भगवान् श्री चित्रगुप्त, सनातनी के आराध्य चतुर्दश `यम’ देव मे से एक – डा राकेश श्रीवास्तव
शास्त्रों मे यमादि चतुर्दश (१४) देवों का उल्लेख है … इसमें चौदहवें यम के रुप मे श्री चित्रगुप्त जी को माना गया है … दिव्य पितृ तर्पण की तरह पितृतीर्थ से तीन- तीन अंजलि जल, यमों को भी दिया जाता है …
ॐ यमादिचतुदर्शदेवाः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलिन्
।। ॐ यमाय नमः॥१॥ ॐ धर्मराजाय नमः॥२॥ ॐ मृत्यवे नमः॥३॥ ॐ अन्तकाय नमः॥४॥ ॐ वैवस्वताय नमः ॥५॥ ॐ कालाय नमः॥६॥ ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः॥७॥ ॐ औदुम्बराय नमः॥८॥ ॐ दध्नाय नमः॥९॥ ॐ नीलाय नमः॥१०॥ ॐ परमेष्ठिने नमः॥११॥ ॐ वृकोदराय नमः॥१२॥ ॐ चित्राय नमः॥१३॥ ॐ चित्रगुप्ताय नमः॥१४॥
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों से यम देवता को नमस्कार करें …
ॐ यमाय धर्मराजाय, मृत्यवे चान्तकाय च ।
वैवस्वताय कालाय, सर्वभूतक्षयाय च ॥
औदुम्बराय दध्नाय, नीलाय परमेष्ठिने ।
वृकोदराय चित्राय, चित्रगुप्ताय वै नमः॥
यम नियन्त्रण- कर्त्ता शक्तियों को कहते हैं … जन्म- मरण की व्यवस्था करने वाली शक्ति को यम कहते हैं …
मृत्यु को स्मरण रखें, मरने के समय पश्चात्ताप न करना पड़े, इसका ध्यान रखें और उसी प्रकार की अपनी गतिविधियाँ निर्धारित करें, तो समझना चाहिए कि यम को प्रसन्न करने वाला तर्पण किया जा रहा है …
राज्य शासन को भी यम कहते हैं …… अपने शासन को परिपुष्ट एवं स्वस्थ बनाने के लिए प्रत्येक नागरिक को, जो कर्तव्य पालन करता है, उसका स्मरण भी यम तपर्ण द्वारा किया जाता है …
अपने इन्द्रिय निग्रहकर्त्ता एवं कुमार्ग पर चलने से रोकने वाले विवेक को भी यम कहते हैं … इसे भी निरंतर पुष्ट करते चलना हर भावनाशील व्यक्ति का कर्तव्य है …… इन कर्तव्यों की स्मृति यम- तर्पण द्वारा की जाती है ॥
डा राकेश श्रीवास्तव
बहुत ज्ञानवर्धक है!
कायस्थ ख़बर चित्रांश महापरिवार के कल्याण हेतु एक वरदान है।