Home » चौपाल » भड़ास » क्‍या आज हमारा कायस्‍थ समाज इसी ढपोरशंख की तरह हो गया है ? संजीव सिन्हा

क्‍या आज हमारा कायस्‍थ समाज इसी ढपोरशंख की तरह हो गया है ? संजीव सिन्हा

ढपोरशंख की कहानी बहुूत सारे लोगों को याद होगी पर कुछ लोगों ने शायद न सुनी हो इसलिए संक्षेप में लिखना चाहूंगाा। पुराने समय में किसी छोटे व्‍यापारी को व्‍यापार के लिए जाते समय रास्‍ते में समुद्र के किनारे एक शंख मिला। व्‍यापारी ने शंख को उठा लिया और उसे बजाया। शंख बजाते ही उसमें से आवाज आई- मांगों क्‍या मांगते हो, जो मांगोगे पूरी करूंगा। व्‍यापारी ने शंख से ढेर सारा धन मांगा और अपने नगर वापस आकर धनी व्‍यापारी बनकर व्‍यापार करने लगे। उसके अचानक धनी बनने से चकित दूसरे व्‍यापारी ने उसके पास जाकर अचानक धनी बनने का राज पूछा। पहला व्‍यापारी सरल स्‍वभाव का था,उसने सच-सच बता दिया। उसकी बात सुनकर दूसरा व्‍यापारी भी समुद्र के किनारे पहुंचा तो उसे भी वहां एक शंख मिला। उसने जोर से शंख बजाया तो शंख में से आवाज आई मांगों क्‍या मांगते हो, जो मांगोगे उससे दोगुना दूंगा। अब व्‍यापारी बहुत खुश हुआ कि उसे तो बहुत बढिया शंख मिला है। उसने शंख से कहा कि मुझे 10 लाख स्‍वर्ण मुद्रायें दो, शंख ने जवाब दिया मैं तुम्‍हें 20 लाख स्‍वर्ण मुद्रायें देता हूू। फिर व्‍यापारी ने 1000 घोडे और गाय मांगे। शंख ने 2000 घोडे और गाय देने की बात कही। इसी प्रकार व्‍यापारी जो-जो मांगता गया, शंख उससे दोगुना देने की बात कहता गया। परन्‍तु व्‍यापारी को वास्‍तव में मिला कुछ नहीं। उसने शंख से कहा कि जो कुछ तुमने देने के लिए उसे प्रदान तो करो। शंख ने जवाब दिया कि मैं ढपोरशंख हूॅ, सिर्फ देने की बात करता हँ, दे नहीं सकता। जो शंख तुम्‍हें कुछ दे सकता था वो तो पहले वाले व्‍यापारी के पास है।
क्‍या आज हमारा कायस्‍थ समाज इसी ढपोरशंख की तरह नहीं हो गया है। फेसबुक, टिवटर और व्‍हाटस ऐप पर तो ऐसी सक्रियता दिखाते हैं, जैसे पूरे समाज की कायापलट कर देंगे, पर जब जमीनी स्‍तर पर कार्य करने की बात आती है तो दुम दबाकर ऐसे भागते हैं, जैसे दुम में आग लगी हो। हमारे समाज के ज्‍यादातर ''सोशल मीडिया वीर'' सिर्फ सोशल मीडिया पर ही बहादुरी दिखाते हैं पर समाज के होने वाले कार्यक्रमों से मुंह चुराते हैं। कभी बैनर का बहाना लेकर, कभी समय न होने का बहाना करके, कभी आउट आफ स्‍टेशन होने का बहाना करके तो कभी कोई अन्‍य बहाना करके।
यदि यही हाल रहा तो सोशल मीडिया की सक्रियता के कारण प्रज्‍जवलित अग्नि सोशल मीडिया वीरों की जमीनी काहिली के कारण बुझते देर नहीं लगेगी। अगर हम महीने में एक बार अपने शहर में होने वाले सामाजिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए 4 घंटे का वक्‍त नहीं निकाल सकते तो फिर यह आशा क्‍यों करते हैं कि हमारी सामाजिक स्थिति में सुधार होना चाहिए, हमारे समाज से बेरोजगारी दूर होनी चाहिए, दहेज प्रथा दूर होनी चाहिए। कैसे दूर होगी ये समस्‍यायें, सिर्फ सोशल मीडिया पर तलवारबाजी करके। अब भी समय है जागो साथियों और अपने समाज की गम्‍भीर होती जा रही समसस्‍याओं से जूझ रहे लोगों के साथ जमीनी स्‍तर पर जुडो वरना आने वाला समय ये कहने से नहीं चूकेगा कि तत्‍समय कायस्‍थों की काहिली के कारण उस समाज का पतन हो गया। जय चित्रांश। संजीव सिन्‍हा समन्‍वयक कायस्‍थ वृन्‍द एवं जय चित्रांश आन्‍दोलन

आप की राय

आप की राय

About कायस्थ खबर

कायस्थ खबर(https://kayasthkhabar.com) एक प्रयास है कायस्थ समाज की सभी छोटी से छोटी उपलब्धियो , परेशानिओ को एक मंच देने का ताकि सभी लोग इनसे परिचित हो सके I इसमें आप सभी हमारे साथ जुड़ सकते है , अपनी रचनाये , खबरे , कहानियां , इतिहास से जुडी बातें हमे हमारे मेल ID kayasthakhabar@gmail.com पर भेज सकते है या फिर हमे 7011230466 पर काल कर सकते है अगर आपको लगता है की कायस्थ खबर समाज हित में कार्य कर रहा है तो  इसे चलाने व् कारपोरेट दबाब और राजनीती से मुक्त रखने हेतु अपना छोटा सा सहयोग 9654531723 पर PAYTM करें I आशु भटनागर प्रबंध सम्पादक कायस्थ खबर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*