कुछ लोग इन्ही संगठनों के माध्यम से सम्मान समारोह भी आयोजित करते हैं और समाज के ही धनाढ्य लोंगो से आयोजन का खर्च उठवाकर कर किसी को कायस्थ रत्न घोषित करते हैं तो किसी को भगवान चित्रगुप्त का सम्मान तक दे डालते हैं।अरे भगवान चित्रगुप्त जी का सम्मान देते वक्त इनका विवेक शून्य हो जाता है की सम्मान का मतलब कि वह व्यक्ति उस सम्मान के नाम के बराबर भी हो सकता है। किसी की भी औकात है जो हमारे आराध्य देव भगवन चित्रगुप्त जी की बराबरी कर सके। कुछ हमारी बहनें भी आजकल कूद पड़ी हैं कायस्थ महिलाओं को सम्मान दिलाने उनमे से एक हैं गजियाबाद की बहुत सम्मानित महिला जो खुद समाज को छोड़कर एक पंजाबी के साथ प्रेम विवाह करीं जब पंजाबी ने छोड़ दिया तो अब समाज की सुध आई और अब समाज को न्याय दिलाने के नाम पर सभी को आपस में भिड़ा रहीं।जरुर पढ़े : कायस्थ व्रंद तथा जय चित्रांश आंदोलन से उपजे सवाल और जबाब - संजीव सिन्हामेरे समाज के सभी उन लोंगों से निवेदन है जो वास्तव में समाज के हिट की सोच रहे हैं अगर आपके आस पास कोई भी कायस्थ परिवार ऐसा है जिसे मदद की जरूरत है आप उसे आर्थिक मदद देकर ऊपर उठायें। अगर आपकी जानकारी में कोई भी समाज का युवा है जो आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ नहीं पा रहा उसे पढ़ाई में आर्थिक मदद दीजिये। अगर किसी भी कायस्थ की बिटिया की शादी आर्थिक आभाव में रुकी हो तो थोड़ी थोड़ी मदद अवश्य करें। जिस दिन इस स्वार्थी संगठनो के स्वार्थी स्वयंभू नेताओं को आर्थिक मदद करना बंद कर देंगे अपने आप इनकी संख्या कम होने लगेगी आप खुद सोचें जब ये आपस में ही एक नहीं हो सकते तो हमको आपको क्या एक करेंगे।शैलेश श्रीवास्तव (शैलू कनाथर)ये पोस्ट व्हाट्सअप्प से ली गयी है , मूल लेखक कोई और भी हो सकता है पर हम सिर्फ उनका नाम डे रहे है जिनसे हमें ये मिला है I

कायस्थ मित्रों के लिए मेरा यह सन्देश – शैलेश श्रीवास्तव
उन सभी कायस्थ मित्रों के लिए मेरा यह सन्देश है जो वास्तव में कायस्थों के प्रति संवेदना रखते हैं खासकर उन कायस्थों के प्रति जिनके सामने आज विभिन्न कारणों से रोजी रोटी तक की भी समस्या आन ख़ड़ी हो गयी है।मित्रो विगत कई महीनों से देख रहा कि हर दिन कायस्थों को एकजुट करने के नाम पर नए नए नाम से संगठन खड़े होते जा रहे हैं। अगर एकजुट ही होना है तो फिर नया संगठन निर्माण करने की आवशयकता ही क्यों..? कभी कोई चित्रांश के नाम पर आंदोलित हो रहा है तो कई लोग बृंद बना कर कायस्थों को संस्कार सिखा रहे। कोई कायस्थ की खबर जन-जन तक पहुंचा तो किसी ने मदद केंद्र ही खोल डाला पर परिणाम सिर्फ आना,खाना,गाना, बजाना और जाना ही तक सिमित रहा है।