कायस्थ समाज मैं कोई कार्यकर्त्ता नहीं रहना चाहता. पदाधिकारी और वह भी बड़ा पदाधिकारी रहना चाहता है. -MBB सिन्हा
श्रद्धेय आर. के. सिन्हा साहब के विचारों से मै पूर्व परिचित हूँ. इन्होने काफी उचाइयाँ हासिल की है. यह सब एकाग्रचित मन ही कर सकता है. यह भी सही है कि कठिनाईयां नए रास्ते भी दिखाती है. इसमे संतुलन रख जो व्यक्ति कार्य करेगा उसे निःसंदेह सफलता मिलेगी. एक बात जो सिन्हा साहब में है उस पर गौर करें " वे कभी भी कायस्थ समाज से अलग होकर नहीं रहे. अपने व्यापारिक संगठन में इसका पूरा-पूरा ख्याल रखा तो कायस्थ संस्कृति एवं परम्पराओं के पोषण का भी काम किया. आज राज्य सभा के सदस्य बनने के बाद भी वे समाज के लिए सक्रिय हैं." हमें इसे आत्मसात करने की जरुरत है. बहनों एवं भाईयों, आप गौर करें. पहली बात - हम किसी भी कायस्थ सभाओं में बहुत ही कम जाते हैं तथा दूसरी- सभा में वक्ताओं के उदगार पर थोडा खुश होते हैं, तारीफ़ करते हैं और दुसरे क्षण भूल जाते हैं. उसे कार्य रूप में या व्यवहार में परिणत करने हेतु कोई उद्यम नहीं करते हैं. "उद्यमेन ही सिध्यन्तिः कार्याणि व मनोरथेः| न ही सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः||" आज कायस्थ संगठनो को गाली देने की प्रथा चल निकली है. सब अपने-अपने स्वार्थ के चश्मे से देखने लगे हैं. कोई कार्यकर्त्ता नहीं रहना चाहता. पदाधिकारी और वह भी बड़ा पदाधिकारी रहना चाहता है. पर सामाजिक कार्य में रूचि कोई नहीं लेता. अभी हाल ही दिल्ली में वर्ल्ड कायस्थ कांफ्रेंस का आयोजन हुआ. कई ऋणात्मक बातें सुनने को मिली. आयोजन में गलतियाँ हो सकती है पर गलतियाँ न हो इसके लिए कुछ लोगों को ही जिम्मेवार क्यों माना जाना चाहिए? हममे यह भावना क्यों नहीं आती कि मै स्वयं भी उसी समाज का अंग हूँ. आमंत्रण का इंतज़ार न कर हमें आगे बढ़कर कार्य करना चाहिए. दूसरी बात दहेज़ की करें तो हम सब मानते हैं कि यह एक दानवी प्रथा है. इसमे सुधार होनी चाहिए. और बड़ा सुधार हो भी चुका है. अब दहेज़ के लिए शादियाँ नहीं रुकती. अब हमारे सामने सांस्कृतिक पतन की चुनौती आ गई है. कायस्थ अपने बारह उप जातियों में शादी नहीं करेगा. उपजातियों के उच्च - नीच के भाव गहरे हैं. पर गैर जातियां स्वीकार्य है. क्या यह हमारी मुर्खता नहीं? कायस्थ लडके-लड़कियां प्यार के नाम पर गैर जातियों में शादियाँ करने लगे हैं. अभिभावक बच्चों से न बिछड़ने की आड़ में कमाऊ बहु अथवा संपन्न दामाद के लिए पलक-पावंडे बिछाने लगे है. आने वाला कल वर्ण शंकर की चुनौतिया खड़ी कर दी है. हमारा इतिहास, हमारी धरोहर, चित्रगुप्त वंशज का गौरव की आवश्यकता अब पिछड़े कायस्थों की पहचान बन कर रह जाने वाली है. हमारे सामने चुनौतिया बढती जा रही है. समाधान की दिशा में अथक प्रयास की आवश्यकता है. एकता जैसे सतही नारे से कुछ होने वाला नहीं. सहयोग दें, सहयोग करें, जातिगत कट्टरता लायें. गैर जातीय विवाह को रोकें. कायस्थ के बारह उप जातियों में विवाह को बढ़ावा देना या जरुरी करना आज की प्रमुख आवश्यकता है. समाज रहेगा तभी हम हैं.
केवल वेरी नाईस, गुड, लाईक जैसे रिमार्क से समाज नहीं बदलेगा. आओ सब मिल कर काम करें.MBB सिन्हा (लेखक ABKM झारखण्ड के पदाधिकारी है और कायस्थ खबर का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है , लेख के पक्ष विपक्ष के ज़बाब वही देंगे )