लिखने का मन तो नहीं कर रहा था पर आदत से मजबूर हाँथ ने कलम उठा ही ली.राहत की बात यह है कि अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने त्वरित कदम उठाते हुए महासभा की ओर से तत्काल पचास हजार की सहायता दी . मुझे मालूम नहीं विगत वर्षों में किसी कायस्थ संगठन ने यह सजगता दिखाई है या नहीं? एक और खबर, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के नाम को जिन्दा रखने की कवायद में उसे व्हील चेयर पर बैठा दिया गया है. और उसकी बागडोर थामें रखने के लिए भगवान् धर्मराज श्री चित्रगुप्त को सुपुर्द कर दिया गया है. “जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहियो. लिया-दिया जो भी हो, चिंता मुक्त हो सहियो.” जय चित्रगुप्त भगवान् की.यह भी खबर है कि घटना के दिन फैजाबाद मे ही जब 48 घंटों की मैराथन बैठक में कायस्थों की चिंता से दुबले हुए जा रहे तथाकथित कायस्थ चिंतकों एवं समाज सुधारको की जमावड़ा लगी थी. तथाकथित राष्ट्रीय बैठक कायस्थ समाज को निर्देशित करने की आतुरता लिए चल रही थी. जहां फैजाबाद के भी कायस्थ वीर जुटे हुए थे, जिन्होंने सुध लेने की भी कोशिश नहीं की. एक तरफ लोग सम्मान पा रहे थे, अयोध्या में पुण्य बटोर रहे थे, वहीँ चंद कदम पर कायस्थ कराह रहा था. दरअसल विचारधारा में इन चीजों से क्या लेना-देना. ये सब सांसारिक चीजे हैं. आपको मालूम ही होगा कि इन्ही चिंतकों की सुरम्य घाटी की सुन्दरता ने ऐसा सरदर्द पैदा किया था कि उससे डॉ.राजेंद्र बाबू का जिन्न बाहर आ गया था और हाँ, मंच सजाने की सूत्र भी वहीँ से निकला था. महान चिंतकों की महान बातें.चिन्तक जब चिंतन करेंगे तो ध्यानावस्थित तो होना ही पड़ेगा न. ध्यान में रहने के लिए सबसे पहले आँख बंद करनी पड़ती है. पैर मोड़-सिकोड़ कर बैठना पड़ता है. कान भी बंद हो जाते होंगे. महात्मा बुद्ध के ध्यानावस्थित होने पर ही उन्हें सुजाता के हांथो खीर मिली थी. क्या पता यहाँ भी कोई सुजाता मिल जायें.और सुजाता ने ध्यान करते लोगों को बता दिया. भाई खीर बनाओ. अब कायस्थ बच्चे खीर बनाने की फैक्टरी खोलेंगे. कुछ लोग डिब्बा बनायेंगे. और कुछ पैकिंग करेंगे. मार्केटिंग करने वाले और बेचने वाले भी कायस्थ होंगे. दूध के लिए डेयरी फार्म खोलेंगे. एक साथ कई योजनाएं चलेंगी. अरे भाई मीठी खीर खाने के बाद दहेज़ लेने की किसे चिंता होगी जी? दहेज़ मुक्त शादियाँ शुरू हो जायेंगी. अब आप खुद बताएं ये समाज सुधार नहीं हुआ तो क्या हुआ? आप सबको मालूम ही होगा, महात्मा बुद्ध बोधगया के बाद सारनाथ में ध्यान लगाई थी. जहां-जहां उन्होंने ध्यान लगाई बड़ा सा टीला (स्तूप) खड़ा हो गया. जो संसार में ज्ञान का केंद्र बन गया. आप भी ध्यान रखेंगे. जहाँ-जहाँ ध्यान लगाई जा रही है, कालान्तर में सब जगह कायस्थ तीर्थ बनेगा जी.आप सबों ने देखा व जाना होगा, सड़क किनारे अवस्थित ढाबों की एक संस्कृति होती है. सभी बड़े मार्गों पर लुभावने सज-धज के साथ लजीज व ताजे व्यंजनों के प्रचार से राहगीरों को लुभाते नजर आते हैं. जहां लोग कुछ क्षण के लिए आते हैं, इच्छा अनुरूप लजीज व्यंजनों का बेतकल्लुफी से बेतुका स्वाद लेते हैं, और अपने को ठगा सा महसूस कर पैसे खर्च कर चले जाते हैं. ढाबे वाला पैसा बटोरता जाता है. ठीक उसी प्रकार कायस्थ समाज में ढाबों की भरमार है. यहाँ शोहरत बटोरे जाते हैं. लम्बे-लम्बे दावे किये जाते हैं. पर होता कुछ नहीं. आम बियावान में पड़े लोग एकाएक राष्ट्रीय पदाधिकारी हो जाते हैं. हैसियत बढ़ जाती है और विचारधारा राष्ट्रीय कही जाने लगती है. इस ड्रग एडिक्सन का शायद कोई उपचार शीघ्र नहीं इजाद होने वाली.देखिय, कहीं यह छूत की बिमारी आपको भी न लग जाय? इसलिए हम यह सावधानी निरोधक टीका लगा तो रहे हैं, शायद काम कर जाय. नहीं भी काम किया तो साइड इफेक्ट का कोई खतरा नहीं, सिर्फ आयोजक को छोड़कर.अजात शत्रु (लेखक किंचित कारणों से अपना नाम गुप्त रखना चाहते है ) ( भड़ास श्रेणी मे छपने वाले विचार लेखक के है और पूर्णत: निजी हैं , एवं कायस्थ खबर डॉट कॉम इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी कायस्थ खबर डॉट कॉम स्वागत करता है । आप लेख पर अपनी प्रतिक्रिया kayasthakhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं। या नीचे कमेन्ट बॉक्स मे दे सकते है ,ब्लॉग पोस्ट के साथ अपना संक्षिप्त परिचय और फोटो भी भेजें।)
कायस्थ समाज में पनपती ढाबे की संस्कृति – अजात शत्रु
अभी–अभी समाचार प्राप्त हुआ कि फैजाबाद के रकाबगंज मोहल्ले के 34 वर्षीय कायस्थ पुत्र अमित श्रीवास्तव की एक सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मृत्यु हो गई. परिवार में एक विक्षिप्त माँ, पत्नी, दो लड़की एक लड़का है. पिता का स्वर्गवास हो चूका है. उस परिवार की असहनिये पीड़ा की कल्पना से ही मन बोझिल हो गया.