कायस्थ समाज में ओबीसी आरक्षण को लेकर घमासान मचा हुआ है जब से पिछड़ा आयोग के हवाले से मीडिया में खबर प्रकाशित हुई कि 39 जातियों को ओबीसी आरक्षण में शामिल किया जा सकता है जिसमें कायस्थ समाज भी शामिल है तभी से पूरे उत्तर प्रदेश में कायस्थ समाज दो भागों में बंट गया है एक तरफ वह राजनैतिक नेताओ का कायस्थ समाज है जो खुद को ओबीसी मानने को तैयार है और लोगों ने उसे वह भी ओबीसी समाज के आना शुरु कर दिया दूसरा वह कायस्थ समाज है जो आम जनमानस है जो खुद को कुलीन कायस्थ मानते हुए इस ओबीसी आरक्षण का विरोध कर रहा है
अभी तक माना जा रहा था कि कायस्थों को ओबीसी आरक्षण में समर्थन मामले पर बरेली विधायक अरुण सक्सेना लीड कर रहे हैं लेकिन अब नई जानकारियां निकल कर आ रही हैं इस खबर को मिली जानकारी के अनुसार बिहार में शत्रुघ्न सिन्हा जैसे कद्दावर नेता पहले ही कायस्थों को ओबीसी आरक्षण या एससी एसटी आरक्षण मिले इसके लिए लालू यादव को अपनी रैली में बुलाकर मांग कर चुके हैं बिहार के ही कद्दावर नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा और झारखंड से लोकसभा सांसद रहे और कभी गृह राज्य मंत्री रहे सुबोध कांत सिन्हा भी कायस्थों को ओबीसी आरक्षण में रखने के पक्ष में अब खुलकर सामने नजर आने लगे हैं
कायस्थ खबर ने कल भी यह खबर प्रकाशित की थी कि जल्द ही आर के सिन्हा और सुबोध कांत सहाय एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं बीते 2 दिनों से आर के सिन्हा नोएडा में अपने आवास पर कायस्थ समाज के कई प्रतिनिधियों को बुलाकर ओबीसी आरक्षण में शामिल होने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गाजियाबाद के नेशनल का एक्शन कमेटी के पदाधिकारी अनुरंजन श्रीवास्तव इस मामले में उनसे सहमत हो गए हैं वही अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के मनीष श्रीवास्तव ने ओबीसी आरक्षण के समर्थन में अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया है वो सामान्य में ही 10 प्रतिशत आरक्षण की नई माग रख रहे है
आपको बता दें कि नोएडा से कायस्थ खबर के प्रबंध संपादक और गौतम बुध नगर कायस्थ महासभा के संयोजक आशु भटनागर कायस्थों को ओबीसी आरक्षण देने के पहले ही खिलाफ आंदोलन शुरू कर चुके हैं वही नोएडा के ही श्री चित्रगुप्त सभा ट्रस्ट के मुख्यट्रस्टी राजन श्रीवास्तव का बयान अभी तक सामने नहीं आया है हालांकि सूत्रों के अनुसार राजन श्रीवास्तव भी ओबीसी आरक्षण मिलने के खिलाफ हैं । वही नेशनल कायस्थ एक्शन कमेटी के संयोजक अशोक श्रीवास्तव के कथनानुसार अभी वो तटस्थ हैं तो नोएडा की प्रखर कायस्थ समाज सेवी ज्योति सक्सेना इस मामले पर विरोध में है
तो सवाल यह उठता है कि आखिर आर के सिन्हा या सुबोध कांत सहाय सरीखे बड़े राजनैतिक नेता आखिर आम जनमानस की भावनाओं के विरुद्ध क्यों ओबीसी आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अतुल श्रीवास्तव कायस्थ खबर से बातचीत में कहते हैं की राजनीतिक कायस्थ नेताओं पर अपने चुनाव जीतने के लिए जातीय समीकरण की आवश्यकता होती है कायस्थों के तमाम नेता इस भ्रम में जीते हैं की अगर वह पिछड़ा वर्ग में आ जाएं तो उनका संबंध पिछड़ी जातियों के एक बड़े वर्ग से बन जाएगा जिसके जरिए वह खुद को चुनावी ताल में आराम से जीत पाएंगे 2 साल पहले सुबोध कांत सहाय ने अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के हैसियत से दिए अपने एक भाषण में कायस्थ, आदिवासी, दलित, और मुस्लिम को मिलाकर कदम (KADAM) जैसा जातीय गठबंधन बनाने की वकालत की थी जिसका सामाजिक तौर पर जबरदस्त विरोध हुआ था और विरोध के बाद अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के ऑफिशल स्टेटमेंट में कहा गया कि वह सुबोध कांत सहाय का निजी बयान था और उसको अभाकाम हमसे ना जोड़ा जाए लेकिन अब पिछड़ा आयोग की एक रिपोर्ट मात्र से इन नेताओं को लगने लगा है कि इनका राजनैतिक कैरियर इस बात से चमक सकता है
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की कार्यकारी राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष डॉ ज्योति श्रीवास्तव इस मामले पर स्पष्ट कहती हैं उत्तर प्रदेश और बिहार या झारखंड की पृष्ठभूमि कायस्थों के ओबीसी आरक्षण के मामले में भिन्न है । उत्तर प्रदेश के कायस्थ अपनी मध्यमवर्गीय सम्मान और पहचान के साथ जीते हैं और इसीलिए उत्तर प्रदेश के कायस्थों में अपनी पहचान को लेकर ओबीसी आरक्षण के खिलाफ जबरदस्त प्रतिरोध है हालांकि हमारे वरिष्ठ नेता इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं यह एक बड़ा प्रश्न है
परख सक्सेना सोशल मीडिया पर लिखते है हम आरक्षण के बिना भी योग्य है और योग्यता का गवाह इतिहास है, इसके अलावा कायस्थ अपने बच्चों पर ध्यान रखे वे ऐसी कोई बात ना करे जिसमे कायस्थ होने का अहंकार छिपा हो जो कि अन्य जातियों में दिखाई देता है।कायस्थों का इतिहास है कि हमने इस देश को सदा ही मुंशी प्रेमचंद, हरिवंशराय बच्चन, बाला साहेब और नवीन पटनायक जैसे हीरे दिये है हमारे यहाँ हार्दिक पटेल और प्रकाश अम्बेडकर जैसी राजनैतिक गंदगिया पैदा नही होती
ऐसे में कायस्थ समाज में ओबीसी कायस्थ और कुलीन कायस्थ का एक बड़ा अंतर सामने आ रहा है बड़ी बात यह है कि ओबीसी कायस्थों का प्रतिनिधि कायस्थ समाज के राजनीतिक दलों से जुड़े कुछ नेता कर रहे हैं जबकि कुलीन कायस्थ खुद स्वतंत्र तौर पर अपना प्रतिरोध लगातार सोशल मीडिया के जरिए प्रदर्शित कर रहे हैं युवाओं के प्रतिनिधित्व पर आशु भटनागर कहते है कि इस आंदोलन के बाद उनको लखनऊ से लकी सिन्हा, नितेश श्रीवास्तव, प्रथुल लोचन, रत्नेश श्रीवास्तव, कानपुर से वैभव भटनागर, विकांक्षी निगम, बनारस से प्रांजल श्रीवास्तव, नोएडा से कनिका नयन, जैसे मुखर आंदोलन कारी मिले है जो राजनैतिक और प्रोफेशनली स्पष्ट विजन रखते है भविष्य में क्या होगा इसका तो पता नहीं लेकिन इतना तय है कि आने वाली नई पीढ़ी के प्रभावशाली नेताओं का जन्म इसी आंदोलन से होगा और उत्तर प्रदेश से ही होगा