1. हमारे सिक्ख बंधु तो सदैव योद्धा रहे तो वे आज व्यापार के क्षेत्र में क्यों सफल हैं।
2. हमारे जैन बंधु तो धार्मिक आस्था रखने वाले रहे, तो वे आज व्यापार के क्षेत्र में क्यों सफल हैं।
3. राज्यसभा सांसद श्री आर.के.सिन्हा जी, जो वर्ष 1975 में आपातकाल के समय आंदोलन में भाग लेने के कारण अपनी पत्रकार की नौकरी गवां दिये थे और उसके बाद मात्र कुछ सौ रूपये से उन्होंने व्यापार शुरू कर आज इतना बडा व्यापारिक साम्राज्य कैसे कायम कर लिया।
4. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने वर्ष 1967 में अपनी नौकरी छोड कर अभिनेता बनने का रिस्क न लिया होता तो आज से कई साल पहले नौकरी से रिटायर होकर कहीं गुमनामी की जिंदगी जी रहे होते। ये कैसे इतना बडा मुकाम पा गये।
5. महान अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा ने भी अगर पटना में कहीं नौकरी करके जिंदगी काट दी होती तो उन्हें कौन जानता।
6. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अगर आईसीएस (आईएएस) की नौकरी में चयन होने के बावजूद भी नौकरी को लात न मारी होती तो आज उनका नाम इतने सम्मान से कौन लेता।
7. स्वामी विवेकानन्द जी अगर अपने पिता के कहने पर स्कूल में टीचर बन कर रह गये होते तो समाज उन्हें किस रूप में जानता।
ऐसे बहुत सारे अनगिनत उदाहरण है, जिनके बारे में लिखने पर पूरी किताब बन जाये। मेरा आशय समाज के तथाकथित पुराधाओं से सिर्फ इतना है कि अपने पूर्वाग्रह को समाज के युवा वर्ग पर न थोपे और उन्हें अपने रास्ते तलाशने दें। उनका अनावश्यक नेतृत्व करने की कुचेष्टा न करके उन्हें अपना नेतृत्व खुद तलाश करने दें, उन्हें अपना रास्ता खुद तलाशने दें। उन्हें अपनी मंजिले, अपना रास्ता खुद तलाशने दें।
कायस्थ युवा आज मोहताज नहीं है, वो दिग्भ्रमित हो गया है कि वो किसकी सुने। वो अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा है। उसके रास्ते की कठिनाईयाॅ बढाने की जगह उसे सहयोग करें और सहयोग न कर सकें तो चुपचाप बैठ जायें। कम से कम नकारात्मक सोच तो मत भरें कि तुम ये नहीं कर सकते, तुम वो नहीं कर सकते। अपनी जिन्दगी जी चुके नकारात्मक सोच के महानुभावों अगर पथ प्रशस्त नहीं कर सकते तो कॉटे तो मत बिछाओ।
संजीव सिन्हा
कायस्थ व्रंद
कायस्थों को सन्देश -”पथ प्रशस्त नहीं कर सकते तो कॉटे तो मत बिछाओ”
आज जब हमारे कायस्थ समाज के कुछ पूर्वाग्रही बंधु यह कहते हैं कि कायस्थ नौकरी के सिवा कुछ नहीं कर सकता तो मुझे बडा आश्चर्य होता है कि समाज के सबसे सक्रिय जाति को हमारे ही लोगों ने एक सीमित दायरे में कैद कर दिया और आज भी मजबूर कर रहे हैं कि उसी दायरे में रहो। मैं समाज के उन अलम्बरदारों से पूछना चाहता हूॅ जो पिछले लगभग 40-50 वर्षों से संगठन चला रहे है कि उन्होंने इतने सालों तक कायस्थों की भलाई के लिए क्या किया। यह पूर्वाग्रह जो पिछले 50-60 सालों में कायस्थ समाज में भरा गया कि कायस्थ समाज सिर्फ नौकरी कर सकता है, व्यापार का या अन्य किसी क्षेत्र का हमें कोई अनुभव नहीं, इस संबंध में उनसे कुछ मामूली से सवाल भी हैं, जिनके जवाब अगर उनके पास हो तो दें।