तो क्या कायस्थ जैसी मुखर, बौद्धिक जाति में, युवाओं, महिलाओं को अपने विचारों तथा सुझावों को प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है ? अगर हम तार्किक नज़रिये से चीज़ों को, समस्याओं को देखते हैं, सवाल पूछते हैं तो क्या हम गलत हैं?अपनी इसी निराशा तथा प्रश्नों को यहाँ रखने का सिर्फ और सिर्फ यही उद्देश्य है कि हम युवा कायस्थ, हर एक संगठन, कमिटी तथा आन्दोलन को एकजुट देखना चाहते हैं. जो आपस में पद, अधिकार, विचार को लेकर लड़ते न रहें तथा लक्ष्यों, साधनों में एकरूपता लाकर, हम युवाओं को दिशा दिखाएँ. जिससे हम समाज हित में जो कुछ भी आगे प्रयास करें, वो हमें सार्थक प्रतीत हों. बाकी हम अपने समाज के बड़े, आदरणीय व्यक्तियों का सम्मान करते हैं तथा उनके द्वारा मार्गदर्शन को सदैव तत्पर हैं।
कायस्थ समाज से एक युवा की अपील – नुपुर सक्सेना
नुपुर सक्सेना । पिछले कुछ दशकों से कायस्थ समाज के विकास, उत्थान हेतु शुरू किये गए विभिन्न संगठनों आदि के प्रयासों से, आज की तारीख में हम युवाओं में भी समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व निभाने ,एकजुटता बढाने की भावना ने जन्म लिया है. परन्तु कुछ समय से हम यह देखकर अत्यंत निराश हैं कि हमारे अनुभवी मार्गदर्शक, गुरुतुल्य सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के बीच अधिकारों, विचारों, पदोपयोग को लेकर, काफी गहमा गहमी चल रही है. सभी के बीच, ना जाने किन बातों को लेकर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है. जो समाज के विकास में अवरोधक तो है ही, परन्तु हम युवाओं को भी भ्रमित कर रहा है जो काफी समय बाद, इतनी ज़्यादा संख्या में, जोश, उत्साह के साथ अपना योगदान समाज हित में देना चाहते हैं।लेकिन हम युवा कायस्थ समाज में, राजनीति तथा कूटनीति के खेल नहीं देखना चाहते और जैसा कि हम सभी जानते हैं, युवा ही किसी समाज की भावी दिशा तय करते हैं, बस निस्वार्थ भाव से बड़ों तथा अनुभवी जनों का मार्गदर्शन चाहते हैं जो कि इन अंदरूनी कलह के चलते हो नहीं पा रहा. और यह कलह बाहर निकल कर आ रही है जिससे समाज के जागरूक सदस्यों, ख़ासकर हम युवाओं का भरोसा, आप सभी की नीतियों से उठ सा रहा है. कहते हैं कि संगठन में मतभेद होना लाज़िमी है, परन्तु जब लक्ष्य एक हो तब मनभेद, कभी किसी को लक्ष्य पर नहीं पहुंचाता. फिर वो चाहें समाज हित का हो, या पद अधिकार का. हम मंच पर बैठे नेता को नहीं पहचानते, बल्कि मंच के पीछे अपने कर्तव्य को, बिना किसी प्रशंसा की आस लिए, करने वाले कार्यकर्ता का अनुसरण करते हैं।कई बार हम युवाओं, महिलाओं के तार्किक रवैये तथा बेबाक विचारों से समाज के अनुभवी, सम्मानित जनों को बुरा भी लगता है. हम सब की सामाजिक आयोजनों तथा सोशल साइट्स पर भी यही कोशिश रहती है कि विचारों का आदान प्रदान हो, कुछ सार्थक सोच अपनाई जाए जिससे समाज उत्थान में हम सब अपना-अपना योगदान दें. परन्तु समाज के कई आदरणीय जनों का तो यह भी कहना है कि “अब यह युवक, युवतियां तथा महिलायें भी अपने विचार लेकर कूंद पड़ीं.”