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भगवान् चित्रगुप्त मनुष्य के मन के देवता है वो वही से आपके सभी कार्यो को जानते है उनका लेखा जोखा रखते है

सृष्टी के निर्माण के बाद उसको परिचालन को लेकर त्रिदेव के समक्ष देवताओं में चर्चा हो रहो थी, चर्चा का विषय था कि कलयुग में मनुष्य की हर मनोकामनाओं को पूरा करने वाली गुप्त चमत्कारी शक्तियों को कहाँ छुपाया जाये। सभी देवताओं में इस पर बहुत वाद- विवाद हुआ। एक देवता ने अपना मत रखा और कहा कि इसे हम एक जंगल की गुफा में रख देते हैं। दूसरे देवता ने उसे टोकते हुए कहा नहीं- नहीं हम इसे पर्वत की चोटी पर छिपा देंगे। उस देवता की बात ठीक पूरी भी नहीं हुई थी कि कोई कहने लगा , “न तो हम इसे कहीं गुफा में छिपाएंगे और न ही इसे पर्वत की चोटी पर हम इसे समुद्र की गहराइयों में छिपा देते हैं यही स्थान इसके लिए सबसे उपयुक्त रहेगा।”सबकी राय खत्म हो जाने के बाद भगवान् चित्रगुप्त ने कहा क्यों न हम मानव की चमत्कारिक शक्तियों को मानव -मन की गहराइयों में छिपा दें। चूँकि बचपन से ही उसका मन इधर -उधर दौड़ता रहता है, मनुष्य कभी कल्पना भी नहीं कर सकेगा कि ऐसी अदभुत और विलक्षण शक्तियां उसके भीतर छिपी हो सकती हैं । और वह इन्हें बाह्य जगत में खोजता रहेगा अतः इन बहुमूल्य शक्तियों को हम उसके मन की निचली तह में छिपा देंगे।ये सुन कर त्रिदेव बहुत खुश हुए और बाकी सभी देवता भी इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए। और ऐसा ही किया गया, साथ ही भगवान् चित्रगुप्त को इन शक्तियों के जागरण का देवता भी माना गया , मनुष्य के भीतर ही चमत्कारी शक्तियों का भण्डार छुपा दिया गया, इसलिए कहा जाता है मानव मवन में अद्भुत शक्तियां निहित हैं।भगवान् चित्रगुप्त मनुष्य के मन के देवता है वो वही से आपके सभी कार्यो को जानते है उनके पाप पुन्य लेखा जोखा रखते है I गरुण पुराण मे उनके लिए कहा गया है"चित्रगुप्त नमस्तुभ्याम वेदाक्सरदत्रे" (चित्रगुप्त हैं पात्रों के दाता)भगवान् चित्रगुप्त की पूजा हर ब्रहस्पतिवार को करने से भी मानव मन एकाग्र होता है और उसे इन शक्तियों का ज्ञान होता है क्योंकि मानव मन असीम ऊर्जा का कोष है। इंसान जो भी चाहे वो हासिल कर सकता है। मनुष्य के लिए कुछ भी असाध्य नहीं है। लेकिन दुःख की बात है उसे स्वयं ही विश्वास नहीं होता कि उसके भीतर इतनी शक्तियां विद्यमान हैं। भगवान् चित्रगुप्त की कृपा अपने ह्रदय में गुप्त शक्तियों को पहचानिये, उन्हें पर्वत, गुफा या समुद्र में मत ढूंढिए बल्कि अपने अंदर खोजिए और अपनी शक्तियों को निखारिए। हथेलियों से अपनी आँखों को ढंककर अंधकार होने का शिकायत मत कीजिये। आँखें खोलिए, अपने भीतर झांकिए और अपनी अपार शक्तियों का प्रयोग कर अपना हर एक सपना पूरा कर डालिये।

भगवान चित्रगुप्‍त पूजन विधि

  नमो भगवते चित्रगुप्‍तदेवाय का आवाहन करते हुये धूप, दीप , चन्‍दन, लाल पुष्‍प से पूजन करें श्रद्धानुसार नैवैद्य, खील, भुने चनें, मिठाई, ऋतुफल का प्रसाद चढायें। एक कलम बिना चिरी लेकर दवात में पवित्र जल छिडकते हुये प्रभु को ध्‍यान करें।
स्‍वास्थिवाचन ॐ गणना त्‍वां गणपति हवामहे, प्रियाणां त्‍वां प्रियपत हवामहें निधीनां त्‍वां निधिपते हवामहें वसो मम आहमजानि गर्भधामा त्‍वमजासि गर्भधम । ॐ गणपत्‍यादि पंचदेवा नवग्रहा:इन्‍द्रादि दिग्‍पाला: दुर्गादि महादेव्‍य:  इहागच्‍छत स्‍वकीयां पूजां ग्रहीत भगवत: चित्रगुप्‍त देवस्‍य पूजमं विध्‍नरहितं कुरूत।
ध्‍यान तच्‍छरी रान्‍महाबाहु:श्‍याम कमल लोचन:कम्‍वु ग्रीवोगूढ शिर: पूर्ण चन्‍द्र निभानन:।। काल दण्‍डोस्‍त्‍वोवसो हस्‍ते लेखनी पत्र संयुत:। नि:मत्‍य दर्शनेतस्‍थौ ब्रहमणोत्‍वयक्‍त जन्‍मन:।। लेखनी खड्गहस्‍ते च- मसि भाजन पुस्‍तक:। कायस्‍थ कुल उत्‍पन्‍न चित्रगुप्‍त नमो नम:।। मसी भाजन संयुक्‍तश्‍चरोसि त्‍वं महीतले । लेखनी कठिन हस्‍ते चित्रगुप्‍त नमोस्‍तुते।। चित्रगुप्‍त नमस्‍तुभ्‍यं लेखकाक्षर दायक । कायस्‍थ जाति मासाद्य चित्रगुप्‍त मनोस्‍तुते।। योषात्‍वया लेखनस्‍य जीविकायेन निर्मिता । तेषा च पालको यस्‍भात्रत: शान्ति प्रयच्‍छ मे।।
आवाहन दोनो हाथ जोडकर प्रभु चित्रगुप्‍त जी से प्रार्थना कीजिये के हे प्रभु जब तक मैं आपकी पूजा करूं तब तक प्रभु आप यहां विराजमान रहिये। ॐ आगच्‍छ भगवन्‍देव स्‍थाने चात्र स्थिरौ भव । यावत्‍पूजं करिष्‍यामि तावत्‍वं सन्निधौ भव ।  ॐ भगवन्‍तं श्री चित्रगुप्‍त आवाहयामि स्‍थापयामि ।।
आसन हे प्रभु चित्रगुप्‍तदेव आपका सेवक आवके समक्ष यह आसन समर्पित करता है, कृपया इसे स्‍वीकार करें :-ॐ इदमासनं समर्पयामी । भगवते चित्रगुप्‍त देवाय नम: ।।
पाद्य हे प्रभु चित्रगुप्‍त आपके चरण कमल धोने के लिये मैं जल समर्पित करता हूं इसे स्‍वीकार करें :- पादयो: पाद्यं समर्पयामी । भगवते चित्रगुप्‍त देवाय नम: ।।
आचमन हे देवाधिदेव प्रभु चित्रगुप्‍त भगवान यह पवित्र जल आचमन के लिये प्रस्‍तुत करता हूं इसे स्‍वीकार करें :- ॐ मुखे आचमनीयं समर्पयामि । भगवते चित्रगुप्‍ताय नम: ।।
स्‍नान हे सनातन देव आप ही जल है, पृथ्‍वी है, अग्नि और वायु है यह सेवक जीवन रूपी जल आपके स्‍नान हेतु समर्पित करता है इसे स्‍वीकार करें :- ॐ स्‍नानार्थ जलं समर्पयामि । भगवते श्री चित्रगुप्‍ताय नम: ।।
वस्‍त्र हे देवादिदेव, विज्ञान स्‍वरूप प्रभु चित्रगुप्‍त जी आपके चरणों में यह सेवक तुच्‍छ वस्‍त्र भेंट करता है इन्‍हें स्‍वीकार किजियें :- ॐ पवित्रों वस्‍त्रं समर्पयामि । भगवते श्री चित्रगुप्‍त देवाय नम: ।।
पुष्‍प हे परम उत्‍तम दिव्‍य महापुरूष प्रभु चित्रगुप्‍त भगवान आपके श्री चरणों में यह सेवक सुगन्धित पुष्‍प अर्पित करता है इन्‍हे स्‍वीकार कीजियें :- पुष्‍पमालां च समर्पयामि । भगवते श्री चित्रगुप्‍तदेवाय नम: ।।धूप हे अर्न्‍तयामी देव आपके श्री चरणों में यह सेवक सुगन्धित धूप प्रस्‍तुत करता है, इसे स्‍वीकार कीजियें :- ॐ धूपं माधापयामि । भगवते श्री चित्रगुप्‍तदेवाय नम:।।दीप हे देवादिदेव उत्‍तम प्रकाश से युक्‍त अंधकार को दूर करने वाला धृत एवं बत्‍ती युक्‍त दीप आपके श्री चरणों में प्रकाशमान है इसे स्‍वीकार कीजिये। ॐ दीपं दर्शयामि । भगवते श्री चित्रगुप्‍त देवाय नम:नैवैद्य हे प्रभु चित्रगुप्‍त जी आपके श्री चरणों में स्‍वादिष्‍ट शुद्ध, मधुर फलों से युक्‍त नैवैद्य समर्पित करता हूं, इन्‍हें स्‍वीकार कीजियें :-  ॐ नैवैद्य समर्पयामि । भगवते श्री चित्रगुप्‍त देवाय नम: ।।ताम्‍बूल- दक्षिणा हे प्रभु चित्रगुप्‍तजी आपके श्री चरणों में ताम्‍बूल एवं दक्षिणा समर्पित करता हूं, इन्‍हें स्‍वीकार कीजियें । ॐ ताम्‍बूलं समर्पयामि । ॐ दक्षिणा समर्पयामि।।   भगवते श्री चित्रगुप्‍तदेवाय नम:लेखनी दवात पूजन लेखनी दवात पर शुद्ध जल, रोली, चावल, पुष्‍प जल आदि अर्पित करते हुये प्रभु चित्रगुप्‍त जी एवं धर्मराज जी का ध्‍यान कीजिये :-   ॐ लेखनी देवते इहागच्‍छ । में पूजां ग्रहाण, आवाहनं करोमि।।
==श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति ==जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम शरणागतम। जय पूज्य पद पद्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे। कर्मेश तव धर्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनी धारी विभो। जय श्याम तन चित्रेश तव, शरणागतम शरणागतम।।पुरुषादि भगवत अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय। जय शक्ति बुद्धि विशेष तव, शरणागतम शरणागतम।।जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के। जय शांतिमय न्यायेश तव, शरणागतम शरणागतम।।तव नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भय त्रय ताप से। हों दूर सर्व क्लेश तव, शरणागतम शरणागतम।।हों दीन अनुरागी हरि, चाहे दया दृष्टि तेरी। कीजै कृपा करुणेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
एक बार सब प्रेम से बोले भगवान् चित्रगुप्त की जय हो ।। मन की शक्ति को जगाने वाले भगवान् चित्रगुप्त की सदा ही जय हो ।। सबके संकट हरने वाले भगवान् चित्रगुप्त की सदा ही जय हो ।।

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One comment

  1. Sabhi kayasth surname ki kuldevi ka. Koi chart hai mainly sinha ka kyuki sinha caste dusri community me bhi dekhne ko milti hai.

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