अखिल भारतीय कायस्थ महासभा सहाय गुट में एक बार फिर से टूट की संभावना हो रही है कायस्थ खबर को विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक पूर्व अध्यक्ष और समाजवादी पार्टी से जुड़े कुछ नेता प्रमुख भूमिका निभा रहे है
दरअसल अखिल भारतीय कायस्थ महासभा बीते 5 साल में कई बार विवादो में रही हैं । पूर्व में भी महासभा राष्ट्रीय महामंत्री और राष्ट्रीय महिला अध्यक्षा की कार्यशैली का लगातार विरोध हुआ है । राष्ट्रीय अध्यक्ष सुबोध कांत सहाय के हस्तक्षेप के बाद वरिष्ठ उपाध्यक्ष को मनाकर वापस तक लाया गया लेकिन इस बार ओबीसी के मुद्दे पर बंटवारे के बाद ऐसी सूचनाएं आ रही है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे एक नेता और कुछ समाजवादी पार्टी नेता मिल कर राष्ट्रीय महामंत्री और अध्यक्ष के खिलाफ एक बार फिर से बिगुल बजा सकते है और जल्द ही इसकी सार्वजनिक घोषणा कर दी जाएगी
एसडीएम कोर्ट में खुल चुका है ABKM के स्वामित्व का मामला
ऐसा नहीं है कि अभी ABKM अपने आंतरिक विरोध के कारण ही टूटने जा रही है दरअसल असली एबी केम कहीं जाने वाले सारंगगुट के वर्तमान अध्यक्ष जितेंद्र सिंह की अपील पर एसडीम कोर्ट में दोबारा से अपील की गई है जिसका फैसला सितंबर के दूसरे हफ्ते में आने की उम्मीद है और यह माना जा रहा है सुबोध कांत सहाय की अध्यक्षता वाली अखिल भारतीय कायस्थ महासभा को अवैध माना जाएगा। सहाय गुट के कई लोग सारंग गुट के साथ विलय की बातें करने लगे है जो ये संकेत दे रहा है कि जल्द ही बड़ा बदलाव होने जा रहा है । ऐसे में सहाय गुट के वर्तमान महामंत्री विष्वमोहन कुलश्रेष्ठ और उनके विश्वस्तो की मुश्किलें बढ़ सकती है और ABKM सारंग गुट से बाहर भी निकाला जा सकता है ।
सुबोध कांत सहाय भी कर सकते है जल्द एक प्रेस कांफ्रेंस
वही सुबोध कांत सहाय पूर्व राज्य सभा सांसद आरके सिन्हा के साथ मिलकर जल्द ही ओबीसी आरक्षण के समर्थन पर प्रेस कांग्रेस कर सकते है । माना जा रहा है कि दोनो नेता ओबीसी आरक्षण को लेकर उत्तर प्रदेश के चुनावो में अपनी जमीन तलाशने की लड़ाई लड़ रहे है लेकिन उत्तरप्रदेश का कायस्थ जनमानस इस मामले पर सख्त विरोध में है । कायस्थ खबर के आशु भटनागर इस मामले पर पहले ही कोर्ट मे जाने की बात कह चुके है तो अखिल भारतीय कायस्थ महासभा सारंग गुट के अध्यक्ष जितेंद्र नाथ सिंह भी इस मामले पर विरोध में है । आभाकाम सारंग गुट की महिला कार्यकारी अध्यक्षा डा ज्योति श्रीवास्तव भी लगातार आरक्षण के विरोध में यूपी सरकार से अनुरोध कर रही है तो उत्तर प्रदेश की कई प्रमुख संस्थाओं के अध्यक्ष भी भाजपा सरकार को ओबीसी आरक्षण मामले पर समर्थन ना करने के पोस्टकार्ड, ईमेल लिख रहे है ।