनैतिक जीत किसी की भी हो लेकिन विचार के तोर पर कायस्थ समाज और कायस्थ वृन्द हार गया I कायस्थ वृन्द पुरे चुनावी समर में ये समझने में नाकाम रहा की उनको किसी लिए बनाया गया था किस लिए तैयार किया गया था ?
आखिर वो राजनीती के लिए उठाये गये बीजेपी आईटी सेल के देश प्रेम देश द्रोही जैसे प्रपंच का हिस्सा कैसे बन गये ?जिसको थिंकटैंक समझा जा रहा था वो किसी पार्टी विशेष की भक्ति का साधन बनते दिखा I ऐसे में अब समय आ गया है जब कायस्थ वृन्द के नीति निर्धारको को एक बार फिर से इस वृन्द की सुखी लताओं को छांट कर दुबारा से खड़ा किया जाए I याद रखिये कायस्थ राजनैतिक शक्ति बन्ने के लिए किसी राजनीति दल की परछाई बन्ने से परहेज करना ही होगा नहीं तो समाज फिर वहीं खड़ा होगा जहाँ वो दशको से खड़ा है
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कायस्थ पुरातन काल से राष्ट्रवादी रहा है।
वो पार्टी या व्यक्ति का भक्त या चाटुकार नहीं रहा, अपवाद को छोड़कर।
आज राष्ट्र हित चाहने वाली सिर्फ बीजेपी ही दिखती है ऐसी स्थिति में ये कहना की कायस्थ वृन्द बीजेपी के प्रचार में लगे हैं कायस्थ हिट भूल गए। मेरे विचार से ऐसा विश्लेषण उचित न होगा।
भाई, राष्ट्र को सक्षम, सबल हाथों में देकर अब 5 वर्ष कायस्थ कल्याण में लगना है।
*प्रथम वरीयता राष्ट्र को
*दूजे ध्यान धरम
*फिर कायस्थ समाज को, करते रहें करम!!