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- बचपन में राजेन्द्र बाबू जल्दी सो जाते और सुबह जल्दी उठकर अपनी मां को भी जगा दिया करते थे अत: उनकी मां उन्हें रोजाना भजन-कीर्तन, प्रभाती सुनाती थीं। इतना ही नहीं, वे अपने लाड़ले पुत्र को महाभारत-रामायण की कहानियां भी सुनाती थीं और राजेन्द्र बाबू बड़ी तन्मयता से उन्हें सुनते थे।
- राजेंद्र प्रसाद हमेशा एक अच्छे स्टूडेंट के रूप में जाने जाते थे. उन्हें हर महीने 30 रुपये की स्कॉलरशिप पढ़ाई करने के लिए मिलती थी.
- राजेंद्र प्रसाद दो साप्ताहिक मैगजीन हिंदी में 'देश' और अंग्रेजी में 'सर्चलाइट' के नाम से निकालते थे .
- प्रसाद ने 1906 में बिहारी स्टूडेंट्स कॉन्फ्रेंस का आयोजन करवाया, इस तरह का आयोजन पूरे भारत में पहली बार हो रहा था. इस आयोजन ने बिहार के दो बड़े नेताओं अनुग्रह नारायण और कृष्ण सिन्हा को जन्म दिया. प्रसाद 1913 में बिहार छात्र सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए.
- नमक सत्याग्रह के वे सक्रीय नेता थे और भारत छोडो आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया था और ब्रिटिश अधिकारियो को घुटने टेकने पर मजबूर किया था। प्रसाद ने फंड बढ़ाने के लिए नमक बेचने का काम भी किया.
- 26 जनवरी 1950 को, भारत का गणतंत्र अस्तित्व में आया और डॉ राजेंद्र प्रसाद को देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। दुर्भाग्य से, 25 जनवरी 1950 की रात, गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले, उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया। लेकिन परेड ग्राउंड से लौटने के बाद ही उन्होंने अंतिम संस्कार के बारे में बताया।
- भारत रत्न अवार्ड की शुरुआत राजेंद्र प्रसाद के द्वारा 2 जनवरी 1954 को हुई थी. उस समय तक केवल जीवित व्यक्ति को ही भारत रत्न दिया जाता था. बाद में इसे बदल दिया गया. 1962 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को देश का सर्वश्रेष्ण सम्मान भारत रत्न दिया गया.
- राजेन्द्र बाबु अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के संस्थापक भी कहे जाते है, उनके बारे में कहा जाता है की वो अपनी सैलरी का ७० प्रतिशत हिस्सा लोगो की मदद में खर्च कर देते थे
- 1934 में बिहार में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान उन्होंने रिलीफ फंड जमा करने के लिए काफी मेहनत की. उन्होंने फंड के लिए 38 लाख रुपये जुटाए जो कि वायसराय के फंड से तीन गुना ज्यादा था.
- राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी। उनके चेहरे मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं। देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे। उन्होंने 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात वर्ष 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। सम्पूर्ण देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें ‘राजेन्द्र बाबू’ या ‘देशरत्न’ कहकर पुकारा जाता था।
- राष्ट्रपति पद पर रहते हुए अनेक बार मतभेदों के विषम प्रसंग आए, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित होकर भी अपनी सीमा निर्धारित कर ली थी। सरलता और स्वाभाविकता उनके व्यक्तित्व में समाई हुई थी। उनके मुख पर मुस्कान सदैव बनी रहती थी, जो हर किसी को मोहित कर लेती थी। राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक से अधिक बार अध्यक्ष रहे।
- चंपारण आंदोलन के समय जब प्रसाद ने देखा कि महात्मा गांधी जैसा व्यक्ति लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है तो वे भी आंदोलन में शामिल हो गए. उसी आंदोलन के दौरान जब महात्मा गांधी को ठहरने के लिए जगह नहीं मिल रही था तो वे राजेंद्र प्रसाद के घर पर रुके थे.
- डा राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे लेकिन भारतीय राजनीती ने उन्हें कभी संविधान निर्माता नहीं होने दिया बल्कि उनकी जगह प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष डा आंबेडकर को संविधान निर्माता बना दिया
- इसे उनके विशाल व्यक्तित्व के सामने तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरु की हीन भावना ही कहा गया की उन्होंने उनके अंतिम संस्कार में जाना उचित नहीं समझा
३ दिसम्बर जन्मदिवस पर विशेष : पढ़िए देशरतन राजेन्द्र बाबु के जीवन की अनछुई कहानियां
कायस्थ खबर डेस्क I आज ३ दिसम्बर को जिस महान हस्ती के बारे में हम जान्ने जा रहे है वो है देश रतन के नाम से प्रसिद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद I राजेन्द्र बाबु का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में हुआ था, तमाम अभावों के बावजूद उन्होंने शिक्षा ली, कानून के क्षेत्र में डाक्टरेट की उपाधि भी हासिल की. राजेंद्र प्रसाद ने वकालत करने के साथ ही भारत की आजादी के लिए भी काफी संघर्ष किया. आजादी के बाद उन्होंने संविधान सभा को आगे बढ़ाने के लिए, संविधान को बनाने के लिए नवजात राष्ट्र का नेतृत्व किया। संक्षेप में कह सकते हैं कि,भारत गणराज्य को आकार देने में प्रमुख वास्तुकारों में से एक डॉ राजेंद्र प्रसाद थे।
जानिये उनके जीवन से जुड़े अनछुए किस्से