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कायस्थ पाठशाला में अपनी गद्दी बचाने को अध्यक्ष ने अपनाया फुट डालो और राज करो का फार्मूला, वरिष्ठ उपाध्यक्ष के अपमान से भरी गर्मी में शीतयुद्ध हुआ आरम्भ

भारतीय पुराणों में अपनी गद्दी जाने के लिए भयभीत देवराज इंद्र के बारे में कहा जाता है कि वह किसी भी देवता के बढ़ते महत्व को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। क्योंकि उन्हें यह लगता है कि यदि ऐसा हुआ तो उनकी पदवी सुरक्षित नहीं रहेगी। प्रयागराज के प्रसिद्ध कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट में भी चौधरी जितेंद्र सिंह परिवार को हराकर अध्यक्ष बनने वाले डॉक्टर सुशील सिन्हा के बारे में अब यही कहा जा रहा है।

बताया जा रहा है कि इन दिनों डॉक्टर सुशील सिन्हा अपने सहयोगियों को अंग्रेजो की तर्ज पर फुट डालो और राज करो के जरिये परास्त कर अपना शासन निष्कंटक करने में लगे है । इसमें रोचक ये भी है कि जब जिसका नंबर आ रहा होता है तब बाकी लोग इसलिए चुपचाप रहते हैं कि इसमें मेरी जान बच गई है और अध्यक्ष का काम आसान हो जाता है ।

जानकारों की माने तो इस कड़ी में सबसे पहले वरिष्ठ नेता और पूर्व अध्यक्ष टीपी सिंह का नाम आता है जिनको उनकी सदस्यता बहाल करने के नाम पर धीरे से किनारे कर दिया है  ।

इसके बाद नंबर पूर्व में अध्यक्ष का चुनाव लड़कर हार चुके और इस बार अध्यक्ष के चुनाव में साथ रहे एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष कुमार नारायण का नाम आ रहा है । बताया जा रहा है कि अध्यक्ष के कमरे के बाहर अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष के नाम के तख्ती लगे को लेकर विवाद इस कदर बढ़ गया कि बीते दिनों कुछ लोगों ने कुमार नारायण के नाम की पट्टी का उतार कर मुंशी काली प्रसाद जी के चरणों में रख दी सोशल मीडिया में इसको लेकर बवाल मचा और कहा गया कि उनके नाम को श्रद्धांजलि दे दी गई ।

कायस्थ पाठशाला के कई नेताओं के आरोप हैं कि डॉक्टर सुशील सिन्हा ने अपने चचेरे भाई के नेतृत्व में कुछ ऐसे युवाओं का एक सिंडिकेट बनकर खड़ा कर दिया है जो ट्रस्ट के सदस्य नहीं है और लगातार सोशल मीडिया पर उनके विरोधियों को न सिर्फ टारगेट कर रहे हैं बल्कि उनके बारे में तमाम तरीके की अफवाहें फैलाते हैं । कायस्थ उत्थान के पावन उद्देश्य के साथ बनाए गए ट्रस्ट में अब आरोप प्रत्यारोप में आर पार की लड़ाइयां शुरू हो गई है । जो भी अध्यक्ष के रास्ते में आता दिखता है ये युवा उसको सोशल मीडिया पर निबटाने में लग जाते है I

इस प्रकरण पर हमारे कार्यकारी संपादक अतुल श्रीवास्तव ने वरिष्ठ उपाध्यक्ष कुमार नारायण से बात की तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की ओर दुख प्रकट करते हुए कहा कि ऐसा कायस्थ पाठशाला में पहले कभी नहीं हुआ और वह उसके बाद से ही कार्यालय नहीं जा रहे हैं ।

कायस्थ पाठशाला के सूत्रों ने बताया कि इससे पहले अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष के पद पर चौधरी परिवार से जितेंद्र सिंह और राघवेंद्र सिंह के बीच यह अंडरस्टैंडिंग रहती थी कि एक बार कि अगर जितेंद्र नाथ सिंह अध्यक्ष बनते थे तो वरिष्ठ उपाध्यक्ष राघवेंद्र सिंह होते थे ऐसे में दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे और इस तरीके की व्यवस्था चलती रहती थी।

कुमार नारायण के समर्थकों का आरोप है कि डॉक्टर सुशील सिन्हा अब अपने कमरे में किसी और को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। कायस्थ पाठशाला में अभी इस तरीके की व्यवस्था भी नहीं है कि अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष के लिए अलग-अलग केबिन बनाए गए हो । ऐसे में कुमार नारायण के समर्थकों ने यह आरोप लगाया है कि जिन भी लोगों ने यह हरकत करी है उनके पीछे डॉक्टर सुशील सिन्हा का वरदहस्त है अगर ऐसा नहीं होता तो इतनी बड़ी घटना के बाद अध्यक्ष उन पर संगठनात्मक कार्यवाही करते हुए उनकी सदस्यता को निरस्त कर सकते थे ।

रोचक तथ्य यह है कि टीपी सिंह के बाद कुमार नारायण को किनारे लगाने के खेल में कायस्थ पाठशाला की वर्तमान सत्ता में शामिल बाकी छत्रप फिलहाल चटकारे ले रहे हैं या फिर संभवत अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।

वहीं कायस्थ पाठशाला के कुछ नेताओं ने कार्यकारी संपादक अतुल श्रीवास्तव से बताया की कायस्थ पाठशाला में फिलहाल कुछ भी सही नहीं चल रहा है । एक पुराने खांटी मजदूर नेता के पुत्र को बिना योग्यता के मीडिया प्रभारी का पद दे दिया गया है। जानकारी तो यहां तक है कि उनके परिवार में कुछ लोगों को नौकरी तक दे दी गई है और जल्द ही इनको भी नौकरी या ठेके देकर संतुष्ट किया जा सकता है ।

डॉक्टर सुशील सिन्हा के समर्थकों की माने तो कुमार नारायण केपी ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी से अलग अपना एक अलग तंत्र भी विकसित करने के प्रयास में लगे थे। उन्होंने प्रयागराज के स्थानीय स्ट्रिंगर को अपने साथ मिला लिया था इसके साथ ही उनको लेकर कुछ ऐसे आरोप भी लगे थे जिनसे ट्रस्ट की छवि धूमिल हो रही थी, जिसके चलते अध्यक्ष ने उनके पर कतरने की योजना बनाई गई और उसे पट्टिका प्रकरण के जरिए सफलता से अंजाम भी दिया गया ।

कायस्थ पाठशाला को पास से जानने वाले लोगों का दावा है कि दरअसल डॉक्टर सुशील सिन्हा जानते हैं कि अगले 5 साल उनका इन छत्रपों के नाराज होने ना होने से कोई फर्क पड़ता नहीं है और अपना शासन निष्कंटक चलाने के लिए उनको इन्हें किनारे करना ही होगा। अगले चुनाव के समय इन छत्रपों के पास चौधरी परिवार या डॉक्टर सुशील में से किसी एक को चुनने की मजबूरी होगी और ऐसे में कोठी के विरोध में हमेशा रहे यह लोग मजबूरी में ही सही डा सुशील सिन्हा के पक्ष में दिखाई देंगे ।

कायस्थ पाठशाला के पुराने सदस्य ने कायस्थ खबर को यह बताया कि दरअसल डॉक्टर सुशील सिन्हा वही गलती कर रहे हैं, जो पूर्व अध्यक्ष टीपी सिंह ने अपने समय में की थी। गैर परंपरागत राजनीतिक अनुभव से आने वाले ऐसे लोग अक्सर अपने साथियों की जगह चापलूसों को स्थान देने लगते हैं जिसका परिणाम उन्हें अगले चुनाव में सत्ता से बाहर होकर देखना पड़ता है इसके उलट चौधरी परिवार अपने शुभेछूको और साथियों को हमेशा साथ रखता और सम्मान देता रहा है जिसके चलते उनके साथ एक बार आए लोग हमेशा उनके साथ बने रहते हैं।

वहीं कुछ अन्य लोगों का यह भी दावा है कि डॉक्टर सुशील सिंह के हालात 5 साल भले ही आक्रामक रहे हैं किंतु अगले चुनाव में उनकी स्थिति बेहद कमजोर हो जाएगी सहयोगियों के साथ किया जा रहे इस तरीके के व्यवहार से काठ की हांडी एक बार तो चढ़ सकती है किंतु दोबारा उसका चढ़ना संभव न होगा। अब देखने वाली बात यह है की डॉक्टर सुशील सिन्हा  कायस्थ पाठशाला में चल रहे इस शीत युद्ध को किसी तरीके से मैनेज करेंगे, कुमार नारायण को समझाएंगे या फिर इन सबको महात्वहीन मानकर अपनी मनमर्जी चलाते रहेंगे।

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